बाजार में तेजी आने से न पालें कोई गलतफहमी | आकाश प्रकाश / October 25, 2013 | | | | |
देश के शेयर बाजारों में आई उछाल के बाद नीति निर्माताओं को यह भरोसा नहीं कर लेना चाहिए कि सबकुछ अच्छा चल रहा है। विस्तार से जानकारी दे रहे हैं आकाश प्रकाश
अचानक सबकुछ बहुत अच्छा नजर आने लगा है। अमेरिका में एसऐंडपी 500 अपने अब तक के उच्चतम स्तर पर है और यहां तक कि हमारे देश में निफ्टी भी एक नए स्तर के करीब है। आखिर क्या बदलाव आया हैï? और शेयरों में निवेश करने वाले लोग अचानक इतने उत्साहित क्यों नजर आने लगे हैं जबकि महज कुछ सप्ताह पहले मंदडिय़े कह रहे थे कि रुपया डॉलर के मुकाबले 75 तक गिर सकता है और तमाम कारोबारी अखबार ऐसी खबरों से भरे हुए थे कि कैसे देश को अगले एक साल के दौरान 140 अरब डॉलर के कर्ज का भुगतान करना है। यह भी कहा जा रहा था कि देश से पूंजी के बाहर जाने का संकट लगातार बना हुआ है। लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि रुपया स्थिर नजर आ रहा है और एफआईआई के जरिये आने वाली पूंजी लगातार बढ़ रही है। इस वक्त वैश्विक स्तर पर शेयर बाजारों में भारत की स्थिति काफी बेहतर मानी जा रही है।
इस तमाम बातों की शुरुआत फेडरल रिजर्व की क्वांटिटेटिव ईजिंग में कटौती को टालने और हर माह 85 अरब डॉलर मूल्य की सरकारी प्रतिभूतियां खरीदना जारी रखने का फैसला करने से हुई। मौद्रिक प्रोत्साहन में कमी न होने से मौद्रिक हालात और ब्याज दरें सामान्य हो जाएंगी और कोई खास जोखिम भी नहीं नजर आएगा। अमेरिका में 18 दिन सरकारी बंदी रहने तथा डेमोक्रेट तथा रिपब्लिकन सांसदों के बीच खींचतान जारी रहने की आशंका के दरमियान अब ऐसा लगता है कि वर्ष 2014 की पहली तिमाही तक मौद्रिक प्रोत्साहन में कमी की कोई गुंजाइश नहीं है।
सितंबर की रोजगार रिपोर्ट कमजोर थी और अक्टूबर और नवंबर की रिपोर्ट पर भी हालिया बंदी का असर रहेगा। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था और वहां रोजगार की स्थिति की वास्तविक हालत पता नहीं चल पाएगी। फेडरल रिजर्व ने स्पष्ट कहा है कि कटौती का कोई भी फैसला आंकड़ों पर आधारित होगा ऐसे में यह कल्पना करना कठिन है कि ऐसा नए साल के पहले होगा।
इस बीच जैनेट येलेन को फेडरल रिजर्व के नई गवर्नर के रूप में नामित किया गया है। येलेन को स्वभाव से थोड़ा शांत माना जाता है और कहा जा सकता है कि उनके नेतृत्व में केंद्रीय बैंक अधिक चौकस विकास के मोर्चे पर समायोजन करने वाला होगा। इस बात का स्पष्टï जोखिम उनके सामने होगा कि अगर इस मौद्रिक प्रोत्साहन को जल्द कम किया गया तो क्या कुछ समस्याएं हो सकती हैं।
उधर वॉशिंगटन में डेट डील के बाद बाजारों ने ऐसे परिदृश्य में काम करना आरंभ कर दिया है जहां वैश्विक स्तर पर तमाम केंद्रीय बैंक आपसी समायोजन कर रहे हैं और उभरते बाजारों में स्थिरता का माहौल बना हुआ है। बॉन्ड प्रतिफल और डॉलर में गिरावट आई है और शेयरों में हर तरफ उछाल देखने को मिल रही है। चीन के आंकड़ों में भी सुधार देखने को मिला है। इससे यह संकेत मिलता है कि संभवत: बाजार ने उभरते बाजारों के संकट को लेकर एक किस्म की अतिरंजित प्रतिक्रिया दी हो।
तेजडिय़ों ने अब वैश्विक स्तर पर मौद्रिक तरलता के एक और दौर की उम्मीद करनी शुरू कर दी है। डॉलर में आगे जितनी कमजोरी आएगी उतनी ही इस बात की संभावना बढ़ती जाएगी कि यूरोपीय केंद्रीय बैंक और बैंक जापान नीतिगत शिथिलता बरतें। दोनों में से कोई भी अपनी मुद्राओं का अधिमूल्यन होते नहीं रहने दे सकता।
