विदेश में डॉलर और रुपये के बीच फंसे अफसर | वीनू संधू और जोएल राय / नई दिल्ली December 22, 2013 | | | | |
पूर्व राजनयिकों का कहना है कि खोब्रागडे-रिचर्ड जैसे घरेलू नौकरों से जुड़े स्थानीय कानूनों के उल्लंघन के मामलों में राजनयिक मानदंडों और द्विपक्षीय संबंधों को नजरअंदाज किया जाता है। बता रही हैं वीनू संधू और जोएल राय...
बीते कुछ दिनों में न्यूयॉर्क के घटनाक्रम और वहां पर भारत की उप महावाणिज्य दूत देवयानी खोब्रागडे की गिरफ्तारी पर भारत द्वारा न सिर्फ राजनयिक स्तर पर दी गई प्रतिक्रिया बल्कि भारतीय अधिकारियों से जुड़े मामले और उनके घरेलू नौकरों से जुड़ी रोजगार की शर्तें भी इन दिनों खासी चर्चा में आ गई हैं। अपनी घरेलू नौकरानी संगीता रिचर्ड के साथ हुए वित्तीय करार का कथित तौर पर गलत ब्योरा देने और अमेरिकी कानूनों में तय रकम से कम भुगतान करने पर खोब्रागडे की गिरफ्तारी विदेश में तैनात भारतीय राजनयिक पर कार्रवाई का पहला मामला नहीं है। इससे पहले 2010 में अमेरिका में तैनात नीना मल्होत्रा के खिलाफ उनकी नौकररानी शांति गुरुंग ने अनुबंध की तुलना में कम वेतन देने के मामले में मुकदमा दर्ज कर 14.6 लाख डॉलर देने की मांग की थी। न्यूयॉर्क में महावाणिज्य दूत प्रभु दयाल पर भी उनके कर्मचारी संतोष भारद्वाज ने इसी तरह के आरोप लगाए थे।
भारत सरकार को व्यक्तिगत वेतन करारों को लेकर हुई किरकिरी से ज्यादा वर्तमान मामले में खोब्रागडे की गिरफ्तारी, कपड़े उतारकर तलाशी लेना और सामान्य अपराधियों के साथ जेल में रखा जाना खासा नागवार गुजरा है। कथित अपराध की तुलना में यह कार्रवाई बेमेल नजर आती है। 'जैसे को तैसेÓ के सिद्घांत पर भारत सरकार ने नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास और देश में उसके वाणिज्य दफ्तरों में तैनात वहां के कार्यबल के राजनयिक दर्जे की समीक्षा करने का फैसला किया। भारत का कहना है कि खोब्रागडे के राजनयिक दर्जे का सम्मान नहीं किया गया, जबकि न्यूयॉर्क के डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी का कहना है कि वह एक वाणिज्य अधिकारी हैं, जिन्हें पूरी राजनयिक छूट हासिल नहीं है।
किसी देश में तैनात राजनयिक को कानूनी कार्रवाई से छूट दो समझौतों वियना कन्वेंशन ऑन डिप्लोमैटिक रिलेशंस और वियना कन्वेंशन ऑन काउंसलर रिलेशंस के आधार पर तय होती हैं। कराची में तैनात रहे पूर्व भारतीय महावाणिज्य दूत राजीव डोगरा, जिन्होंने रोमानिया और इटली में राजनयिक के तौर पर भी सेवाएं दीं, बताते हैं कि दो वियना समझौतों में दूतावास में तैनात राजनयिक और वाणिज्य दूत के पद पर मिलने वाली छूट (सुविधाओं) में अंतर है। वह कहते हैं, 'वियना कन्वेंशन ऑन काउंसिल रिलेशंस के तहत वाणिज्य अधिकारियों को अपने अधिकारिक कदमों और किसी दीवानी मामलों से छूट हासिल है, लेकिन गंभीर अपराध के मामलों में ऐसा नहीं है।'
