देव दीपावली की रात बाती और तेल में होता है करोड़ों का कारोबार | अजय मिश्र / November 17, 2013 | | | | |
प्रकाश पर्व दीपावली के बाद कार्तिक पूर्णिमा पर एक और दीपावली आयोजित होती है जिसका भारतवासियों को ही नहीं बल्कि विदेशियों को भी इंतजार रहता है। 'देव दीपावलीÓ के नाम से प्रसिद्घ यह दीपावली कार्तिक पूर्णिमा की शाम को वाराणसी में मनाई जाती है, जब सूर्यास्त होते ही गंगा के किनारे-किनारे 7.5 किलोमीटर तक मौजूद सभी 84 घाटों में एक साथ लाखों दीपक जल उठते हैं। उनकी अनूठी छटा देखने हजारों देसी-विदेशी सैलानी यहां पहुंचते हैं, जिनकी वजह से स्थानीय लोगों को एक ही रात में करोड़ों रुपये का कारोबार मिलता है।
प्रचलित मान्यता के मुताबिक प्राचीन काल में त्रिपुरासुर नाम के राक्षस ने तीनों लोकों में आतंक मचाया था, जिसका भगवान शंकर ने वध कर दिया। उस दिन देवताओं में स्वर्ग में दीपावली मनाई थी। एक अन्य कथा के मुताबिक काशिराज देवदास ने देवताओं से नाराज होकर काशी में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था। बाद में ब्रह्मïा जी के कहने पर प्रतिबंध हटाया गया। इस खुशी में देवताओं ने कार्तिक महीने में स्थानीय पंचगंगा घाट पर स्नान कर दीपक जलाए थे। तभी से गंगा किनारे घाटों की सीढिय़ों पर दिये जलाने और 'देव दीपावलीÓ मनाने की परंपरा चली आ रही है।
पिछले दो-ढाई दशक में यह पर्व इतना मशहूर हो गया है कि दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं। दशाश्वमेध घाट पर तो देव दीपावली पर इंडिया गेट का मॉडल भी बनाया जाता है, जहां सेना के तीनों अंगों से अधिकारी और जवान अमर जवान ज्योति पर फूल चढ़ाकर श्रद्घांजलि देते हैं। इसके पीछे भी यह मान्यता है कि कार्तिक के महीने में ऋषि-मुनि, देवता और मृतात्माएं आकाश में विचरण करती हैं और उनकी याद में दीपक जलाने से उन्हें शांति मिलती है। इसकी मौके पर गंगा की महा आरती भी होती है।
कहानियां और मान्यताएं जो भी कहें, इस पर्व का बड़ा फायदा स्थानीय कारोबारियों को भी होता है। यहां के बड़े व्यापारी नंदलाल अरोड़ा बताते हैं कि इस आयोजन को यादगार बनाने के लिए लोग दिल खोलकर खर्च करते हैं। महज कुछ घंटे के आयोजन में 45 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार होता है। व्यापारी विनय गुप्ता और घनश्याम जायसवाल ने बताया कि देव दीपावली का बाजार पर्यटकों की वजह से सालाना 20 से 25 फीसदी बढ़ रहा है।
यहां होटल-रेस्तरां और गेस्ट हाउस इसी त्योहार पर करीब 20 करोड़ रुपये का कारोबार कर लेते हैं। इसकी बड़ी वजह देसी-विदेशी पर्यटकों के साथ कंपनियां भी हैं, जिनके आला अधिकारी सपरिवार यहां ठहरते हैं। इस बार भी यहां करीब 350 होटल, 250 लॉज और 200 गेस्ट हाउसों के सभी कमरे छह महीने पहले ही बुक हो चुके हैं और कहीं जगह खाली नहीं है। इन अधिकारियों को देव दीपावली दिखाने का जिम्मा स्थानीय आयोजन समितियां लेती हैं और बदले में कंपनियां उन्हें लाखों रुपये के विज्ञापन देती हैं।
पर्यटकों की वजह से इस मौके पर वाराणसी में टूर-ट्रैवल उद्योग भी करीब 3 करोड़ रुपये कमाता है। नौका विहार कराने वाले मल्लाहों और मोटर बोटों को 2.5 करोड़ रुपये की कमाई हो जाती है। करीब 2 लाख रुपये के मिट्टïी के दिये ही इस दिन बिक जाते हैं और उनके लिए 50,000 रुपये की रुई की बत्तियां तथा करीब 10 लाख रुपये का सरसों का तेल खरीदा जाता है। करीब 1 करोड़ रुपये की आतिशबाजी भी देव दीपावली पर जलाई जाती है। इसके अलावा स्थानीय शिल्पकारों से बनारसी साडिय़ां, स्फटिक और रुद्राक्ष का सामान भी खरीदा जाता है।
केंद्रीय देव दीपावली समिति के महासचिव वागीश मिश्र ने बताया कि पहले यह आयोजन केवल पंचगंगा घाट पर होता था, लेकिन 1990 के दशक से यह सभी घाटों और शहर-गांवों के तालाबों-कुंडों तक पहुंच गया है। शीतला घाट पर देव दीपावली का आयोजन कराने वाली गंगोत्री सेवा समिति के मनीष दुबे ने बताया कि गंगा किनारे और आसपास के मकानों की छतों पर दिये जलाकर यह पर्व मनाने में करीब 10 लाख रुपये खर्च किए जाते हैं। दशाश्वमेध घाट पर पर्व आयोजित करने वाली गंगा सेवा निधि की पूर्व सचिव भावना त्रिवेदी ने बताया कि 2001 के बाद से यह त्योहार ज्यादा भव्य हो गया है औश्र अब समिति इस पर 15 से 20 लाख रुपये खर्च करती है।
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