पूरब का मैनजेस्टर कहे जाने वाले कानपुर में दो दशक पहले 12 टेक्सटाइल मिलें अपने शबाब पर थीं। लेकिन जब हम नई शताब्दी में प्रवेश करने लगे तो इन मिलों पर भी खतरा मंडराने लगा।
अंतत: इसमें से कई मिलें बंद हो गईं। ऐल्गिन मिल, जेके कॉटन और जूट मिल्स, कानपुर टेक्सटाइल मिल, अथर्टन जैसी कंपनियां तो बंद हो गई और सरकार द्वारा चल रही इकाई लाल-इमली भी काफी खराब हालत में है। यह मिल ब्रिटिश इंडस्ट्रियल कॉरपोरेशन (बीआईसी) के अनुदानों पर निर्भर है।
टेक्सटाइल मिलों के पतन का एक बहुत बड़ा कारण हड़ताल और काम बंदी रहा है। इसी वजह से अधिकारी और प्रबंधक इसे फिर से चला पाने में अपनी रुचि नही दिखाते थे। कानपुर विश्वविद्यालय में बिजनेस स्टडीज के प्रोफेसर अनिमेश मिश्रा के मुताबिक, कानपुर के जिन क्षेत्रों में ये मिलें हुआ करती थी, वहां निर्माताओं को पहुंचने में काफी दिक्कतें होती थी।
इसकी वजह यह थी कि शहर में बदलते समय के साथ बुनियादी ढांचों में परिवर्तन नही हुआ। यही वजह थी कि ये निर्माता महाराष्ट्र को प्राथमिकता देने लगे। क्योंकि एक तो वहां उन्हें कच्चा माल आसानी से मिल जाता था और दूसरा कि अन्य राज्यों से मुंबई का संपर्क भी काफी बेहतर था।
शहर ने कुछ प्रमुख औद्योगिक इकाइयां जैसे डंकन फर्टिलाइजर प्लांट, एलएमएल स्कूटर फैक्ट्री, स्वदेशी हाउस और नौ अन्य टेक्सटाइल मिलें भी खो दीं। इसकी वजह बुनियादी ढांचा में विकास की कमी और बिजली आपूर्ति में बाधा रही।
राष्ट्रीय टेक्सटाइल कॉरपोरेशन (एनटीसी) और ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन (बीआईसी) भी ऐसी इकाइयां हैं, जो गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रही हैं। शहर में जिन चार विशेष आर्थिक क्षेत्र की बात चल रही थी, वह भी अधिग्रहण और रियायत के विवादित मसलों की वजह से खटाई में पड़ गया है।