जांच को लेकर 'सत्ता' पर आंच | कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में सीबीआई के हलफनामे से बढ़ सकती है सरकार की मुश्किल | | बीएस संवाददाता / नई दिल्ली April 26, 2013 | | | | |
कोयला ब्लॉक आवंटन पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की स्थिति रिपोर्ट के मामले में विधि मंत्री अश्विनी कुमार की वजह से पहले ही फंसी सरकार के लिए संकट और गहरा रहा है। सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा ने आज एक हलफनामा दायर किया और कहा कि कोयला ब्लॉक आवंटन पर उनकी रिपोर्ट के मसौदे पर विधि मंत्री ही नहीं, कोयला मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के अधिकारियों ने भी चर्चा की और उसमें तब्दीली भी कीं। सीबीआई ने कहा कि रिपोर्ट के साथ छेड़छाड़ विधि मंत्री की 'मर्जीÓ से हुई।
यह हलफनामा अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल हरिन रावल के उस दावे से बिल्कुल उलटा है, जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक कार्यपालिका में किसी ने रिपोर्ट नहीं देखी है। यह बात उच्चतम न्यायालय की पूर्व की उन सभी नियमावलियों के भी खिलाफ जाती है, जिसमें शीर्ष अदालत सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों की स्वायत्तता की हिमायत करती है। हालांकि सीबीआई निदेशक ने कहा कि अदालत में जो आखिरी रिपोर्ट पेश हो रही है, उसे किसी भी राजनीतिक अधिकारी ने नहीं देखा है। उन्होंने अदालत को भरोसा दिलाया कि आगे की स्थिति रिपोर्ट भी किसी को नहीं दिखाई जाएंगी।
हलफनामा दाखिल होते ही संसद में हंगामा मच गया और दोनों सदन पूरे दिन के लिए स्थगित करने पड़े। सरकार की ओर से संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने कमान संभाली और अडिय़ल रुख अपनाते हुए कहा कि विधि मंत्री के इस्तीफा देने का कोई सवाल ही नहीं है।
हालांकि सूत्र बताते हैं कि सरकार के पास अश्विनी कुमार को बचाने के अलावा कोई चारा नहीं है। अगर वह इस्तीफा देते हैं तो तपिश सीधे प्रधानमंत्री तक पहुंच जाएगी, जिसे हर हाल में रोका जाएगा। कांग्रेस के कई सांसदों और मंत्रियों ने निजी बातचीत में बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि अश्विनी कुमार को सीबीआई के काम में दखल देने का कोई हक नहीं है। कुमार ने भी कहा, 'सच की जीत होगी। मैं राजनीतिक अधिकारी नहीं, कानून मंत्री हूं।Ó
लेकिन विपक्ष अश्विनी कुमार की बलि लेने की ठान चुका है। बजट सत्र के बचे-खुचे दिनों में संसद को सुचारु रूप से चलाने की जुगत भिड़ाने के लिए कमलनाथ प्रमुख विपक्षी नेताओं से मिले ताकि 6 और 7 मई को सदन में पेश होने वाले वित्त विधेयक और बजट संबंधी विधेयक पारित हो सकें। सांसद इसके लिए तो राजी हो गए, लेकिन बाकी दिनों में सत्र नहीं चलने देने की बात भी उन्होंने एकमत से जाहिर कर दी।
सरकार उस वक्त सबसे ज्यादा शर्मिंदा हुई, जब सीबीआई के हलफनामे से साफ हो गया कि सरकार जांच एजेंसी के काम में कितना दखल देती है। न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा की अगुआई वाले तीन सदस्यीय पीठ ने 12 मार्च को सीबीआई से हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्टï करने के लिए कहा था कि 8 मार्च की उसकी स्थिति रिपोर्ट को निदेशक के अलावा किसी राजनीतिक अधिकारी ने नहीं देखा। उसी के जवाब में आज हलफनामा दाखिल किया गया, जिस पर सुनवाई मंगलवार को होगी। पिछली बार सुनवाई के दौरान सीबीआई और सरकार के रुख में अंतर नजर आया था।
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