कंज्यूमर डयूरेबल्स और वाहन ऋण में आई भारी गिरावट के कारण कुल खुदरा क्षेत्रों(आवासीय ऋण, वाहन ऋण, व्यक्तिगत ऋण आदि) को दिए जानेवाला कर्ज जून 2008 में गिरावट के साथ 14 प्रतिशत तक के स्तर पर पहुंच गया।
उल्लेखनीय है कि यह जून 2007 में 23 प्रतिशत के स्तर पर था। हाल में बैंकों द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी और साथ ही बैंकों द्वारा कर्ज देने में कोताही बरतने से पिछले साल तक, जहां तक मिलने वलो कर्ज की बात है, सबसे तेजी से विकास कर रहे क्षेत्र पर इसका बहुत ही प्रतिकूल असर पडा है।
भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार हालांकि खुदरा ऋण के सभी खंडों जैसे आवास ऋण, व्यक्तिगत ऋ ण और के्रडिट कार्ड रिसीवेबल पर असर पडा है लेकिन कंज्यूमर डयूरेबल्स और वाहन ऋण पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा है। बैंकरों का मानना है कि खुदरा ऋणों में और ज्यादा गिरावट आ सकती है क्योंकि अगस्त के बाद से ब्याज दरों में और बढ़ोतरी हुई है।
जून 2008 तक कंज्यूमर फाइनेंसिंग में कुछ बैंकों द्वारा डिफॉल्ट केडर की वजह से पैर पीछे खींच लेने से इस क्षेत्र को दिए रहे कर्ज पर व्यापक असर पड़ा। इसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र को दिए गए कुल कर्ज में जून 2007 में 6,000 करोड रुपये से नीचे जा गिरा और इस साल जून 2008 में 4,000 करोड रुपये के आसपास रह गया है।
इस वित्त वर्ष की शुरूआत से ही कर्जदाता जैसे आईसीआईसीआई बैंक ने पुनाने चेकों से मासिक किस्त की राशि (ईएमआई) को लेना बंद कर दिया। इसके अलावा खरीददारी केवल क्रेडिट कार्ड के जरिये ही की जा सकती है।
जहां तक वाहन ऋण की बात है तो बैंकरों का कहना है कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी लोन ग्रोथ में गिरावट का सबसे बडा कारण है जिसकी वजह से जून 2007 तक इसमें 30 प्रतिशत तक की गिरावट आई और इस साल जून तक इसमें एक प्रतिशत की और ज्यादा गिरावट आई है। ब्याज दरों में बढ़ोतरी के साथ ही अब ग्राहक अब ज्यादा ईएमआई देने को तैयार नहीं हैं।
आवासीय ऋणों में भी खासी कमी देखने को मिली है लेकिन ईएमआई से ज्यादा बड़ी वहज संपत्ति की कीमतों में गिरावट का होना है। व्यक्तिगत ऋण ही एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें कि विकास दर स्थिर रही है और यह पिछले साल जून 2007 के 23 प्रतिशत के मुकाबले थोरी गिरावट केसाथ 20 प्रतिशत के स्तर पर रहा।
फिलहाल डेलीक्वेंसी रेशियों में बढ़ोतरी के मद्देनजर बैंक नए व्यक्तिगत ऋणों को देने से मना कर रही है जिसका कि कारण कार्डधारकों का आउटस्टैंडिंग को व्यक्तिगत ऋण की तरफ ले जाना है। इस वर्ष जून 2008 तक क्रडिट कार्ड रिसिएबल 43 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 30,000 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 50 प्रतिशत अधिक है।
हालांकि तेल कंपनियों द्वारा फंडों की मांग बढ़ी है लेकिन औद्योगिक क्षेत्र में कर्ज की ज्यादा मांग से क्रेडिट में बढोतरी हुई है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार साल-दर-साल के हिसाब से इंक्रीमेंटल, नॉन-फुड, ग्रॉस बैंक क्रेडिट के इस साल अगस्त तक 26.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 4,90,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाने का अनुमान है।
पिछले साल अगस्त के अंत तक इंक्रीमेंटल नॉन-फुड ग्रॉस क्रेडिट 24.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 3,60,000 करोड रुपये के स्तर पर था। रिजर्व बैंक ने वर्ष 2008-09 के बीच क्रेडिट में 20 प्रतिशत बढोतरी का अनुमान लगाया था।