चीन में आ रहा नया दौर हमारा रुख है किस ओर? | आकाश प्रकाश / November 22, 2013 | | | | |
चीन में सुधारों के नये दौर का जो खाका तैयार किया गया है, वह काफी मजबूत है उसमें भारत के लिए भी सबक छिपे हुए हैं। इस संबंध में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं आकाश प्रकाश
बीते शुक्रवार को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं केंद्रीय समिति की बैठक के दौरान तीसरी पूर्ण बैठक में सुधार संबंधी विस्तृत दस्तावेज जारी किया गया। इस दस्तावेज में सुधार योजनाओं का विस्तृत ब्योरा है जो पहले नहीं देखने को मिला था। अनेक निवेशकों ने इसे चीन के शीर्ष नेतृव्व की सुधार के प्रति गंभीरता का स्पष्टï संकेत माना है। अब एक बार फिर उम्मीद जगी है कि चीन और लंबी अवधि के विकास को लेकर उसकी संभावनाओं को लेकर चर्चाओं का दौर नए सिरे से शुरू होगा।
सुधारों को और गहराई प्रदान करने संबंधी फैसले से जुड़ा समूचा दस्तावेज कई पहलों का जिक्र करता है।
इसमें मुक्त बाजार की ओर पेशकदमी के अलावा एक संतान वाली नीति में ढील, श्रमिकों के शिविरों को हटाने तथा जमीन के इस्तेमाल की अवधि में सुधार, सरकारी उद्यमों कराधान और प्रवासी कामगारों के अधिकारों में सुधार जैसी तमाम बातें शामिल हैं। सुधारों के इस खाके और भ्रष्टïाचार विरोधी अभियान ने शी चिनपिंग को अपने पूर्ववर्ती हू चिंताओ की तुलना में बेहद आक्रामक ओर दूरदर्शी नेता के रूप में पेश किया है।
उन्होंने दिखाया है कि उनको चीन की ढांचागत अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे की अच्छी समझ है और वह देश के गहन प्रशासनिक मसलों को हल करने की दिशा में एक योजना लेकर आ रहे हैं। वह सरकारी उद्यमों, विभिन्न सरकारी संस्थाओं और बड़े छोटे अधिकारियों के प्रतिरोध से निपटने के लिए भी प्रशासनिक व्यवस्था लाने जा रहे हैं।
इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उन्हें सफलता मिलेगी ही लेकिन ये कदम और घोषणाएं दिखाती हैं कि शी चिनपिंग के पास चीन के भविष्य को लेकर एक मजबूत दृष्टिïकोण है और बदलाव की कोशिश करने तथा निहित स्वार्थी तत्त्वों के विरुद्घ खड़े होने की राजनीतिक इच्छाशक्ति भी है।
वह चीन में बाजार का दखल बढ़ाना चाहते हैं। इस दस्तावेज से तीन बातें महत्त्वपूर्ण रूप से सामने आती हैं। शी चिनपिंग केवल आर्थिक नीतियों पर ही ध्यान नहीं दे रहे हैं बल्कि उनकी नजर व्यापक सुधारों पर है।
इसका मतलब है सरकारी एजेंसियों को बाजार में सीधा हस्तक्षेप करने से रोकना और बाजार के नियमन पर ध्यन देना, सार्वजनिक वितरण प्र्रणाली, सामाजिक प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण पर काम करना। केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर प्रशासन में सुधार लाना उनका मुख्य लक्ष्य नजर आता है। यह बात चीन की आर्थिक समस्याओं के लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण है। फिर चाहे वह अत्यधिक निवेश खर्च का मामला हो या स्थानीय सरकार के कर्ज अथवा गैरकानूनी वित्तीय व्यवस्था की, इन सबका संबंध खराब प्रशासन से ही तो है। शी सामाजिक
पार्टी की ओर से सबसे तगड़ा संकेत था निजी क्षेत्र और बाजार के लिए समर्थन। हालांकि पार्टी अभी भी निजी क्षेत्र शब्द के इस्तेमाल से परहेज करती है और इसे गैर सरकारी कहा जाता है। लेकिन उसने यह घोषणा की है कि गैर सरकारी अर्थव्यवस्था में संपत्ति के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया जाएगा। दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि पार्टी केंद्र सरकार द्वारा वृहद स्तर के मामलों में दखल को कम करेगी। इसके अलावा सरकारी हस्तक्षेप कम करने की बात भी कही गई।