उन्होंने कहा कि इसके विपरीत राजनयिकों को किसी भी आरोप में कानूनी तौर पर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। इस प्रकार जहां खोब्रागडे को अमेरिकी कानूनों के तहत गिफ्तारी का सामना करना पड़ा, वहीं इससे पहले का भी एक उदाहरण है जब 2012 में लंदन में भारतीय दूतावास में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी अनिल वर्मा राजनयिक दर्जे (जिन्हें मामले के बाद तुरंत वापस भारत बुला लिया गया था) के कारण घरेलू हिंसा के मामले में गिरफ्तारी से बच गए थे।
हालांकि छोटे-मोटे अपराधों को हमेशा सरकारी विभागों द्वारा अपने विवेक से निपटाया जाता रहा है, ऐसे में अक्सर संबंधित अधिकारियों को चुपचाप अपने देश में वापस बुला लिया जाता है। अफगानिस्तान में रहे पूर्व उच्चायुक्त विवेक काटजू ने 'द इंडियन एक्सप्रेसÓ में अपने लेख में लिखा, 'बीते चार दशकों के दौरान अमेरिकी और यूरोपीय देशों की सरकारों ने इस (राजनयिक) दृष्टिकोण में कमी की है और अपने स्थानीय कानूनों को दूतावासों और वाणिज्य दफ्तरों से जुड़े मामलों में लाद दिया है।'
कुछ ऐसा खोब्रागडे के मामले में नजर आता है। साउथ न्यूयॉर्क के डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी प्रीत भरारा ने भारतीय राजनयिक के गलत जानकारी (रिचर्ड के साथ वित्तीय लेनदेन के बाबत करार के संबंध में) देने और घरेलू नौकरानी को कम भुगतान करने पर कानून के मुताबिक कार्रवाई के लिए लिखा था। भरारा न्यूयॉर्क में तैनात दूसरे देशों के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर भी चर्चित रहे हैं, हालांकि मीडिया में आई खबरों में दावा किया गया कि रूसी माफिया द्वारा हिंसा के मामले में उन्होंने अमेरिका-रूस संबंधों के प्रभावित होने के डर से रूसी अधिकारियों पर कार्रवाई के परहेज किया था। डोगरा कहते हैं, 'खोब्रागडे को वाणिज्य दूत की छूट हासिल थी और उनका मामला कुछ खास नहीं था। ऌपेचीदगियों को छोड़ भी दें तो यहां एक महिला के साथ सार्वजनिक स्तर पर व्यवहार का मामला भी है। कोई भी कानून नहीं कहता है कि एक पुलिसकर्मी शालीनता की हद पार कर सकता है या उसे ऐसा करना चाहिए।'
भरारा द्वारा तय मामले के मुताबिक रिचर्ड को प्रति घंटे 9.75 डॉलर के साथ ही सप्ताह में एक छुट्टी, स्वास्थ्य कारणों से सातों दिन छुट्टी और सातों दिन सवेतन अवकाश की सुविधा मिलनी चाहिए, जबकि रिचर्ड सभी गैर कामकाजी दिनों में भी उपलब्ध थीं, वहीं वह 30,000 रुपये वेतन पर भी सहमत थी। न्यूयॉर्क के अटॉर्नी के द्वारा की गई गणना के मुताबिक यह 3 डॉलर प्रति घंटे से कुछ ज्यादा होता है। पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त जी पार्थसारथि ने कहा, 'वाणिज्य दफ्तरों में घरेलू कर्मचारियों को भुगतान की शर्तें भारत सरकार द्वारा तय की गई हैं। यह सरकार ही है जो उनके हवाई टिकट, खाने और रहने का भुगतान करती है।' भारतीय मानदंडों के तहत घरेलू नौकर के लिए 30,000 रुपये देना काफी ज्यादा है, जिसके साथ ही मुफ्त रहना और खाना, साथ में भारत में मुफ्त कॉल की सुविधा भी दी जाती है।
