बजट से निवेशकों का भरोसा लौटाने की होगी कोशिश | नयनिमा बसु और इंदिवजल धस्माना / नई दिल्ली June 23, 2014 | | | | |
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री और वित्त एवं कंपनी मामलों की राज्य मंत्री निर्मला सीतारामन कहती हैं कि 2014-15 के लिए बजट में ऐसे प्रावधान होंगे, जिनसे कारोबार करना आसान हो जाएगा। नयनिमा बसु और इंदिवजल धस्माना से बातचीत में सीतारामन ने बताया कि सरकार मौजूदा भूमि अधिग्रहण अधिनियम की समीक्षा कर इसे किसानों व उद्योगों, दोनों के लिए ही फायदेमंद बनाने की दिशा में काम कर रही है। मुख्य अंश :
बजट ऐसे समय में तैयार हो रहा है, जब आर्थिक वृद्घि को बढ़ावे की जरूरत है। हालांकि कर-जीडीपी वृद्घि दर लक्ष्य के अनुरूप नहीं रही है। इनमें संतुलन कैसे बिठाया जाएगा?
यह बजट बताएगा कि हम देश में कारोबार को आसान करना चाहते हैं और इससे अर्थव्यवस्था में निवेशकों का भरोसा लौटेगा। कराधान की सामान्य और आसान व्यवस्था लाई जाएगी। कई उद्योगपतियों का कहना है कि भारत में मुश्किलों की वजह से वे अपने कारोबार विदेश ले गए। हम खुलासे और जांच को आसान बनाएंगे। हमें उम्मीद है कि इससे उन्हें यहां कारोबार करने का भरोसा मिलेगा। कई कारोबारी कंपनी अधिनियम को भी प्रतिकूल बता रहे हैं।
तो क्या सरकार उद्योग जगत से मिली प्रतिक्रिया के मुताबिक कंपनी अधिनियम में बदलाव करेगी?
हम उद्योग जगत की मुश्किलों को गहराई तक समझना चाहते हैं। मुश्किलें दूर करने के लिए प्रावधान बदले जाएं या कानून में संशोधन किया जाए, यह कंपनी मामलों के मंत्रालय की रिपोर्ट आने के बाद ही तय होगा।
लगता है कि नई सरकार रक्षा क्षेत्र में भी एफडीआई की इच्छुक है और इस बारे में कैबिनेट प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी गई है। इस पर फैसला कब तक होगा?
बातचीत शुरू हो गई है। हमने कुछ तय नहीं किया है। हम सभी से बात करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान रक्षा क्षेत्र को काफी प्रमुखता दी थी। हम अपने यहां हथियारों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं या आधुनिक उपकरण चाहते हैं तो हमें निवेश की जरूरत होगी। रक्षा में आयात पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देना होगा। इसलिए हम देख रहे हैं कि एफडीआई के जरिये सिर्फ निवेश आना चाहिए या फिर तकनीक भी।
रेलवे परियोजनाओं, ई-कॉमर्स और रियल एस्टेट में एफडीआई पर फैसला कब तक हो सकता है?
इस पर नए सिरे से बात शुरू हुई है। हम सुनिश्चित करना चाहते हैं कि निवेश जरूरी क्षमता के साथ आए। कुछ लोगों का कहना है कि यह बहुब्रांड खुदरा में पीछे के दरवाजे से एफडीआई को न्योता देने जैसा ही है। लेकिन इस मामले में अंतिम फैसला वित्त मंत्री ही करेंगे।
क्या सरकार ने बहुब्रांड खुदरा में एफडीआई को ठंडे बस्ते में डाल दिया है?
भाजपा के लिए यह कभी प्रमुख मुद्दा नहीं रहा। हम बहुब्रांड खुदरा में एफडीआई के पक्ष में नहीं हैं। इसी मुद्दे पर हमें वोट मिले हैं और हम इस पर कायम हैं। यह कार्यपालिका का आदेश था, जिसे देश पर थोपा गया है। संप्रग सरकार ने तर्क दिया कि उसे इसके लिए संसद की हरी झंडी की जरूरत नहीं थी। उस समय भी इस पर काफी विवाद हुआ था। कांग्रेस की राज्य सरकारें भी इसके पक्ष में नहीं थीं। हम देखेंगे कि इसका क्या करना है।
क्या आप भूमि अधिग्रहण अधिनियम को निवेशकों के लिए और अधिक लाभकारी बनाने के लिहाज से इसकी समीक्षा करने की योजना बना रही हैं?
