इन दिनों दो श्रेणियों केफंड ने बाजार में हाल में निवेशकों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है-ये दो फंड हैं लिक्विड और लिक्विड प्लस फंड। हालांकि इस समय इन फंडों में ज्यादातर निवेश संस्थागत निवेशकों द्वारा किया जाता है लेकिन अब खुदरा निवेशक भी इन फंडों में निवेश से होनेवाले फायदे को महसूस करने लगे हैं। ये दोनों फंड खुदरा निवेशकों केलिए उनके लघु अवधि के सरप्लस का प्रबंधन करने में मददगार साबित हो सकते हैं। पिछले एक साल में लिक्विड फडों में निवेश करने पर निवेशकों को 7.7 से 8.85 प्रतिशत का रिटर्न मिला है जबकि लिक्विड प्लस फंड ने इससे थोड़ा ज्यादा ही 8.4-11.29 प्रतिशत का रिटर्न दिया है। निश्चित तौर पर इन फंडों पर मिलनेवाला रिटर्न आपके बचत खाते में जमा राशि पर मिलनेवाले 3 से 3.5 प्रतिशत के मुकाबले बेहतर रिटर्न देता है। आइए हम निवेश केइन विकल्पों पर विस्तार से चर्चा करें जिससे कि निवेशक इनमें निवेश करने के विभिन्न पहलुओं के बारे जान सकें और फैसला कर सकें।
लिक्विड फंड-इस फंड की राशि एक साल से कम परिपक्वता वाले डेट इंस्ट्रूमेंट में निवेश की जाती है। साधारण तौर पर लिक्विड फंड में निवेश करने पर ज्यादा तरलता, अपेक्षाककृत कम ब्याज दर और जोखिम की बहुत कम संभावना होती है। ये फंड ऐसे इंस्ट्रूमेंट में निवेश करते हैं जिनमें मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट, शॉर्ट-टर्म कॉर्पोरेट डिपॉजिट्स, लिक्विडिटी बिल और अन्य योजनाएं शामिल हैं। इनके परिपक्व होने की अवधि 3 से 6 महीने के बीच रखी जाती है। लिक्विडी फंड के साथ एक और अहम बात यह है कि उनके पास 10 प्रतिशत या उससे कम मार्क-टू- मार्केट कंपोनेंट हो सकता है जिससे अधिक ब्याज दरों का खतरा बहुत हद तक घट जाता है। जहां तक खर्च की बात है तो उस परिस्थिति में अगर निवेशक लॉक-इन-पीरियड में ही अपने निवेश को वापस ले लेते हैं तो फिर एक्जिट लोड का प्रावधान किया जाता है।
हालांकि ज्यादातर मामलों में यह अवधि बहुत ही कम यानी कि मात्र 7 से 10 दिन के बीच होती है। हालांकि इन खूबियों के अलावा इन फंडों के साथ कुछ नकारात्मक चीजें भी जुड़ी हुई हैं- लंबी अवधि के इंस्ट्रूमेंट द्वारा ऑफर किए जा रहे ऊंचे रिटर्न का लाभ उठा पाने में निवेशक सक्षम नहीं हो पाते हैं। लेकिन इसके अलावा भी सबसे ज्यादा सकारात्मक पक्ष यह है कि यद्यपि रिटर्न कम होने केकारण जोखिम की संभावना नाम मात्र की रह जाती है। इस कारण लिक्विड फंड शॉर्ट-टर्म फंडों के निवेश केलिए आदर्श विकल्प है।
लिक्विड प्लस फंड- इन फंडों को उन निवशकों को ध्यान में रख कर लांच किया गया जिनकी जोखिम उठाने क ी अपेक्षाकृत ज्यादा क्षमता है और जिनमें परिणामस्वरूप बेहतर रिटर्न भी मिलता है। किसी भी लिक्विड फंड में लिक्विड फंड की तरह ही निवेश का पैटर्न होगा लेकिन एक बात जो इसे लिक्विड फंडों से अलग करती है, वह यह कि ये फंड राशि का 30 प्रतिशत तक का निवेश अधिक परिपक्वता वाले इंस्ट्रूमेंट में करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इन फंडों केजरिये ज्यादा जोखिम
लेकर ज्यादा बेहतर रिटर्न कमाया जा सकता है।