मेरिकी नियमों के तहत प्रति घंटा 9.75 डॉलर के हिसाब से रिचर्ड को हर महीने एक लाख रुपये वेतन मिलना चाहिए था। पार्थसारथि कहते हैं, 'अमेरिका की दलील है कि खोब्रागडे को नियमों के तहत वेतन नहीं मिल रहा था, गलत है।' वियना कन्वेंशन ऑन काउंसलर रिलेशंस में सामाजिक सुरक्षा से संबंधित छूट से जुड़ा भाग है। इस भाग का खंड 1 कहता है कि वाणिज्य दफ्तरों के सदस्यों को सामाजिक सुरक्षा के प्रावधानों से छूट हासिल है, जो दूसरे देशों पर लागू हो सकते हैं। इसी प्रकार खंड 2 वाणिज्य दूतावास के सदस्यों के निजी कर्मचारी उस देश के सामाजिक सुरक्षा के प्रावधानों से अलग होते हैं, क्योंकि वे उस देश के नागरिक नहीं होते और उन पर मूल देश के सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान लागू होते हैं। रिचर्ड के मामले में उसका वेतन और सुविधाओं ने उन शर्तों को पूरा किया है, जो खोब्रागडे को गिरफ्तारी से बचाता है।
अधिकारी यह संकेत देते हैं कि घरेलू विवाद अक्सर तब सामने आते हैं जब रसोइये, आया और नौकरों को लगता है कि वे विदेश में हैं और अगर वे अपने भारतीय नियोक्ता की नौकरी छोड़ दें तो ज्यादा कमाई कर सकते हैं। समझा जाता है कि रिचर्ड अपनी छुट्टïी के दिनों में खोब्रागडे के घर से अलग कहीं दूसरी जगह काम करना चाहती थी। मगर उसे बताया गया कि ऐसा करना उन नियमों के विरुद्ध होगा, जिसके तहत उसे वाणिज्य दफ्तर में नौकरी मिली है।
घरेलू नौकरों को अपने आधिकारिक पासपोर्ट पर राजनयिक अधिकारियों के साथ यात्रा करनी पड़ती है और कहीं अन्य नौकरी की तलाश करते समय उसे पासपोर्ट और वीजा में बदलाव कराना पड़ता। पार्थसारथि बताते हैं कि जब वह ऑस्ट्रेलिया में उच्चायुक्त थे तो इटली के उच्चायुक्त ने उनके रसोइये को पार्थसारथि के घर पर मिल रहे वेतन की तुलना में 10 गुने वेतन की पेशकश की थी। उन्होंने बताया, 'एक बार मेरा कार्यकाल खत्म होने के बाद मैंने अपने कर्मचारी को भारत से वीजा में बदलाव में मदद दिलाई। उसके पासपोर्ट को आधिकारिक से सामान्य में तब्दील कर दिया गया। तभी रसोइया कहीं अन्य काम करने के लिए आजाद हो सका।'
भारतीय राजनयिकों में अमेरिका की कार्रवाई को लेकर आक्रोश भी है। डोगरा कहते हैं, 'हम भारत में अमेरिकी वाणिज्य दूत के अधिकारियों को राजनयिक जैसी छूट दे रहे हैं। यह हमारी कमजोरी का प्रतीक है।' डोगरा मैनहट्टन की तत्कालीन उप वाणिज्य दूत देवाशिष विश्वास की 18 वर्षीय बेटी कृतिका विश्वास को न्यूयॉर्क में अपने शिक्षकों को आपत्तिजनक ईमेल भेजने पर हथकड़ी लगाई गई और पुलिस अधिकारियों ने गिरफ्तारी के बाद उसे बुरी तरह धमकाया भी था। राजनयिक की बेटी होने के चलते उसे छूट हासिल थी, लेकिन अमेरिकी अभियोजकों ने इसकी परवाह नहीं की। डोगरा सवाल करते हैं, 'बाद में पता चला कि वे ईमेल एक चीनी छात्र द्वारा भेजे गए थे, लेकिन उस छात्र को गिरफ्तार नहीं किया गया था। क्या यह भेदभाव नहीं है?'
भारत सरकार द्विपक्षीय संबंधों को अनावश्यक अड़चनों से बचाने के लिए अपने राजनयिकों के सभी घरेलू कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारियों की श्रेणी में डालने पर विचार कर रही है। यह राजनयिकों को तैनाती वाले देश में रोजगार से संबंधित वित्तीय लेनदेन पर किसी तरह की कार्रवाई से बचाएगा। विदेश मंत्रालय पहले ही इसके लिए मंजूरी के वास्ते वित्त मंत्रालय से संपर्क कर चुका है और खोब्रागडे के मामले से प्रस्ताव को गति मिल सकती है।
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