सरकार और रिजर्व बैंक ने नगदी की जबरदस्त कमी झेल रहे उन म्युचुअल फंडों के लिए वित्त के नए स्रोत खोलकर काफी सही कदम उठाया है, जो ऋण बाजार में काम करते हैं।
खासतौर पर जमा प्रमाणपत्रों के लिए आर्थिक सहायता का कदम तो वाकई काबिले-तारीफ है। लेकिन अभी और कदमों की जरूरत है। पिछले कुछ दिनों के दौरान कई लिक्विड फंडों में काफी गिरावट देखने को मिली है, इस वजह से कई निवेशकों का काफी पैसा डूब गया है।
दरअसल, आमतौर पर लिक्विड फंडों में ज्यादा गिरावट देखने को नहीं मिलती है। इसलिए यह दिखलाता है कि मनी मार्केट में कारोबार करने वाले म्युचुअल फंडों को इस संकट की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। अब बैंकों से मिलने वाली नगदी से परिसंपत्तियों का प्रबंधन करने वाली कंपनियां हो सकता है कि इस संकट के दंश को झेल पाएं।
मतलब उन्हें पैसे उगाहने की खातिर अपनी परिसंपत्तियों को कौड़ियों के भाव नहीं बेचना पड़ेगा। हालांकि, यह साफ नहीं है कि 14 दिनों के लिए यह राहत अपना असर दिखाएगी ही। साथ ही, यह भी साफ नहीं है कि बैंक इन कंपनियों को उस ब्याज दर से कम पर पैसे देंगी ही, जिसका वादा इस कंपनी ने अपने निवेशकों से किया था।
इसलिए अब जो किया गया है, वह काफी नहीं है। यह बात सभी जानते हैं कि ऋण बाजार में काम करने वाले म्युचुअल फंड से सबसे ज्यादा पैसे (करीबन 1.2 लाख करोड़ रुपये) गैर बैंकिंग वित्त कंपनियों में ही लगाते हैं, जो आगे इस पैसे के एक बड़े हिस्से (करीब 90 हजार करोड़ रुपये) को रियल एस्टेट सेक्टर में लगाती हैं।
अब जब रियल एस्टेट को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है, तो जाहिर सी बात है कि इससे उन कंपनियों और म्युचुअल फंडों की हालत भी पतली हो रही है। अगर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचे बिना इस सेक्टर में जान फूंकनी है, तो रिजर्व बैंक को आर्थिक ढांचे में पैसे झोंकने ही होंगे।
उसे अभी सीआरआर की दर को अभी एक से डेढ़ फीसदी और कम करना होगा, ताकि बाजार 40 से 60 हजार करोड़ रुपये की पूंजी आ सके। पूंजी प्रवाह को बढ़ाकर इन म्युचुअल फंडों की मदद करने का एक तरीका ब्याज दरों में कटौती का भी है। इससे मौजूदा फंडों की कीमत में भी बढ़ोतरी हो जाएगी, जिससे परिसंपत्तियों का प्रबंधन करने वाली कंपनियों के लिए अपने होल्डिंग्स की औने-पौने दामों पर बेचने की जरूरत नहीं रह जाएगी।
एक बार नगदी की कमी का मामला अच्छी तरह से सुलझ जाए तो उसके बाद ब्याज दरों की तरफ भी ध्यान दिया जाना चाहिए। यह अक्सर कहा जाता है कि जब बाजार में पूंजी प्रवाह में ठहराव आ गया हो तो किसी बेंचमार्क दर को कम करने से कोई खास फायदा नहीं होता। लेकिन अगर पूरी पूंजी मुहैया करवाई जाए, तो दर में कटौती काफी जबरदस्त तरीका साबित हो सकती है।
जिंसों की घटती कीमतों और अर्थव्यवस्था पर छाए संकट के बादलों को देखते हुए इसकी काफी जरूरत भी होती है। इस बीच दुनिया का हाल भी काफी ठीक-ठाक सा दिख रहा है।
दुनिया भर के शेयर बाजारों में आई तेजी पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह अपने स्तर को ठीक करने की कोशिश भर है। दूसरी तरफ, अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी अपनी मिट्टी पलीद होने से बचाने के लिए आज कल युध्दस्तर पर कोशिशें करने में जुटे हुए हैं। इसीलिए मंदी के और गहराने का खतरा भी हवा हो रहा है।