केंद्र सरकार ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के विलय पर रोक लगा दी है। वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को भेजे पत्र में कहा है कि ग्रामीण बैंकों की आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए पूंजी के अन्य स्रोतों पर विचार करना चाहिए। मंत्रालय ने कहा है कि आरआरबी के विलय के कोई नए प्रस्ताव न पेश किए जाएं। इस समय केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और भारतीय स्टेट बैंंक व पंजाब नैशनल बैंक जैसे प्रायोजक बैंक इन्हें पूंजी मुहैया कराते हैं। ग्रामीण बैंकों के लिए केंद्र सरकार 50 प्रतिशत, राज्य सरकारें 15 प्रतिशत और प्रायोजक बैंक 35 प्रतिशत धन मुहैया कराते हैं। जहां केंद्र और प्रायोजक बैंक नियमित रूप से पूंजी मुहैया करा देते हैं, राज्य सरकारें इसमें देरी करती हैं। ग्रामीण बैंक अधिनियम में संशोधन के लिए एक प्रस्ताव वित्त पर बनी संसद की स्थायी समिति के पास विचारार्थ है। इन संशोधनों का लक्ष्य पूंजी के विकल्पों में बढ़ोतरी करना है। ग्रामीण बैंकों की कुल संख्या 82 थी। मार्च 2013 में इनकी कुल संख्या घटकर 64 और मार्च 2014 में यह संख्या घटकर 57 रह गई। ग्रामीण बैंकों की नियामक संस्था राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने कहा है कि ग्रामीण बैंकों की कृषि ऋण देने की मात्रा लक्ष्य से कम है। ग्रामीण बैंकों की स्थापना 1975 में हुई थी, जिससे सहकारी ऋण ढांचे को एक और विकल्प मुहैया कराया जा सके और ग्रामीण व कृषि क्षेत्र को संस्थागत ऋण मिल सके।
