खाद्य सुरक्षा प्रावधान पर विवाद | संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली July 07, 2013 | | | | |
खाद्य सुरक्षा विधेयक पर नागरिक समाज और संसद की स्थायी समिति के विरोध के बावजूद सरकार ने इस मसले पर 'फोर्स मेज्योरÓ (विशेषाधिकार) जैसा प्रावधान जोड़कर इस बहस को और गरमा दिया है। यह प्रावधान केंद्र और राज्य सरकारों को युद्घ, बाढ़, सूखा, आग, चक्रवात और भूकंप जैसे हालात में रियायती दरों पर खाद्य सामग्री का वितरण रोकने का अधिकार देता है।
यह प्रावधान लंबे अरसे से सरकार और नागरिक समाज के बीच कलह का कारण रहा है। नागरिक समाज का कहना है कि यह प्रावधान लागू होने पर सरकार यह कल्याणकारी काम उस वक्त बंद कर देगी, जब उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी। इससे जुड़े अध्यादेश की समीक्षा करने वाली संसद की स्थायी समिति ने भी कुछ सुझाव दिए हैं, जिनमें एक सुझाव इस प्रावधान को हटाने से भी संबंधित है। हालांकि यह प्रावधा अब तभी लागू हो सकता है, जब केंद्र सरकार योजना आयोग के साथ सलाह-मशविरा कर यह फैसला करती है कि अनाज की आपूर्ति रोके जाने लायक हालात पैदा हो गए हैं।
एक वरिष्ठï अधिकारी के अनुसार आपातकाल को छोड़कर केंद्र और राज्य सरकारें सभी लाभार्थियों को उनके वैधानिक अधिकार के आधार पर रियायती दरों पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिए जवाबदेह हैं। अधिकारी ने यह भी बताया कि यह प्रावधान संसद के बजट सत्र के दौरान पेश किए गए संशोधित खाद्य सुरक्षा विधेयक में पहले ही कुंद कर दिया गया था, जिसे अध्यादेश में वैसे ही जोड़ा है। पिछले हफ्ते जारी हुआ खाद्य सुरक्षा अध्यादेश देश की 67 फीसदी आबादी को रियायती दरों पर अनाज उपलब्ध कराएगा।
इसके तहत 3 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल, 2 रुपये प्रति किलो की दर से गेहूं और 1 रुपये प्रति किलो की दर से मोटा अनाज मुहैया कराए जाएंगे। हालांकि यह अध्यादेश छह महीने बाद ही पूरी तरह से लागू हो पाएगा क्योंकि राज्य सरकारों को इस योजना के तहत वास्तविक लाभार्थियों की पहचान करने के लिए छह महीने का वक्त दिया गया है।
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