खत्म होगा ऊंची दर का डर | बीएस संवाददाता / मुंबई February 27, 2013 | | | | |
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि महंगाई में नरमी और वित्तीय एकीकरण की उम्मीद को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश है। इसमें कहा गया है कि वित्त वर्ष 2012-13 की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में मुद्रास्फीति में आई नरमी और वित्तीय एकीकरण की संभावना के बाद मौजूदा आर्थिक हालात मौद्रिक नीति में दरों में कटौती की गुंजाइश का संकेत दे रहे हैं। समीक्षा के मुताबिक, गैर-खाद्य विनिर्माण क्षेत्र में व वैश्विक जिंस बाजार में नरमी के चलते मार्च में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति 6.2 फीसदी से घटकर 6.6 फीसदी तक आ सकती है। इसके अलावा समीक्षा में उम्मीद जताई गई है कि वैश्विक स्तर पर जिंसों की कीमतें साल 2013 व 2014 में नरम होंगी।
दिसंबर में थोक मूल्य सूचकांक 7.18 फीसदी पर पहुंच गया जबकि नवंबर में यह 7.24 फीसदी था। दिसंबर में थोक मूल्य सूचकांक की रफ्तार दिसंबर 2009 के बाद सबसे कम थी, जिसने 29 जनवरी को मौद्रिक नीति की समीक्षा मेंं केंद्रीय बैंक को रीपो रेट में 25 आधार अंकों की कटौती के लिए उत्साहित किया। इससे पहले आरबीआई ने अप्रैल में रीपो रेट में 50 आधार अंकों की कटौती की थी। जनवरी में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति और घटकर 6.62 फीसदी पर आ गई।
जनवरी में मुद्रास्फीति का आंकड़ा तीन साल का न्यूनतम स्तर है और इसमें कमी ईंधन व विनिर्मित उत्पादों की कीमतों में धीमी बढ़ोतरी के चलते दर्ज की गई। समीक्षा में कहा गया है कि आरबीआई के आकलन के मुताबिक, वैश्विक आर्थिक व वित्तीय स्थिति में कमजोरी बनी हुई है। दूसरी ओर, देश और विदेश में उत्पन्न महंगाई के दबाव (खास तौर से रुपये में आई गिरावट के बाद) नीतिगत दरों में कटौती को अनुत्पादक बना सकते हैं।
समीक्षा में कहा गया है, इसके अलावा नकदी के सख्त हालात उत्पादक क्षेत्रों में कर्ज के पर्याप्त प्रवाह के लिए खतरे के तौर पर उभरा है। समीक्षा में आरबीआई की तरफ हुई जनवरी में हुई नीतिगत कटौती को उचित ठहराया गया है।
समीक्षा के मुताबिक, सतर्कता के साथ उठाए गए मौद्रिक नीति के कदम आरबीआई ने सब्सिडी मेंं बढ़ोतरी और नरम हो रही राजकोषीय स्थिति को देखते हुए उठाया है। सितंबर 2012 में हालांकि सरकार ने वित्तीय एकीकरण के लिए रोडमैप का ऐलान किया था और इसमें स्पष्ट तौर पर वित्तीय लक्ष्य को भी पारिभाषित किया था। सरकार ने निवेशकों की धारणा में सुुधार और निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाने की भी कोशिश की थी। इसके लिए कई ऐलान किए गए।
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