ग्राहक के लिए खरीद हुई आकर्षक | जयदीप घोष और प्रिया नायर / October 16, 2013 | | | | |
कार लोन 15 फीसदी पर, पर्सनल लोन 14.5 फीसदी, कंज्यूमर ड्ïयूरेबल लोन जीरो फीसदी पर ... क्या ये दरें सही हैं? इसका जवाब है नहीं।
राजेश नायर (नाम बदला हुआ) का उदाहरण ले लीजिए, जो यह मानने को तैयार नहीं हैं कि कि उन्होंने अपने एयर-कंडीशनर (एसी) की खरीदारी पर किसी तरह का ब्याज नहीं चुकाया है। वह कहते हैं, 'खरीद के समय एसी की जो कीमत थी, उसे किस्तों में बांट दिया गया।Ó
इसलिए उन्हें अपने क्रेडिट कार्ड के जरिये बिना ब्याज योजना के तहत एसी की खरीद पर कोई ब्याज नहीं चुकाना पड़ा। उनकी मासिक किस्त थी: 12 महीनों के लिए 4166 रुपये। हालांकि नायर को 1000 रुपये प्रोसेसिंग फीस के तौर पर देने पड़े। वह कहते हैं, 'उनकी खरीदारी की कुल कीमत 50,000 रुपये थी जिसमें महज 1000 रुपये का अतिरिक्त भुगतान बहुत ज्यादा नहीं है।Ó
उन्होंने दो कारणों से यह अतिरिक्त कीमत देने से परहेज नहीं किया। पहला, नकदी में एसी खरीदने के लिए उनके पास रकम नहीं थी और साथ ही 4166 रुपये की किस्त उनकी जेब पर अधिक बोझ भी नहीं थी। दूसरा, उन्हें खुशी थी कि वे बगैर ब्याज कोई चीज खरीद रहे हैं।
एक बैंक ने पहचान गुप्त रखे जाने की शर्त पर बताया, 'चूंकि बैंक आधार दर से नीचे ऋण नहीं दे सकते, इसलए तकनीकी तौर पर जीरो फीसदी पर ऋण या शून्य ब्याज ईएमआई योजना संभव नहीं है।Ó
निश्चित तौर पर ऐसी योजनाएं 'टीजिंगÓ स्कीम (ग्राहकों को लुभाने वाली) हैं जिनको भारतीय रिजर्व बैंक की इजाजात नहीं है। केंद्राय बैंक ने अपने नए निर्देश में बैंकों से कहा है कि वे शून्य ब्याज योजनाओं की ललचाऊ पेशकश न करें। आमतौर पर ऐसी योजनाओं की पेशकश त्योहार के अवसर पर की जाती रही हैं। इनकी जटिलता को देखते हुए ज्यादातर विश्लेषकों की राय है कि ग्राहकों को अपने डीलर के साथ छूट सौदेबाजी करनी चाहिए। बैंक बाजार डॉटकॉम के मुख्य कार्याधिकारी आदिल शेट्टïी की सलाह है, 'अगर आप पूरे पैसे दे रहे हैं और किसी तरह की छूट के हकदार हैं तो फिर इसके लिए बात कीजिए। साथ ही, यह भी ध्यान रखें कि फाइनैंस की स्थिति में उस योजना में किसी तरह का ट्रांंजेक्शन शुल्क तो नहीं वसूला जा रहा है। अगर आप खरीद से जुड़ी सभी शर्तों को लेकर संतुष्टï नहीं हैं तो फिर ऐसी फाइनैंस योजनाओं से दूर रहना ज्यादा अच्छा है।Ó
आरबीआई का कहना है कि ग्राहक को यह पता होना चाहिए कि एसी 45,000 रुपये में उपलब्ध है और इस पर 5000 रुपये का लागत खर्च (प्रशासनिक और प्रोसेसिंग शुल्क) अलग से लगेगा। बैंकों को यह इजाजत भी नहीं होगी कि वे किसी छिपी हुई लागत या ब्याज दर को डिस्काउंट में शामिल करें। इसलिए कार लोन और पर्सनल लोन (जिनमें डीलर या डायरेक्ट सेलिंग एजेंट लाभ उठाते हैं) में खरीदार को बैंक द्वारा वसूली जाने वाली वास्तविक ब्याज दर बतानी होगी, फिर चाहे तो वह डीलर से डिस्काउंट हासिल कर सकता है।
