हालांकि वह विजय माल्या के साथ टक्कर ले रहे हैं, लेकिन उन्हें किंगफिशर बियर पीने से कोई ऐतराज नहीं है।
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वह चुटकी लेते हुए कहते हैं, 'मैं असल में उन्हें पैसे कमाने में मदद कर रहा हूं। हम बियर नहीं बनाते न।'
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यह हैं, गोएयर के सीईओ एडगार्डो बाडाली, जिन्होंने दो महीने पहले ही यह कुर्सी संभाली है। बाडाली इससे पहले इटली की एक सस्ती एयरलाइंस माईएयर में काम चुके हैं। वैसे हिंदुस्तान उनके लिए नया नहीं है, वह 1990 के दशक में जेट एयरवेज के लिए दो साल यहां काम कर चुके हैं। उन्होंने सुरजीत दासगुप्ता और अनिर्वाण चौधरी से हुई एक मुलाकात में अपनी योजनाओं और एविएशन इंडस्ट्री के बुरे वक्त के बारे में खुलकर बात की। पेश है, उस मुलाकात के खास अंश:
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आप एक ऐसे उद्योग के एक छोटे से हिस्से हैं, जो घाटे की मार सह रहा है। निवेशक अपने पैसों को यहां लगाने से डर रहे हैं और यहां सप्लाई डिमांड से कहीं ज्यादा हो चुकी है। आपका काम चलेगा कैसे?
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इसमें कोई शक नहीं कि भारत लंबे समय के लिए एक बेजोड़ बाजार है। लेकिन इस वक्त तो एविएशन टरबाइन फ्यूल (एटीएफ), एटीसी, इन्फ्रास्ट्रक्चर और पायलटों की कमी जैसी बड़ी समस्याओं से हमें दो चार होना पड़ रहा है। इन सब बातों को देखते हुए मैं तो यही कहूंगा कि हमारा रवैया लंबे समय तक खुद को इस इंडस्ट्री में बरकरार रखना चाहते हैं। साथ ही,हम कार्यकुशलता को ध्यान में रखते हुए हम धीरे-धीरे ही सही, लेकिन विकास करना चाहते हैं।
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हमारी नीति पहले एक क्षेत्र में मजबूत खिलाड़ी बनकर उभरने की है, न कि पहले देश भर में फैल जाओ फिर विकास करो। इसलिए तो मुंबई के 10 फीसदी बाजार पर हमारा कब्जा है, जबकि देश भर में हमारा मार्केट शेयर केवल चार फीसदी का है। हम अपने दिल्ली-मुंबई सेक्टर पर जल्दी उड़ानों की तादाद को बढ़ाने वाले हैं। इस वक्त तो इस सेक्टर में दिन भर में हमारी नौ उड़ानें हैं।
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हमारा अगला कदम अपने लिए एक नए सेक्टर की तलाश करना है। यह काफी जरूरी है क्योंकि अगले साल मार्च तक हम अपने बेड़े के आकार को छह से बढ़ाकर 11 विमानों का करने वाले हैं। चूंकि, मुंबई में बुनियादी ढांचे की समस्या है, इसलिए हम नए जगहों की तलाश कर रहे हैं। इस वक्त हमारी नजर चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसी जगहों पर है।
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आकार के हिसाब से देंखें तो चेन्नई का बाजार तो जबरदस्त है। बेंगलुरु और हैदराबाद में तो नया बुनियादी ढांचा तो कमाल का है। यहां नए एयरपोर्ट जो आए हैं। वैसे, बेगलुरु पहले से ही हमारे प्रतिस्पध्दियों के निशाने पर हैं। दिल्ली में तो इन्फ्रास्ट्रक्चर की जबरदस्त समस्या है। अगर पूर्वी भारत की बात करें तो हम कोलकाता की तरफ जरूर ही देखना चाहेंगे।
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हम नए सेक्टर में आने से पहले उसके बारे में तीन-चार महीने तक गंभीरता से सोचते हैं। नए सेक्टर में आने से पहले कई बातों के बारे में सोचना पड़ता है। अगर आप किसी नए सेक्टर में आना चाहते हैं तो आपको पार्किंग स्लॉट्स चाहिए होते हैं, अपने एयरक्राफ्ट पार्क करने के लिए जगह चाहिए होती और भी कई बातें ध्यान में रखनी पड़ती हैं।
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आप सिपिंलीफ्लाई डेक्कन की तरह आक्रामक नहीं हैं, जिसने अब अच्छा खासा बाजार पकड़ लिया है। अगर आप छोटे हैं, तो क्या खुद बचाए रख पाना काफी मुश्किल हो जाता है?
