नया नाम भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन विधेयक 2012 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकारऐसे हुई शुरुआत यह विधेयक भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 की जगह लेगा। इस दिशा में पहला कदम एक दशक पहले राजग सरकार के दौरान उठाया गया था। लेकिन आर ऐंड आर नीति तैयार करने के बाद ही सरकार गिर गई। बाद में आई संप्रग सरकार ने एक के बाद एक लगातार तीन बार विधेयक तैयार किया गया। 2007 में लोकसभा में भूमि अधिग्रहण (संशोधन) विधेयक और पुनर्वास व पुनव्र्यवस्थापन विधेयक पेश किया गया। संप्रग ने विधेयक दोबारा तैयार किया और जयराम रमेश के ग्रामीण विकास मंत्री बनने के बाद विधेयक का तीसरा संस्करण सामने आया। 2011 में स्थायी समिति की सिफारिशों के साथ विधेयक पर फिर से काम किया गया। नए शीर्षक के साथ तैयार संस्करण में सरकार का मुख्य ध्यान त्वरित अधिग्रहण के बजाय वाजिब मुआवजे पर था।मुख्य बातेंसरकार निजी परियोजनाओं के लिए जमीन का अधिग्रहण कर सकती है, लेकिन इसके लिए 80 फीसदी भूस्वामियों की सहमति जरूरी है। पीपीपी के लिए 70 फीसदी की सहमति चाहिए। प्रभावित परिवारों की पहचान के लिए एसआईए या सामाजिक प्रभाव आकलन के बाद भूमि अधिग्रहण शुरू किया जाएगा। इन्हीं से सहमति ली जाएगी। प्रभावित परिवार मुआवजा पाने के हकदार होंगे, जो ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार मूल्य का चार गुना और शहरी क्षेत्र में दोगुना होगा। जमीन देने वालों और आजीविका गंवाने वालों को मुआवजा मिलेगा। प्रभावित परिवार के लिए आर ऐंड आर में 5 लाख रुपये या एक नौकरी, अगर उपलब्ध है, एक साल के लिए मासिक 3,000 रुपये का भत्ता, 1.25 लाख रुपये के मिश्रित भत्ते।अगर अधिग्रहीत जमीन का आवंटन नहीं हुआ है तो विधेयक पिछली तारीख से लागू होगा। अगर अधिग्रहण पांच साल पहले हुआ है लेकिन मुआवजा नहींं दिया गया या कब्जा नहीं लिया तो भी विधेयक लागू होगा। विधेयक अधिग्रहण के बजाय पर पट्टे पर लेने की अनुमति देता है, लेकिन फैसला सरकार पर निर्भर करेगा किसी भी विवाद के निपटारे के लिए भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास व पुनव्र्यवस्थापन प्राधिकरण बनाया जाएगाक्यों निराश है उद्योग उद्योग को लगता है कि अधिग्रहण की रफ्तार सुस्त हो जाएगी, क्योंकि एसआईए और ईआईए व सहमति एक साथ संभव नहीं होगी। उद्योग को मुआवजे और विलंब से परियोजनाओं की लागत पांच गुना हो जाने की चिंता है। उद्योग पिछली तारीख के प्रावधान से भी नाखुश है।सामाजिक संगठन और किसान क्यों निराश हैं सामाजिक संगठनों को लगता है कि विधेयक में सार्वजनिक उद्देश्य की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है। बाजार मूल्य की तुलना में सर्किल दरों को प्राथमिकता देने से किसान निराश हैंइन धाराओं से समस्याअति आवश्यक धारा सरकार को विधेयक की शर्तों को ताक पर रखते हुए अधिग्रहण की अनुमति देती है धारा 63 राज्य के किसी निर्णय के खिलाफ लडऩे से जमीन मालिक को वंचित कर देती है आरऐंडआर पैकेज में नौकरी की कोई गारंटी नहीं है सर्किल दरों के आधार पर मुआवजे की गणना की गई है, जो बाजार मूल्य से काफी कम है कृषि भूमि को कोई संरक्षण नहीं है, क्योंकि इसके अधिग्रहण पर फैसला राज्य पर छोड़ दिया गया है बिना इस्तेमाल वाली जमीन उसके मालिक को लौटाने की कोई गारंटी नहीं है, भले ही वह मुआवजा लौटा दे
