हकीकत में यह एक प्रजाति को मौत के मुहाने से वापस लाने का एक प्रयास है। हिमालयी बटेर को पिछली बार 1876 में देखा गया था, लेकिन उत्तराखंड के वन विभाग का मानना है कि यह पक्षी अभी भी जिंदा हो सकती है। इसे पहली बार साबित करने वाले को बड़ी रकम इनाम में दी जाएगी। वन विभाग ने अंग्रेजी और हिंदी के अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित करवाकर इस चिडिय़ा को दोबारा खोजने का अभियान शुरू किया है, जिसमें चिडिय़ा की खूबियों और उसकी आदतों का उल्लेख किया गया है। उन्होंने हिमालयी बटेर के उत्तराखंड के जंगलों में जिंदा होने के पक्के सबूत सौंपने वाले को एक लाख रुपये का पुरस्कार देने की भी घोषणा की है। लेकिन इस चिडिय़ा में अब अचानक इतनी दिलचस्पी क्यों जगी है? कुमाऊं मंडल के मुख्य वन संरक्षक परमजीत सिंह ने कहा, 'भारत में अक्टूबर का पहला सप्ताह 'वन्य जीव सप्ताहÓ के रूप में मनाया जाता है। हमने सोचा कि इस पक्षी की खोज के लिए यह उपयुक्त समय है।' हिमालयी बटेर मध्यम आकार की तीतर कुल की प्रजाति थी। इस प्रजाति का नर पक्षी गहरे हरे रंग का होता था। इस पर काले धब्बे होते थे और इसका सिर सफेद रंग का होता था। वहीं, मादा पक्षी का रंग भूरा होता है, जिस पर काली धारियां होती हैं और भौंहे भूरे रंग की होती हैं। लाल रंग की चोंच और टांगे इसे अन्य बटेर प्रजातियों से अलग करती हैं। इसकी पूंछ अन्य बटेर से लंबी थी। यह 5-6 के झुंड में रहता है और यह लंबी घास से ढंकी पहाडिय़ों की तेज ढलानों पर रहना पसंद करता है। पक्षीविज्ञानियों का कहना है कि सुबह के अलावा हिमालयी बटेर का खुले में दिखना बहुत दुर्लभ होता था। यह खतरे से बचने के लिए उडऩे के बजाय दौड़ता है और ऐसा लगता है कि इसके पंख लंबी दूरी तक उडऩे के लिए नहीं हैं। बटेर को 19वीं सदी के मध्य में नैनीताल, मसूरी और झरीपानी के आसपास देखा गया था। कहा जाता है कि ये देश के अन्य जंगलों में रहने लगे हैं। इसे खेल पक्षी के रूप में जाना जाता था। ब्रिटिश अधिकारी फुर्सत के क्षणों में इसका शिकार किया करते थे। संभवतया बड़े पैमाने पर शिकार से 1870 के आसपास यह लुप्त हो गया। लंदन के नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में संरक्षित ऐसे करीब पांच पक्षियों को देखा जा सकता है। भारत में भी ऐसे 11 पक्षी संरक्षित हैं। बटेर को फिर से खोजने की वन विभाग की उम्मीद पिछले कुछ वर्षों के दौरान इनके दिखाई देने की अपुष्ट खबरों पर आधारित है। उत्तराखंड वन विभाग की उम्मीदें इस बात से भी बढ़ी हैं कि अंतरराष्ट्रीय पक्षी संरक्षण संघ या आईयूसीएन ने हिमालयी बटेर के विलुप्त होने की आधिकारिक घोषणा नहीं की है। सिंह कहते हैं, 'हमें पूरा विश्वास है कि कुमाऊं में कोई न कोई जरूर इन्हें खोजेगा।' अगर कोई स्थानीय व्यक्ति बटेर को खोज लेता है तो यह पक्षी 'लैजरस टैक्सॉन' समूह का सदस्य बन जाएगा। यह समूह उन पक्षियों का है, जो लुप्त हो गए हैं और उन्हें फिर से खोजा गया है। इस समूह के सदस्य विस्मित करने वाले हैं। उदाहरण के लिए कोएलकंथ मछली। इसके बारे में माना गया था कि यह लुप्त हो चुकी है, लेकिन 1938 में इसे दक्षिण अफ्रीका में खोज निकाला गया। इसी तरह कैस्पियन घोड़े के बारे में माना गया कि घोड़े की यह प्राचीन प्रजाति 7 शताब्दी में विलुप्त हो गई, लेकिन इसे 1960 में जिंदा पाया गया और आज कुछ देशों में इनका प्रजनन किया जा रहा है।