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आक्रामक तरीके से अपना विस्तार करना और देश भर में फैल जाना काफी आसान है। लेकिन जरा खर्चे के बारे में भी तो सोचिए। भाई हमारी रणनीति तो काफी आसान है। जो हमारे पास है, पहले हम उस पर पूरी तरह से कब्जा कर लेना चाहते है। इसके बाद ही हम आगे बढ़ेंगे। नया रूट शुरू करने के लिए एक एयरलाइंस को काफी खर्च करना पड़ता है। ज्यादा बेस या डेस्टीनेशन से खर्च किए हर रुपए पर आपकी कमाई घट जाती है।
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लेकिन जब आप अपने पुराने नेटवर्क पर ही उड़ानों की तादाद को बढ़ा देते हैं, तो उसके दोगुने फायदे होते हैं। आप अपने खर्च तो अलग-अलग हिस्सों में बंट सकते हैं। इसीलिए, अगर आप एक ही इलाके के लिए तीन और फ्लाइट्स शुरू कर देते हैं, तो आप क्रू, ईंधन और विमानों का ज्यादा अच्छी तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे हमारी कमाई और बढ़ा जाती है, जिससे हमारे मुनाफे में भी काफी इजाफा होता है। साथ ही, आपको अपने मौजूदा बाजार में अपनी पहुंच को और बेहतर बनाने में काफी मदद मिलती है।
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जहां तक आपका दूसरा सवाल है, वह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितने बड़े स्तर का विकास कर सकते हैं, जिससे आपकी कमाई भी प्रभावित न हो। मैं इसी वक्त 20 विमानों को अपने बेड़े में शामिल कर उड़ानों में लगा सकता हूं। लेकिन उनका क्या फायदा अगर इन विमानों के केवल 40 फीसदी सीट्स ही भरे होंगे। मैं अपने खर्च कहां से पूरा करुंगा?
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दूसरी एयरलाइंसों ने हाल में अपने घाटे को पाटने के लिए अपने किराए को बढ़ाया है? पर गोएयर के किराए अब भी मार्केट में सबसे कम हैं। क्या यह आपको कोई चाल है?
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किराए को तय करने का पूरा खेल ही इस बात पर निर्भर करता है कि दूसरे क्या कर रहे हैं। जब तक चीजें ऐसी रहेंगी, किराए पर भी इसी तरह का प्रेशर बरकरार रहेगा। जब हमारे प्रतिद्वंद्वी किराए कम करेंगे, हम भी ऐसा करेंगे। गोएयर में हम इसी बात का ध्यान रखते हैं कि ज्यादा से ज्यादा बोझ हम खुद ही सह लें। वैसे, हम अब दूसरे सेक्टरों पर भी ध्यान दे रहे हैं।
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बाजार मे अब भी जगह बाकी है। क्या अभी यहां अपनी जगह मजबूत बनाने की गुंजाइश है?
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मेरी मानें तो वह वक्त कब का बीत चुका है। इस बाजार में अपनी जगह को मजूबत बनाने की काफी कवायद पहले ही की जा चुकी है। आज भारतीय आकाश में तीन-तीन सस्ती एयरलाइंस उड़ान भर रही हैं, जिनके निशाने पर मुख्य रूप से घरेलू बाजार ही है। वहीं, बड़े खिलाड़ियों की नजर अब विदेशी बाजारों पर जम चुकी है। इसके बाद अब क्षेत्रीय एयरलाइंस भी तो बाजार में उतरेंगी।
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वैसे उन्हें अपने निशान छोड़ने में अभी काफी समय लगेगा। इस बीच, घरेलू बाजार में अब भी काफी संभावनाएं बची हुए हैं। खास तौर पर सस्ती एयरलाइंस के लिए । भारत में तो बड़े उद्योग भी सस्ती एयरलाइंसों के धंधे में उतर रही हैं। साथ ही, वे इसका समर्थन भी कर रही हैं।
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क्या विमानों के लीज और उनकी कीमत में कमी आएगी? तो क्या इस कारण अभी एयरक्राफ्ट्स का ऑर्डर देना ठीक नहीं है?
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बिल्कुल, पिछले साल दुनिया भर में एयरक्राफ्टों के कई बड़े ऑडर दिए गए। मेरा मानना है कि वैश्विक मंदी को देखते हुए डिमांड में कमी तो जरूर आएगी। इससे इनकी कीमत जरूर कमी आएगी। जहां तक हमारी बात है, हम इस साल नए विमानों के ऑडर नहीं दे रहे। हम ज्यादा पैसे खर्च करने से बेहतर इंतजार करना समझते हैं। |
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