कपास बुआई घटेगी 10-15 फीसदी! | कई जगह कीमतें एमएसपी से नीचे आईं, निर्यात के बिना बाजार में सुस्ती | | रुतम वोरा और शर्लिन डिसूजा / वडोदरा/मुंबई May 22, 2013 | | | | |
कपास किसानों का इस फसल के प्रति मोह धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। कम उत्पादन और अपनी उपज की कम कीमत मिलने से इस खरीफ सीजन में कपास किसान अन्य फसलों का रुख कर सकते हैं। इससे कपास बुआई में 10 से 15 फीसदी गिरावट की संभावना है। खरीफ सीजन अगले महीने से शुरू हो रहा है।
बाजार के जानकारों ने कहा कि देशभर में इस खरीफ सीजन में कपास की बुआई 10 से 15 फीसदी घटने की संभावना है। भारतीय कपड़ा आयुक्त के अनुमानों के मुताबिक 2012-13 में कपास बुआई का रकबा 1.17 करोड़ हेक्टेयर रहेगा। वर्ष 2011-12 में कपास का रकबा करीब 1.21 करोड़ हेक्टेयर रहा था।
गुजरात स्टेट कोऑपरेटिव कॉटन फेडरेशन लिमिटेड (गुजकॉट) के प्रबंध निदेशक एनएम शर्मा ने कहा, 'इस साल कपास की बुआई घटेगी और किसान मूंगफली जैसी अन्य फसलों की बुआई की ओर रुख करेंगे। इसकी वजह कम कीमतें और गिरता उत्पादन है। अगर इस साल कपास का रकबा घटे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।Ó शर्मा के मुताबिक किसानों को पिछले साल से कम कीमत मिली है। पिछले साल मौसम की वजह से कपास की बुआई कम हुई थी।
अहमदाबाद के जाने-माने कपास विशेषज्ञ अरुण दलाल ने कहा, 'किसान चाहते हैं कि कपास की कीमतें 1,000 रुपये प्रति 20 किलोग्राम के आसपास हों, जबकि इस समय कच्चे कपास के दाम 720 से 780 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच बने हुए हैं। ऐसी स्थिति में कपास की बुआई 10 से 15 फीसदी गिरेगी।Ó आंध्र प्रदेश में अप्रैल में कपास की कीमत एमएसपी से नीचे चली गई थीं, लेकिन सीसीआई के कपास खरीदारी करने से कीमतों में सुधार आया है। इस समय आंध्र प्रदेश में कपास का एमएसपी 3,900 रुपये प्रति क्विंटल है और 20 दिन पहले कीमतें एमएसपी से 400 से 500 रुपये नीचे थी। निर्यात भी सुस्त बना हुआ है। इससे भी कीमतों में गिरावट का दबाव बन रहा है। इससे किसान अगले सीजन में कपास की बुआई को लेकर हतोत्साहित हो रहे हैं। जानकारों ने कहा कि चीन ने खरीदारी बंद कर दी है और निर्यात नहीं हो रहा है।
दलाल ने कहा, 'पिछले साल मिलें अच्छी खासी मात्रा में खरीदारी कर रही थीं, जिससे बाजार में मांग से ज्यादा आपूर्ति की स्थिति पैदा नहीं हुई। हालांकि वैश्विक आर्थिक स्थितियों के कारण इस समय मिलों की मांग कमजोर है।Ó गुजरात के एक एजेंट पीयूष कोटेचा ने कहा, 'किसानों के पास एमएसपी से नीचे अपनी उपज बेचने के अलावा कोई चारा नहीं है, क्योंकि आगामी खरीफ सीजन की खातिर कपास बीज खरीदने के लिए उन्हें पैसे चाहिए। भारतीय कपास निगम और नैफेड ने महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में कपास की कीमत बढ़ाई है, लेकिन उन्होंने ऐसा गुजरात में नहीं किया। इस तरह किसानों को एमएसपी से नीचे अपनी उपज बेचनी पड़ी।Ó
चीन के कपास आयातकों से कहा गया है कि अगर वे आयात करते हैं तो उन्हें चीनी सरकारी एजेंसी से आयातित मात्रा की तीन गुनी खरीदारी करनी होगी। इससे भारत के कपास निर्यात पर असर पड़ा है। देश का 60 फीसदी कपास निर्यात चीन को होता है। भारतीय कपास के दूसरे बड़े आयातक बांग्लादेश ने भी कपास आयात कम कर दिया है।
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