कमजोर डॉलर और कमजोर अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल ने उभरते बाजारों के नीति निर्माताओं को कुछ वक्त दे दिया है कि वे अपनी स्थिति सुधार सकें। भारत की
बात करें तो अर्थव्यवस्था की मूलभूत स्थिति में सुधार के लिए बाजार में एक आपाधापी जरूरी थी जो हमें अमेरिका द्वारा क्वांटिटेटिव ईजिंग कम करने की आशंका के बाद देखने को मिल रही थी। क्योंकि उसके बाद ही नीति निर्माताओं ने ढांचागत कमियों पर ध्यान देना शुरू किया। क्योंकि अब हमारे पास समय था कि हम इन समस्याओं से निजात पाने की दिशा में आगे बढ़ सकें।
बाजार में आई हालिया तेजी को अगर भारत में भरोसे के नए सिरे से जमने के रूप में देखा जा रहा है तो यह सही नहीं है। ऐसा करना लंबी अवधि के दौरान देश की विकास संबंधी संभावनाओं के साथ ज्यादती होगी। ऐसा वैश्विक स्तर पर नकदी की स्थिति बेहतर होने की वजह से हुआ है, यही वजह है कि भारत जैसे बाजारों का प्रदर्शन सुधरा है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था के मूल ढांचे में कोई सुधार अचानक आ गया है। अगर सुधारों को अंजाम नहीं दिया गया तो इस बात की संभावना बहुत कम है कि लंबी अवधि के दौरान देश में निवेश के इच्छुक निवेशक देश को लेकर सकारात्मक रुख अपनाएंगे।
निवेशकों को कतई यह यकीन नहीं है कि देश 8 फीसदी विकास दर के दायरे में वापस लौट जाएगा। लंबी अवधि के लिए पूंजी जुटाने के क्रम में यह जरूरी है कि हम अपनी बुनियाद मजबूत करें। एक देश के रूप में अभी भी वैश्विक पूंजी को लेकर हम पर जोखिम बरकरार है। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि एक न एक दिन अमेरिका का केंद्रीय बैंक क्यूई में कमी करेगा और ब्याज दरों तथा तरलता की स्थिति सामान्य होगी। ऐसे में हम इन हालात पर निर्भर नहीं रह सकते।
रिजर्व बैंक और देश के नीति निर्माताओं ने पिछले कुछ महीनों के दौरान कुछ साहस यकीनन दिखाया। इस दौरान उन्होंने न केवल फैसले लिए हैं बल्कि काम भी किया है। लेकिन हमें बहुत आश्वस्त होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि बहुत कुछ किया जा चुका है। बाजार में आई उछाल निवेशकों के भरोसे में बढ़ोतरी का संकेत नहीं है।
परियोजनाओं को दी जाने वाली मंजूरी में इजाफा, परिसंपत्ति आवंटन में पारदर्शिता और चालू खाता घाटे में कमी करने जैसे कदम उठाना अत्यंत आवश्यक हैं। हम इस मायने में भाग्यशाली रहे हैं कि बाजार की तंग स्थिति ने हमारे नीति निर्माताओं को जगाया। अब हमारे पास मौका है कि हम अपनी घरेलू स्थिति को दुरुस्त कर सकें।
जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे हम पर जोखिम पहले की तरह ही मंडराता रहेगा। ढांचागत सुधार की कमी हमें एक बार फिर गिरावट की ओर ले जाएगी। यह केवल वक्त की बात होगी कि इसमें कितना समय लगता है। अगर मुद्रा में एक बार फिर गिरावट आई तो यह दिन जल्दी देखना पड़ सकता है। इन हालात से बचने के लिए क्या करना है वह भी हमारे सामने स्पष्टï है। उम्मीद करते हैं कि शेयर बाजार में आई उछाल ने नीतिनिर्माताओं के मन में यह गलत भरोसा नहीं पैदा किया होगा कि सब ठीक है।
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