इससे खासकर कार लोन के मामले में मूल धन में कमी लाने में मदद मिलेगी। उदाहरण के लिए कोई बैंक डीलर को 11 फीसदी की दर पर 4 लाख रुपये का पांच वर्षीय ऋण की पेशकश कर रहा है और डीलर का लाभ 5 फीसदी है। यदि डीलर इस लाभ का तीन फीसदी (12,000 रुपये) आपको देता है तो मूल धन उस अनुपात में नहीं घटेगा क्योंकि आप 4 लाख रुपये के शुरुआती मूल धन के साथ ऋण का भुगतान शुरू कर चुके होते हैं। नई व्यवस्था में नकदी लाभ को ऋण की रकम से घटा दिया जाएगा। इसलिए नया मूल धन ऋण अवधि की शुरुआत में 3.88 लाख रुपये होगा। यह तभी फायदेमंद होगा जब आप ऋण को तय अवधि से पहलेचुकाना चाहते हों।
अपना पैसा डॉटकॉम के मुख्य कार्याधिकारी हर्ष रूंगटा कहते हैं, 'बाजार में पारदर्शिता लाने के बारे में आरबीआई के निर्देश कई वर्ष पुराने हैं, लेकिन इन पर अमल नहीं किया गया है। नए परिपत्र में व्यापक जानकारी दी गई है और सख्त रुख से आरबीआई के इरादों का संकेत मिलता है। यदि ऐसा हुआ तो टीवी-फ्रिज और वाशिंग मशीन जैसे नए या पुराने सामान के अलावा कार ऋण बाजार भी बड़े पैमाने पर असर होगा। क्योंकि इससे बड़े पैमाने पर डीएसए (डायरेक्ट सेल्स एजेंट) का कमीशन जुड़ा हुआ है।Ó
अगली बार यदि विक्रेता किसी डेबिट कार्ड से हुए लेनदेन पर आपसे कोई शुल्क वसूले तो आपको उसे यह बताना चाहिए कि आप बैंक को इसकी सूचना देंगे। सामान्य तौर पर विक्रेता कंपनी डेबिट कार्ड के जरिये हुए ट्रांजेक्शन पर दो फीसदी शुल्क वसूलती है जिसे ट्रांजेक्शन फीस का नाम दिया जाता है। आरबीआई के सर्कुलर में कहा गया है, 'ऐसे शुल्क उचित नहीं हैं। बैंक और व्यापारी के बीच हुए समझौते में इसकी अनुमति भी नहीं है, इसलिए ऐसे व्यापारियों के साथ बैंकों को संबंध समाप्त कर लेना चाहिए।Ó
बैंकों का कहना है कि इस पर रोक लगने के बाद उन्हें त्योहार के दौरान मांग बढ़ाने के लिए सस्ती ईएमआई ऑफर जैसे अन्य उपाय अपनाने होंगे। उन्हें ऐसे निर्देशों के अमल में दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है। एक निजी बैंक के वरिष्ठï अधिकारी ने कहा, 'इन पर अमल करना काफी कठिन होगा। बैंकों और व्यापारियों के बीच समझौते में व्यापारियों को ग्राहकों से फीस (जो वे बैंकों को चुकाते हैं) लेने से नहीं रोका गया है। इसलिए ये समझौते क्यों रद्द किए जाएंगे? इसमें यह निगरानी रखने में भी कठिनाई हो सकती है कि कोई व्यापारी इस तरह का शुल्क वसूल रहा है या नहीं।Ó
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