इसके अलावा इन फंडों में निवेश के और भी फायदे हैं जैसे कि इन फंडों पर मार्क-टू-मार्केट निवेश कंपोनेंट को लेकर कोई सीमा तय नहीं की गई है(लिक्विड फंड सिर्फ 10 प्रतिशत का निवेश कर सकते हैं)। इन फंडों की श्रेणी में लॉक-इन-पीरियड का कहीं जिक्र नहीं मिलता है। लिक्विड प्लस फंड इस लिहाज से भी बेहतर माने जाते हैं कि ये करों की दृष्टि से भी सुविधाजनक हैं। जहां तक डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स॒ (डीडीटी) की बात है तो यह लिक्विड फंड के 28.33 प्रतिशत की तुलना में मात्र 14.16 प्रतिशत है। यह साफ है कि इन दोनों फंडों की पोजीशनिंग एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न है। कहने का तात्पर्य यह है कि ये दोनों फंड शॉर्ट-टर्म लिक्विड फंड और अन्य लांग-टर्म डेट फंड के बीच विकल्प चुनने का मौका देते हैं। अतः इस कारण यह उन निवशकों केलिए आकर्षक बन जाता है जो अधिक अवधि वाले निवेश विकल्प चुने बिना अपेक्षाकृत बेहतर रिटर्न चाहते हैं। अगर कोई इन दोनों फंडों के प्रदर्शन की तुलना करे तो रिटर्न में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं रहा है॒(टेबल देखें)। हालांकि एक निश्चित नियम केतहत बढ़ती ब्याज दरों के माहौल के बीच लांग-टर्म मैच्योरिटी पेपर्स को अधिक जोखिम भरा और वैल्यू में कम कर के आंका जाता है।
इससे लिक्विड फंड से
मिलनेवाले रिटर्न में कुछ घाटा हो सकता है।
हालांकि हाल केदिनों में कठिन कारोबारी माहौल और इसके परिणामस्वरूप निवेशकों में डर समा जाने के कारण इन दोनों फंडों के एसेट अंडर मैंनेजमेंट को जोरदार झटका लगा है। खासकर कॉर्पोरेट निवेशक इस क्षेत्र की जोखिम उठाने की क्षमता में क मी आ जाने केकारण अब इन फंडों में निवेश करने में सावधानी बरतने लगे हैं। चूंकि लिक्विड प्लस फंडों के लिए टैक्स ट्रीटमेंट बहुत ज्यादा फायदेमंद हो गया है, अतः कोई नेट-ऑफ टैक्स की बात करता है तो उस स्थिति में भी यह बेहतर काम करेगा। यह इस बात का कारण हो सकता है कि क्यों खुदरा निवेशक शॉर्ट टर्म में निवेश में अधिक जोखिम होने के बावजूद इसे एक तर्कसंगत और बेहतर विकल्प मानते हैं।
इन दिनों दो श्रेणियों केफंड ने बाजार में हाल में निवेशकों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है-ये दो फंड हैं लिक्विड और लिक्विड प्लस फंड। हालांकि इस समय इन फंडों में ज्यादातर निवेश संस्थागत निवेशकों द्वारा किया जाता है लेकिन अब खुदरा निवेशक भी इन फंडों में निवेश से होनेवाले फायदे को महसूस करने लगे हैं। ये दोनों फंड खुदरा निवेशकों केलिए उनके लघु अवधि के सरप्लस का प्रबंधन करने में मददगार साबित हो सकते हैं। पिछले एक साल में लिक्विड फडों में निवेश करने पर निवेशकों को 7.7 से 8.85 प्रतिशत का रिटर्न मिला है जबकि लिक्विड प्लस फंड ने इससे थोड़ा ज्यादा ही 8.4-11.29 प्रतिशत का रिटर्न दिया है। निश्चित तौर पर इन फंडों पर मिलनेवाला रिटर्न आपके बचत खाते में जमा राशि पर मिलनेवाले 3 से 3.5 प्रतिशत के मुकाबले बेहतर रिटर्न देता है। आइए हम निवेश केइन विकल्पों पर विस्तार से चर्चा करें जिससे कि निवेशक इनमें निवेश करने के विभिन्न पहलुओं के बारे जान सकें और फैसला कर सकें।
लिक्विड फंड-इस फंड की राशि एक साल से कम परिपक्वता वाले डेट इंस्ट्रूमेंट में निवेश की जाती है। साधारण तौर पर लिक्विड फंड में निवेश करने पर ज्यादा तरलता, अपेक्षाककृत कम ब्याज दर और जोखिम की बहुत कम संभावना होती है। ये फंड ऐसे इंस्ट्रूमेंट में निवेश करते हैं जिनमें मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट, शॉर्ट-टर्म कॉर्पोरेट डिपॉजिट्स, लिक्विडिटी बिल और अन्य योजनाएं शामिल हैं। इनके परिपक्व होने की अवधि 3 से 6 महीने के बीच रखी जाती है। लिक्विडी फंड के साथ एक और अहम बात यह है कि उनके पास 10 प्रतिशत या उससे कम मार्क-टू- मार्केट कंपोनेंट हो सकता है जिससे अधिक ब्याज दरों का खतरा बहुत हद तक घट जाता है। जहां तक खर्च की बात है तो उस परिस्थिति में अगर निवेशक लॉक-इन-पीरियड में ही अपने निवेश को वापस ले लेते हैं तो फिर एक्जिट लोड का प्रावधान किया जाता है।
