केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार चुनाव से पहले देश की 67 फीसदी आबादी को सस्ता अनाज देकर खुश करना चाहती है। मगर सरकार के इस कदम से अनाज कारोबारियों को उनके कारोबार पर संकट के बादल मंडराते नजर आ रहे हैं। इन कारोबारियों को लगता है कि जब इतनी बड़ी आबादी को सरकार ही सस्ता अनाज मुहैया करा देगी, तो कोई उनसे अनाज क्यों खरीदेगा? कारोबारियों को कालाबाजारी बढऩे की आशंका भी सता रही है। इसलिए सस्ते अनाज के बजाय सीधे नकद सब्सिडी की व्यवस्था हो। उन्हें सरकारी खरीद का अनाज भी कम मिलने का अंदेशा है, जिससे अनाज महंगा हो सकता है। हालांकि जब तक सरकार के पास रिकॉर्ड भंडार है, तब तक उन्हें खुले बाजार से अनाज मिलता रहेगा। मगर हमेशा ऐसा नही होने वाला। 1 जून तक सरकारी गोदामों में करीब 3.3 करोड़ टन चावल और 4.42 करोड़ टन गेहूं का भंडारण है। बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बहुप्रतीक्षित खाद्य सुरक्षा विधेयक के लिए अध्यादेश जारी करने को मंजूरी दी थी। इस विधेयक के तहत राशन की दुकानों के जरिये प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम अनाज 1 से 3 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर मिलेगा। इसमें चावल 3 रुपये, गेहूं 2 रुपये और मोटा अनाज 1 रुपये प्रति किलो मिलेगा। यूपी की हरदोई मंडी के अनाज कारोबारी संजीव अग्रवाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि 67 फीसदी आबादी को जब सरकार ही सस्ता गेहूं व चावल देगी तो कारोबारियों से लोग क्यों अनाज खरीदेंगे? दिल्ली स्थित नरेला मंडी के गेहूं कारोबारी महेंद्र जैन कहते हैं कि इस कानून के लागू होने पर देश भर के अनाज कारोबारियों के कारोबार में 30-40 फीसदी कमी आना तय है। हरियाणा के चावल कारोबारी रामविलास खुरानिया ने कहा कि इस कानून से बासमती चावल तो बेअसर रहेगा लेकिन गैर बासमती चावल कारोबारियों के कारोबार में कमी आना लाजिमी है। कारोबारियों को सरकारी खरीद से मिलने वाले अनाज में भी कमी आने की भी चिंता सता रही है। अग्रवाल ने कहा कि फिलहाल तो सरकार रिकॉर्ड भंडारण के दम पर लोगों को अनाज दे सकती है लेकिन 2 साल बाद जब यह भंडार खत्म कम हो जाएगा, तब सरकार के लिए सरकारी खरीद से कानून के दायरे वाली आबादी को अनाज की पूर्ति करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। ऐसे में सरकार के पास कारोबारियों को देने के लिए शायद ही अनाज का कुछ भंडार बचे। जाहिर है कारोबारी खुले बाजार का रुख करेंगे, जिससे कीमतों में तेजी आ सकती है। कालाबाजारी बढऩे की आशंका है। अग्रवाल का कहना है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये पहले ही कालाबाजारी हो रही है, जो अब और बढ़ेगी।
