पेट्रोलियम उत्पादों पर घटेगी, मगर खाद्य पर बढ़ेगी | बीएस संवाददाता / नई दिल्ली February 27, 2013 | | | | |
चालू वित्त वर्ष में सब्सिडी पर सरकार का खर्च अनुमान से ज्यादा ही रहेगा। चालू वित्त वर्ष में सब्सिडी पर 1.90 लाख करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान लगाया गया था। ऐसे में सरकार खर्च की तस्वीर सुधार कर सब्सिडी के मोर्चे पर हालात बेहतर करने पर ध्यान देगी। इसके तहत सटीक लक्ष्य तय किए जाएंगे और वितरण प्रणाली की खामियों को दुरुस्त किया जाएगा। मगर देश में कुपोषण की भयावह स्थिति को देखते हुए आने वाले दिनों में खाद्य सब्सिडी पर सरकार का खर्च बढऩे का ही अनुमान है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया, 'देश में कुपोषण की हालत और बुनियादी खाद्य पदार्थों से वंचित गरीबों को देखते हुए खाद्य सब्सिडी के अनुसार प्राथमिकताएं निर्धारित करने की जरूरत है।Ó
इससे सब्सिडी खर्च बढऩे की चिंता के बीच समीक्षा में इस बात की हिमायत की गई है कि इस बुनियादी जरूरत के लिए प्राथमिकता तय करना इसी चुनौती का हिस्सा है। समीक्षा में कहा गया कि पिछले पांच वर्षों में खाद्य सब्सिडी का खर्च सालाना 25.4 फीसदी की दर से बढ़ा है, जिसमें से अधिकांश हिस्सा लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का है।
समीक्षा में स्पष्टï रूप से कहा गया है कि राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचाने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों पर सब्सिडी कम की जाएगी। समीक्षा में कहा गया, 'पेट्रोलियम उत्पादों खासतौर से डीजल और रसोई गैस की कीमतें अंतरराष्टï्रीय बाजार की दरों के मुताबिक बढ़ाने की दरकार है।Ó
समीक्षा में यह भी कहा गया कि चालू वित्त वर्ष में सब्सिडी के लिए अनुमानित राशि का 92 फीसदी हिस्सा दिसंबर, 2012 तक ही खर्च हो गया था।
सब्सिडी पर बढ़ते खर्च से निपटने के लिए सरकार ने सितंबर, 2012 में डीजल की कीमतों में 5 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी के अलावा सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलिंडरों की संख्या भी सीमित कर दी। फिर इस साल जनवरी में सरकार ने तेल विपणन कंपनियों को डीजल की कीमतों में हल्की-हल्की बढ़ोतरी करने की इजाजत भी दे दी।
हालांकि सरकार ने सब्सिडी वाले सिलिंडरों की तय की गई 6 सिलिंडरों की संख्या बढ़ाकर 9 कर दी। समीक्षा में कहा गया, 'हालांकि चालू वित्त वर्ष के बजट में सरकारी व्यय जीडीपी के 14 फीसदी के बराबर रहने का अनुमान लगाया गया था लेकिन अंतरराष्टï्रीय स्तर पर तेल की बढ़ी कीमतें और उपभोक्ताओं के लिए कीमतें उस अनुपात में न बढ़ाने का दबाव खर्च पर नजर आएगा।Ó समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का असर उर्वरक सब्सिडी पर भी पड़ेगा क्योंकि यूरिया की कीमतों में उचित रूप से इजाफा नहीं किया गया।
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