कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि पंजाब में चावल के उत्पादन में बढ़ोतरी की कोई गुंजाइश नहीं बची है।
चावल का उत्पादन यहां अपने चरम सीमा पर है और इसमें बढ़ोतरी के लिए नयी तकनीक के साथ हाइब्रिड धान के इस्तेमाल की जरूरत है। उत्पादन में बढ़ोतरी नगण्य होने से आने वाले समय में देश की मांग के मुकाबले चावल की कमी हो सकती है।
पिछले चार सालों के आंकड़ों के मुताबिक पंजाब में चावल के उत्पादन में बहुत ही मामूली बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। उत्पादकता भी नहीं बढ़ी है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक कई सालों से चावल की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 39 क्विंटल के आसपास है। जबकि उत्पादन 101-104 लाख टन के बीच। पंजाब में पिछले 4-5 सालों से 26 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की खेती की जा रही है।
अब किसी भी परिस्थिति में धान की बुवाई का क्षेत्रफल नहीं बढ़ाया जा सकता है। पीएयू के शिक्षक एमएस सिध्दू कहते हैं, 'पंजाब में कुल 50 लाख हेक्टेयर जमीन है। और इनमें से 42 लाख हेक्टेयर पर खेती की जा रही है। अब भला और कहां खेती की जाएगी। सिंचाई की सुविधा भी यहां चरम पर है। यहां की 97 फीसदी जमीन सिंचाई सुविधा से लैस है जबकि देश में यह औसत मात्र 40 फीसदी का है।'
वे सवाल उठाते हैं कि 10 साल के बाद क्या होगा। पंजाब चावल उत्पादन के मामले में पहले पायदान पर है और यहां उत्पादन के स्थिर होने पर स्थिति विकट हो सकती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि चीन में चावल की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 60 क्विंटल है। और पंजाब की उत्पादकता को भी इस स्तर पर लाया जा सकता है।
लेकिन इसके लिए हाइब्रिड किस्म के धानों का प्रयोग करना होगा या फिर बहुत ही उम्दा तकनीक से खेती करनी पड़ेगी। भारत में चावल की औसत उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल है। सिध्दू कहते हैं, 'अगर आप ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत लेते हैं तो फिर क्या बचता है वैसी ही स्थिति पंजाब के साथ चावल उत्पादन में हो गयी है।' सरकार के समक्ष यह बड़ी चुनौती है और इस पर तुरंत ध्यान दिया जाना चाहिए।