हालांकि ज्यादातर मामलों में यह अवधि बहुत ही कम यानी कि मात्र 7 से 10 दिन के बीच होती है। हालांकि इन खूबियों के अलावा इन फंडों के साथ कुछ नकारात्मक चीजें भी जुड़ी हुई हैं- लंबी अवधि के इंस्ट्रूमेंट द्वारा ऑफर किए जा रहे ऊंचे रिटर्न का लाभ उठा पाने में निवेशक सक्षम नहीं हो पाते हैं। लेकिन इसके अलावा भी सबसे ज्यादा सकारात्मक पक्ष यह है कि यद्यपि रिटर्न कम होने केकारण जोखिम की संभावना नाम मात्र की रह जाती है। इस कारण लिक्विड फंड शॉर्ट-टर्म फंडों के निवेश केलिए आदर्श विकल्प है।
लिक्विड प्लस फंड- इन फंडों को उन निवशकों को ध्यान में रख कर लांच किया गया जिनकी जोखिम उठाने क ी अपेक्षाकृत ज्यादा क्षमता है और जिनमें परिणामस्वरूप बेहतर रिटर्न भी मिलता है। किसी भी लिक्विड फंड में लिक्विड फंड की तरह ही निवेश का पैटर्न होगा लेकिन एक बात जो इसे लिक्विड फंडों से अलग करती है, वह यह कि ये फंड राशि का 30 प्रतिशत तक का निवेश अधिक परिपक्वता वाले इंस्ट्रूमेंट में करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इन फंडों केजरिये ज्यादा जोखिम
लेकर ज्यादा बेहतर रिटर्न कमाया जा सकता है।
इसके अलावा इन फंडों में निवेश के और भी फायदे हैं जैसे कि इन फंडों पर मार्क-टू-मार्केट निवेश कंपोनेंट को लेकर कोई सीमा तय नहीं की गई है(लिक्विड फंड सिर्फ 10 प्रतिशत का निवेश कर सकते हैं)। इन फंडों की श्रेणी में लॉक-इन-पीरियड का कहीं जिक्र नहीं मिलता है। लिक्विड प्लस फंड इस लिहाज से भी बेहतर माने जाते हैं कि ये करों की दृष्टि से भी सुविधाजनक हैं। जहां तक डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स॒ (डीडीटी) की बात है तो यह लिक्विड फंड के 28.33 प्रतिशत की तुलना में मात्र 14.16 प्रतिशत है। यह साफ है कि इन दोनों फंडों की पोजीशनिंग एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न है। कहने का तात्पर्य यह है कि ये दोनों फंड शॉर्ट-टर्म लिक्विड फंड और अन्य लांग-टर्म डेट फंड के बीच विकल्प चुनने का मौका देते हैं। अतः इस कारण यह उन निवशकों केलिए आकर्षक बन जाता है जो अधिक अवधि वाले निवेश विकल्प चुने बिना अपेक्षाकृत बेहतर रिटर्न चाहते हैं। अगर कोई इन दोनों फंडों के प्रदर्शन की तुलना करे तो रिटर्न में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं रहा है॒(टेबल देखें)। हालांकि एक निश्चित नियम केतहत बढ़ती ब्याज दरों के माहौल के बीच लांग-टर्म मैच्योरिटी पेपर्स को अधिक जोखिम भरा और वैल्यू में कम कर के आंका जाता है।
इससे लिक्विड फंड से
मिलनेवाले रिटर्न में कुछ घाटा हो सकता है।
हालांकि हाल केदिनों में कठिन कारोबारी माहौल और इसके परिणामस्वरूप निवेशकों में डर समा जाने के कारण इन दोनों फंडों के एसेट अंडर मैंनेजमेंट को जोरदार झटका लगा है। खासकर कॉर्पोरेट निवेशक इस क्षेत्र की जोखिम उठाने की क्षमता में क मी आ जाने केकारण अब इन फंडों में निवेश करने में सावधानी बरतने लगे हैं। चूंकि लिक्विड प्लस फंडों के लिए टैक्स ट्रीटमेंट बहुत ज्यादा फायदेमंद हो गया है, अतः कोई नेट-ऑफ टैक्स की बात करता है तो उस स्थिति में भी यह बेहतर काम करेगा। यह इस बात का कारण हो सकता है कि क्यों खुदरा निवेशक शॉर्ट टर्म में निवेश में अधिक जोखिम होने के बावजूद इसे एक तर्कसंगत और बेहतर विकल्प मानते हैं।