दस्तावेज का पहला हिस्सा संसाधनों के आवंटन में बाजार को निर्णायक भूमिका दिए जाने से संबंधित है जबकि वर्ष 1993 के बाद से जारी किए गए तमाम मूल दस्तावेज में ऐसा उल्लेख नहीं था। स्पष्टï है कि उनका लक्ष्य है सभी स्तरों पर कीमतों अथवा प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन में सरकार का हस्तक्षेप कम करना। एक ओर जहां चीन ने जहां अपने उत्पाद से जुड़े बाजार को मोटे तौर पर अनियमित कर दिया है वहीं सरकारी संस्थाएं अभी भी बाजार में हस्तक्षेप करने में सक्षम हैं। इस क्रम में वे पूंजी, ऊर्जा अथवा जमीन के मामले में अपनी पसंदीदा कंपनियों को छूट देते हैं। इसके अलावा नियम कायदे कुछ ऐसे हैं कि कुछ खास क्षेत्रों में नई कंपनियों के लिए बाजार में प्रवेश और परिचालन थोड़ा मुश्किल भरा है।
दस्तावेज का स्पष्टï इरादा इन सभी बाजार विरोधी विसंगतियों को दूर करना है। दस्तावेज में कहा गया है कि किसी भी स्वामित्व व्यवस्था में संपत्ति की कीमतें ही केंद्र में होंगी। उसने मुक्त प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ताओं के मुक्त चयन की बात भी कही है। पार्टी ने प्रशासनिक और नौकरशाही के स्तर पर व्याप्त बाधाएं दूर करने की बात भी कही है। दस्तावेज में बौद्घिक संपदा अधिकारों के बेहतर संरक्षण की बात भी कही गई है। इस दस्तावेज के जरिये शी ने यह स्पष्टï कर दिया है कि उनका सत्ता प्रतिष्ठïान पर पूरा नियंत्रण है। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री ली कछ्यांग इस पूरी कवायद के दौरान मीडिया कवरेज से लगभग नदारद रहे।
दस्तावेज की सबसे निराश करने वाली बात यह है कि सरकारी क्षेत्र में आक्रामक सुधारों अथवा निजीकरण योजनाओं की अनुपस्थिति। अधिकांश पर्यवेक्षकों का मानना है कि चीन की घटती उत्पादकता वृद्घि और बढ़ता कर्ज का स्तर दोनों सरकारी क्षेत्र की नाकामी से जुड़े हुए हैं। इस क्षेत्र के पास बैंकों का काफी कर्ज है और बदले में उनकी उत्पादकता न के बराबर है। दस्तावेज से यह भी स्पष्टï है कि एक ओर जहां सरकारी उद्यमों का निजीकरण नहीं किया जाएगा वहीं उन्हें अधिक प्रतिस्पर्धा तथा सख्त नियमन का सामना भी करना होगा। यह बात प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की पार्टी की येाजना के अनुरूप ही नजर आती है।
चीन एक बार फिर विकास पथ पर चलता नजर आ रहा है। उसे एक मजबूत और ऐसा नेता मिल गया है जो निर्णय लेने में सक्षम है। इतना ही नहीं यह नेता बाजार और प्रशासनिक स्तर पर सुधार को लेकर भी प्रतिबद्घ है। चीन ने अपनी विकास संबंधी बाधाओं और पुराने आर्थिक मॉडल को पहचान लिया है। ऐसा लग रहा है कि वे आने वाले दिनों में अपनी पुरानी कमियों से पार पाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
अनेक निवेशक आने वाले दिनों में चीन की 7 फीसदी की संभावित विकास दर को लेकर आश्वस्त महसूस करेंगे। भारत के मौजूदा प्रदर्शन और चीन द्वारा दिखाई गई प्रतिबद्घता के बीच का अंतर बहुत बड़ा है। हमारे पास न तो नेतृत्व क्षमता संपन्न नेता है न ही हमारे पास 7-8 फीसदी की विकास दर दोबारा हासिल करने के लिए जरूरी नीति नजर आ रही है।
हमें अगर अपनी संस्थागत कमजोरियों से पार पाना है और जमीनी स्तर पर ठोस कदम उठाने हैं तो हमें मिलजुलकर काम करना होगा तथा एक मजबूत खाका तैयार करना होगा। केवल बयानबाजी से काम चलने वाला नहीं है। हमें याद रखना चाहिए कि निवेशक हमेशा ऐसा ही धैर्य नहीं दिखाएंगे।
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