अमेरिकी मंदी की वजह से पहले ही बेजार चल रहे भारतीय कॉर्पोरेट जगत के बीच लीमन ब्रदर्स के दिवालिया होने की खबर ने आज बम ही फोड़ दिया।
लीमन ब्रदर्स के दिवालिया होने और मेरिल लिंच को बैंक ऑफ अमेरिका के हाथों बेचे जाने की बात सुनते ही देश भर के कॉर्पोरेट जगत के चेहरे पर भी मुर्दानी छा गई। दो दर्जन से भी ज्यादा कारोबारियों और कंपनी प्रमुखों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस नई आफत से वैश्विक स्तर पर पूंजी का प्रवाह और भी कम हो जाएगा।
हालिया गिरावट से उबरने की भारतीय शेयर बाजार की उम्मीदों पर भी पानी फिर गया है। अब शेयर अच्छा प्रदर्शन करें या न करें, निवेशकों को मुनाफा तो नहीं होगा। कंपनियों के मुताबिक शेयर बाजार तो उन्हें कोई सहारा नहीं देगा।
बुरे हालात बाकी
जुबिलैंट ऑर्गनोसिस के को चेयरमैन और प्रबंध निदेशक हरि एस भरतिया ने कहा, 'एक महीने पहले हमें लग रहा था कि सबसे बुरे हालात अब गुजर चुके हैं।' अवंता समूह के चेयरमैन गौतम थापर ने कहा, 'हमें देखना पड़ेगा कि नकदीकरण की प्रक्रिया किस तरह से चलती है। अच्छी प्रतिभूतियां भी अब काफी छूट के साथ खरीद ली जाएंगी।'
बात करने वालों में से तीन चौथाई से ज्यादा का यही कहना था कि हालात और बिगड़ सकते हैं और अगले छह महीने में मुश्किलें बढ़ेंगी। नोवार्तिस इंडिया के वाइस चेयरमैन और प्रबंध निदेशक रंजीत साहनी ने कहा, 'अभी तो हमें बहुत आगे जाना है। लगभग 1,300 अरब डॉलर के नकारात्मक ऋण में से अभी केवल एक तिहाई का ही निपटारा किया गया है। यह साफ है कि अभी और तकलीफ होगी।'
कर्ज मिलना मुश्किल
आयशर मोटर्स के मुख्य परिचालन अधिकारी विनोद अग्रवाल का नजरिया भी कुछ अलग नहीं था। उन्होंने कहा, 'अमेरिका में दिवालिया होने की घटनाएं बढ़ने से भारत में भी बैंक कर्ज देने के अपने कानून सख्त कर देंगे, जिसकी वजह से ऋण लेना और भी मुश्किल हो जाएगा।'
असाही इंडिया ग्लास के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी संजय लब्रू ने कहा, 'अमेरिका में बैंकों के साथ हो रही इन घटनाओं से निराशा का माहौल बढ़ रहा है। इसका मतलब है कि बकाया की हालत बहुत खराब है।'
कॉर्पोरेट जगत ने एक सुर से माना कि इस धक्के के बाद विदेशों में रकम उगाहना टेढ़ी खीर हो जाएगा। घर में तो ब्याज की दरें अगले चुनाव तक आसमान पर ही रहनी हैं। एक बड़े निजी इक्विटी कोष के प्रमुख ने कहा कि भारतीय कंपनियों के लिए रकम उगाहना अब आसान नहीं रहा।
फंसेंगे छोटे कारोबारी
ब्याज की दरें पहले ही 14-15 फीसद हैं, ऐसे में छोटे कारोबारियों के हाल तो अब बेहाल होने जा रहे हैं। टीवीएस मोटर कंपनी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक वेणु श्रीनिवासन ने कहा, 'अगर लागत नहीं बढ़ती है और वित्त आसानी से उपलब्ध हो जाता है, तब भी दोपहिया उद्योग के लिए 15 फीसद सालाना विकास की दर बरकरार रखना आसान नहीं होगा।'
सीमेंट और इस्पात निर्माताओं को भी अब मुनाफे का मार्जिन कटता दिख रहा है। पूंजी की लागत बढ़ने के साथ ही अब कमोडिटी की कीमतें भी गिर जाएंगी।