लघु बचत योजनाओं की घटती चमक! | क्लिफर्ड अल्वारिस / February 09, 2014 | | | | |
कई निवेशक अब लघु बचत योजनाओं की ओर रुख कर रहे हैं। दरअसल वे सरकारी योजनाओं में सुरक्षा के भाव को अधिक तरजीह दे रहे हैं। पोंजी योजनाओं में भरोसा खोने और रकम गंवाने के बाद निवेशक एक बार फिर डाकघर जमा और राष्टï्रीय बचत पत्र (एनएससी) में निवेश कर रहे हैं।
2013-14 में लघु बचत योजनाओं से संग्रह वापस सकारात्मक दायरे में आ गय है। इससे पहले इन निवेश योजनाओं की हालत खासी खराब थी और लोग बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट और फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान को तवज्जो दे रहे थे।
भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 में सभी सरकारी योजनाओं से 21,800 करोड़ रुपये का प्रवाह बाद दूसरी योजनाओं में हुआ था। 2012-13 में यह प्रवाह कम होकर 9400 करोड़ रुपये रह गई। इस वित्त वर्ष इन योजनाओं में प्रवाह 1,100 करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है। जानकारों का कहना है कि निवेशक बाजार में इस समय जोखिम लेने से डर रहे हैं, इसलिए अब इन योजनाओं में निवेश कर रहे हैं। वाइजइन्वेस्ट के मुख्य कार्याधिकारी हेमंत रुस्तगी कहते हैं, 'निवेशक की भी कई श्रेणियां होती हैं और इनमें कुछ जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। भारत में ज्यादातर निवेशकों के लिए पूंजी नुकसान का खतरा है। ऐसे में पोर्टफोलियो में लघु बचत योजनाओं के लिए स्थान है। हालांकि लघु योजनाओं से प्रतिफल भी अच्छा मिलता है, लेकिन निचले कर दायरे में आने वाले लोग पूंजी सुरक्षा के कारण अधिक इन योजनाओं के प्रति आकर्षित होते हैं।Ó कुछ मामलों में ये बैंक डिपॉजिट से अच्छे होते हैं, लेकिन महंगाई के मुकाबले प्रतिफल उतना नहीं होता है। मिसाल के तौर पर एक साल के टाइम डिपॉजिट पर सालाना 8.2 प्रतिशत ब्याज मिलता है, जबकि इतनी ही अवधि में एफडी पर 8 प्रतिशत प्रतिफल मिलता है। इस समय उपभोक्ता सूचकांक 9.67 प्रतिशत है। जानकारों का कहना है कि निवेशकों को बेहतर प्रतिफल तो मिल रहे हैं, लेकिन महंगाई के कारण पूंजी गंवाने के जोखिम के लिए इन योजनाओं में प्रावधान नहीं हुए हैं। लोकप्रिय राष्टï्रीय बचत पत्र 8.5 प्रतिशत ब्याज की पेशकश करता है और इसके साथ 5 साल की लॉक इन अवधि होती है।
हालांकि बड़ी संख्या में निवेशकों के लिए उन लोकप्रिय योजनाओं में व्यापक बदलाव हो सकते हैं। अगर मौद्रिक नीति पर उरिजित समिति की सिफारिश मंजूर होती है तो बदलाव हो सकते हैं। पहले भी लघु बचत योजनाओं पर ब्याज में बदलाव हुए हैं। इससे पहले 1 अप्रैल को 2013 को बदलाव हुए थे, जब ब्याज दरें 10 आधार अंक कम की गई थीं। पटेल समिति का कहना है कि जब भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कमी कर रहा था तो निवेशक ऊंचे प्रतिफल के लिए लघु बचत योजनाओं का रुख कर रहे थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सालाना बदलावों से लघु बचत योजनाओं को दूसरी योजनाओं को टक्कर देने में मदद मिल रही है। इस लिहाज से छमाही या तिमाही बदलाव लागू होने चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो बाजार दरों के अनुसार लघु बचत योजनाओं पर प्रतिफल हरेक तीन महीने पर बदल सकते हैं। यह प्रतिफल में 10 साल की अवधि की सरकारी प्रतिभूतियों की बराबरी कर सकती हैं। जाहिर है, इससे निवेशकों को मिलने वाले अंतिम प्रतिफल पर असर पड़ेगा। मिसाल के तौर पर अगर 10 साल की परिपक्वता वाली सरकारी प्रतिभूतियां 7 प्रतिशत प्रतिफल देना शुरू करती हंै तो लघु बचत योजनाओं पर प्रतिफल भी घटाकर 7 प्रतिशत के बराबर किया जा सकता है। लैंडर7 फाइनैंशियल एडवाइजर्स के वित्तीय सलाहकार सुरेश सदगोपन कहते हैं, 'बाजार की दरों के अनुसार ही इन योजनाओं पर प्रतिफल मिलेंगी। इससे ये योजनाएं बैंक डिपॉजिट या अन्य फिक्स्ड इनकम साधनों के मुकाबले उतनी आकर्षक नहीं रह जाएंगी।'
दूसरे जानकारों का कहना है कि अगर बाजार में ब्याज दरें बढ़ेंगी तो इन योजनाओं के निवेशकों को लाभ होगा लेकिन बाजार में दरें कम होने से निवेशकों के लिए योजनाएं उतनी आकर्षक नहीं रह जाएंगी। रस्तौगी कहते हैं, 'बाजार दरों में हरेक साल बदलाव होते हैं। यह देखते हुए कि ज्यादातर निवेशक अपनी पूंजी की सुरक्षा के लिए लघु बचत योजनाओं में आए हैं, दरों में अक्सर बदलाव की फिलहाल जरूरत नहीं है। भारत में सामाजिक सुरक्षा का अभाव है और निवेशक भी जानते हैं कि 12 से 14 प्रतिशत ब्याज का दौर अब खत्म हो गया है। इस लिहाज से ब्याज दरें सालाना आधार पर ही तय की जानी चाहिए।'
डाकघर मासिक योजनाओं की बात करें तो मासिक आय योजना लोकप्रिय हैं, लेकिन एक खाते में अधिकतम 4.5 लाख रुपये और संयुक्त खाते में 9 लाख रुपये ही रखे जा सकते हैं। रुस्तगी कहते हैं, 'यह उन कुछ योजनाओं में जहां निवेशकों को सतत आय की प्राप्ति हो रही है। निवेश पर सीमा तय है लेकिन जो निवेशक नियमित आय चाहते हैं वे इनमें निवेश करते हैं।Óहालांकि जानकारों का कहना है कि अगर आप ऊंचे कर दायरे में हैं तो इन योजनाओं से आपको करोपरांत पर्याप्त प्रतिफल नहीं मिल सकता है। रुस्तगी कहते हैं, 'ऊं चे कर दायरे में आने वाले लोगों के लिए इसमें निवेश करना अर्थपूर्ण नहीं होगा।Ó
लघु बचत योजनाओं में सार्वजनिक भविष्य निधि अब भी लोकप्रिय है, क्योंकि इस पर कर नहीं लगता है। रुस्तगी का कहना है कि कर मुक्त आय होने के कारण पीपीएफ हरेक के निवेश सूची में होना चाहिए।
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