पश्चिम बंगाल में नैनो का ख्वाब क्या टूटा, टाटा के इस सपने को साकार करने के लिए तमाम राज्य आगे बढ़ आए हैं। उत्तराखंड के बाद अब हरियाणा ने भी टाटा के सामने नैनो परियोजना के लिए जमीन की पेशकश कर दी है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने राज्य में नैनो परियोजना स्थापित करने के लिए टाटा मोटर्स को हरसंभव मदद प्रदान करने का आश्वासन दिया है। राज्य विधानसभा के वर्षाकालीन सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में हुड्डा ने कहा कि अगर टाटा उनके यहां नैनो के लिए संयंत्र लगाना चाहते हैं, तो राज्य सरकार उन्हें तमाम तरह की सुविधाएं मुहैया कराने के लिए तैयार है।
उन्होंने कहा कि अगर यह परियोजना हरियाणा में आ जाती है, तो यहां विकास की रफ्तार बढ़ जाएगी और रोजगार के नए अवसर तथा अन्य मौके भी सामने आएंगे। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार राज्य में नैनो परियोजना के लिए जमीन मुहैया करा सकती है, बशर्ते रतन टाटा इस प्रतिष्ठित कार परियोजना को उनके राज्य में लाने का निर्णय ले लें।
हुड्डा ने कहा कि तमाम वाहन कंपनियां हरियाणा में अपने संयंत्र लगा रहे हैं। इसकी वजह से यह राज्य वाहन कल पुर्जों के केंद्र के तौर पर उभरता जा रहा है। नैनो भी बेहद मशहूर हो गई है और देश-विदेश के लोग इस कार का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस सस्ती और ईंधन के मामले में किफायती कार के लिए लोग बेकरार हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हरियाणा में देश के 50 फीसद से भी ज्यादा कार निर्माताओं के कारखानो हैं। अगर मोटरसाइकिल, साइकिल, ट्रैक्टर और रेफ्रिजरेशन उपकरणों की बात की जाए, तो हरियाणा में लगभग सभी कंपनियों की मौजूदगी है।
उन्होंने कहा कि जब से हरियाणा अलग राज्य बना है और 2004 तक यहां तकरीबन 40,000 करोड़ रुपये का निवेश किया गया। लेकिन उसके बाद हो चुका है। इसके उलट पिछले साढ़े तीन साल में ही यहां 40,000 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है और 90,000 करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित है। इससे जाहिर है कि निवेश के मामले में हरियाणा बेहद सटीक है।
हुड्डा के मुताबिक हरियाणा सरकार औद्योगिक क्षेत्र में 2 लाख करोड़ रुपये के निवेश का लक्ष्य लेकर चल रही है। सरकार को उम्मीद है कि इससे राज्य में लगभग 20 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा।
गुजरात भी मांगे नैनो
रतन टाटा के पारसी पुरखों और गुजरात से रिश्ते नैनो के लिए मददगार साबित हो सकते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज संकेत दिए कि सैकड़ों साल पहले गुजरात में शरण पाने वाले पारसी समुदाय के टाटा अगर पश्चिम बंगाल में नैनो नहीं बना सके, तो गुजरात में वह अपना संयंत्र लगा सकते हैं।
उन्होंने कहा, 'सदियों पहले पारसी गुजरात के तट पर आए थे और तत्कालीन सम्राट ने दूध का लबालब प्याला भेजकर उन्हें बताया था कि अब राज्य में किसी और के लिए जगह नहीं है। जवाब में पारसियों ने दूध में चीनी घोल दी, जिसका मतलब था कि वे स्थानीय जनता के साथ घुलमिलकर रहेंगे।
पारसी हमारी मातृभाषा गुजराती बोलते हैं और मैं आज भी चीनी के साथ तैयार हूं।' इस बयान का साफ मतलब है कि नैनो परियोजना का गुजरात में स्वागत है। गौरतलब है कि निवेश के मामले में गुजरात भी तमाम कंपनियों की पसंदीदा जगह है।