बिक्री के मोर्चे पर डॉ रेड्डीज दूसरे पायदान पर | बीएस संवाददाता / हैदराबाद April 07, 2014 | | | | |
सन फार्मास्युटिकल्स द्वारा रैनबैक्सी के अधिग्रहण के बाद डॉ रेड्डीज एक बार फिर बिक्री के लिहाज से भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों में दूसरे पायदान पर खिसक जाएगी। बेहतर मार्जिन के साथ सन फार्मास्युटिकल इस सूची में शीर्ष स्थान पर पहुंच जाएगी। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि अधिग्रहण के रास्ते पर काफी सतर्क होकर चलने वाली डॉ रेड्डीज विलय व अधिग्रहण के बजाय अपना मुनाफा मार्जिन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करेगी।
डॉ रेड्डïीज के चेयरमैन जीवी प्रसाद ने सन-रैनबैक्सी विलय की घोषणा पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए एक बयान में कहा, 'यह सन की अच्छी पहल है। यह उनकी खस्ताहाल परिसंपत्तियों को खरीदने की रणनीति के अनुकूल है।' ऐंजल रिसर्च की उपाध्यक्ष (अनुसंधान) सरबजीत कौर नांगरा ने कहा, 'डॉ रेड्डीज भी बड़े अधिग्रहण पर विचार कर सकती है क्योंकि उसके पास पर्याप्त नकदी भंडार मौजूद है। लेकिन उसके पास विकास की अपनी रणनीति है जिस पर वह अमल कर रही है।' प्रसाद ने भी अपने बयान में दोनों कंपनियों की रणनीतियों में अंतर की ओर इशारा किया है।
डॉ रेड्डïीज ने 2006 में जर्मनी की कंपनी बीटाफार्म का 2,550 करोड़ रुपये में अधिग्रहण किया था। लेकिन वह अनुभव कंपनी के लिए खराब रहा जिससे अधिग्रहण को लेकर उसका पूरा नजरिया ही बदल गया। इसके अलावा राजस्व के लिहाज से अधिग्रहण का कंपनी के खुद के कारोबार पर खास असर नहीं पड़ा था। विश्लेषकों के अनुसार, बाजार में मूल्यांकन और मुनाफा संबंधी आंकड़ों पर कहीं अधिक गौर किया जाता है। इस मोर्चे पर भारी मार्जिन के साथ सन फार्मास्युटिकल डॉ रेड्डïीज के मुकाबले कहीं आगे है।
जेन सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक सतीश कंथेटी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'पिछले साल सन फार्मा ने 11,687 करोड़ रुपये के राजस्व पर करीब 3,000 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा दर्ज किया था जबकि डॉ रेड्डीज के 12,045 करोड़ रुपये के राजस्व पर शुद्ध मुनाफा महज 1,500 करोड़ रुपये रहा था। इसलिए डॉ रेड्डïीज को राजस्व के बजाय मार्जिन में सुधार पर ध्यान देने की जरूरत है।'
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