हम निश्चित रूप से ऐसे तथ्यों की ओर ध्यान दे रहे हैं जो हमारे लिए मददगार साबित नहीं हो रहे हैं। अगर कोई मौजूदा कानून के मुताबिक चलता है तो ये उद्योग के लिहाज से बड़ी बाधाओं के रूप में सामने आ सकती हैं। इसलिए हम कुछ प्रस्तावों पर अलग तरह से विचार करने की दिशा में कोशिश कर रहे हैं। हम सभी तरह के सवाल उठा रहे हैं क्योंकि हमें अर्थव्यवस्था को आगे ले जाना है और साथ ही उन लोगों को न्याय दिलाना भी है जो जमीन के इन टुकड़ों से जुड़े हुए हैं।
विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) को नए सिरे से बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है? वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री होने के साथ ही आप राजस्व विभाग का जिम्मा भी संभाल रही हैं, ऐसे आपके पास सेज के मैट और डीडीटी को लेकर विरोधाभासी मांगों के प्रस्ताव हैं, आप इस मसले को कैसे सुलझाने की कोशिश कर रही हैं?
दरअसल हम इस मामले का विश्लेषण कर रहे हैं, हमने सेज को कोई नई तेजी देने की कोशिश नहीं की है। हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों सेज उतने लाभदायक साबित नहीं हो रहे हैं जितनी कि हमें उम्मीद थी। इसलिए इसे समीक्षा ही समझना बेहतर है कि क्या है जो इस क्षेत्र को नुकसान पहुंचा रहा, क्यों यह उचित ढंग से प्रभावी नहीं हो पा रहा है। जहां तक मैट और डीडीटी की बात है, हमें इन विषयों पर काफी जानकारी मिली है। राजस्व की दृष्टिï से हमें यह देखना होगा कि सेज की मदद से किस तरह कमाई बढ़ाई जा सकती है। मुझे दोनों के बीच एक संतुलन तलाशना होगा।
क्या आयकर कानून में पिछली तारीख से कर लगाने संबंधी संशोधन इस साल वित्त विधेयक में वापस से आएंगे? यदि हां तो क्या सरकार वोडाफोन के साथ मध्यस्थता करके मामले का निपटारा नहीं करेगी और कर मांग नोटिस को वापस लेगी?
जहां तक बात वोडाफोन की है तो इस मामले के लिए एक मध्यस्थ तय किया जा चुका है। इसलिए मेरे लिए इस विषय पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। पुरानी तरीख से कर लगाने के बारे में वित्त मंत्री फैसला लेते हैं यह देखना होगा।
क्या आप पाकिस्तान के साथ व्यापार की सामान्य स्थिति की बहाली चाहती हैं? क्या दोनों देशों के बीच व्यापार पटरी पर है क्योंकि सीमापार से गोलीबारी की खबरें आ रही हैं?
हम उनके साथ जुड़े हुए हैं। पाकिस्तान सीमा के रास्ते ज्यादा उत्पादों को लाना चाहता है। पाकिस्तानी उत्पादों के लिए भारतीय बाजार में काफी संभावनाएं हैं और भारत के उत्पाद पाकिस्तान के बाजारों में भी खूब बिकते हैं। दोनों देशों के लिए अपार संभावनाएं इंतजार कर रही हैं और इसके लिए काफी चीजों पर काम करना होगा। यह दोनों के लिए फायदे का सौदा है।
क्या इराक के संकट का तेल आयात खर्च पर कोई असर पड़ेगा?
पेट्रोलियम मंत्रालय ने कहा है कि इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
अमेरिका के विशेष कानून के तहत क्या आप निर्धारित समीक्षा से ज्यादा की अनुमति देंगी? क्या यह मामला व्यापार नीति मंच की अगली बैठक में उठेगा?
हम इस मामले में साफ बताना चाहेंगे कि हमारा बौद्घिक संपदा कानून डब्ल्यूटीओ के नियमों के तहत है और हमको अपने राष्ट्रीय हित बरकरार रखने हैं। हम उनको बताएंगे कि हर देश को अपना बौद्घिक कानून संरक्षित करने की इजाजत हैं।
खबर है कि स्विटजरलैंड उसके बैंकों में काला धन जमा करने वाले भारतीयों के नाम बताने को तैयार है। क्या सरकार को इस बारे में कोई सूचना मिली?
यह सब ऐसे समय में हुआ है जब हमारे मंत्रिमंडल का पहला फैसला कालाधन वापस लाने के लिए विशेष जांच दल के गठन का किया था। यह सबकुछ एक वरदान की तरह है।
क्या यह सच है कि आप मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर सुस्ती बरतने जा रहे हैं? यूरोपीय संघ जैसे बड़े मामलों का क्या होगा?
हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि मौजूदा समझौतों को कौन सी चीजें नुकसान पहुंचा रही है। लेकिन इसे लेकर देरी नहीं करने जा रहे हैं क्योंकि इन पर तेजी बरतने की जरूरत है। लेकिन हम तब तक किसी नए एफटीए की दिशा में नहीं बढ़ सकते जब तक यह समझ नहीं आ जाए कि मौजूदा समझौतों को किस चीज से दिक्कत है। हमने आयात का पर्याप्त फायदा नहीं उठाया। हमें अपनी सेवाओं और परियोजनाओं के निर्यात के लिए बाजार नहीं मिल रहा है। इसलिए नए समझौते की तरफ बढऩे से पहले विश्लेषण की जरूरत है। हम एक-एक करके सभी का विश्लेषण कर रहे हैं।
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