प्रोत्साहन के लिए सिर्फ एमएसपी ही ठीक नहीं | बीएस संवाददाता / नई दिल्ली February 27, 2013 | | | | |
चूंकि सरकार खाद्य महंगाई को सीमित दायरे में रखने को कोशिश में जुटी है, लिहाजा आर्थिक समीक्षा में वित्त मंत्रालय ने मध्यम अवधि में कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए समर्थन मूल्य की मौजूदा व्यवस्था के बजाय दूसरे कदमों के इस्तेमाल की वकालत की है। समीक्षा में कहा गया है कि कीमत व खरीद समर्थन नीति ऐसी होनी चाहिए जिससे ऐसी फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन न मिले, जो हमारे पास प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। देश में चावल व गेहूं का उत्पादन पिछले कुछ सालों में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है क्योंकि इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में लगातार बढ़ोतरी हुई है।
लेकिन उच्च उत्पादन ने सरकार के राजकोषीय संतुलन पर काफी ज्यादा दबाव डाला है क्योंकि सरकारी एजेंसियों की तरफ से खरीद में भी इसी अनुपात में बढ़ोतरी हुई है। समीक्षा में कहा गया है कि खेती में निवेश बढ़ाने के लिए दूसरे रास्ते भी तलाशे जाने चाहिए।
इसमें निर्यात पर सरकार की बदलती नीतियों की आलोचना की गई है मसलन शुल्क लगाने और फिर इसे हटा लेने के अलावा सरकार वायदा बाजार में किसी जिंस का कारोबार कभी रोक देती है तो इसे दोबारा चालू कर देती है। समीक्षा में कहा गया है कि इन वजहों से उत्पादकों की योजनाओं पर असर पड़ता है और कीमत सीमित होने के चलते उनके उत्पादों को मिलने वाला प्रोत्साहन घट जाता है और इसका असर खाद्यान्न की कीमतोंं पर भी पड़ता है।
समीक्षा में कृषि व इससे जुड़ी गतिविधियों के विकास की दर 2012-13 में करीब 1.8 फीसदी रहने की बात कही गई है, जो 4 फीसदी के सालाना लक्ष्य से काफी कम है। साल 2012 में मॉनसून की स्थिति बेहतर नहीं रही थी, इसका असर भी पड़ा है।
समीक्षा में कृषि क्षेत्र में तत्काल सुधार का आह्वान किया गया है ताकि ज्यादा उत्पादकता हासिल किया जा सके, जो विकास को टिकाऊ बना सके। फसल बीमा के मामले में समीक्षा में कहा गया है कि इसे संशोधित किए जाने की दरकार है।
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