क्लीनिकल परीक्षण के दौरान बढ़ रहे मृत्यु के मामले | सुष्मि डे / नई दिल्ली January 11, 2013 | | | | |
देश में क्लीनिकल परीक्षण की निगरानी पर प्राधिकरणों को अदालती लताड़ के बावजूद दवाओं के दुष्प्रभाव के कारण मृत्यु के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड ने दवा नियंत्रक कार्यालय के आंकड़ों का निरीक्षण किया और पाया कि 2012 के पहले 8 महीनों (अगस्त तक) में क्लीनिकल परीक्षण के दौरान दवाओं के दुष्प्रभाव से संबंधित मृत्यु के 12 मामले सामने आए।
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) कार्यालय के सूत्रों के अनुसार सितंबर और दिसंबर 2012 के बीच दवाओं के दुष्प्रभाव के कारण मृत्यु के कम से कम 8 अन्य मामले हो सकते हैं जिनके लिए आंकड़े जारी होना अभी बाकी है। ऐसे में वर्ष 2012 में क्लीनिकल परीक्षण के दौरान दवाओं के दुष्प्रभाव के कारण मृत्यु के कम से कम 20 मामले हो सकते हैं। जबकि 2011 में ऐसे मामलों की संख्या 16 थी। आंकड़ों के अनुसार क्लीनिकल परीक्षणों का संचालन कथित तौर पर ब्रिस्टल-मायर्स स्कीब, कैडिला फार्मा, इलाई लिली, पीरामल हेल्थ, सन फार्मा, टॉरेंट फार्मा व अन्य कंपनियों ने किया।
क्लीनिकल परीक्षण के दौरान मृत्यु के कुल मामलों पर भी ध्यान देना जरूरी है। इसमें ऐसे मामले भी शामिल हैं जिनमें मृत्यु का कारण दवाओं का दुष्प्रभाव नहीं माना गया है। अगस्त 2012 तक कुल मृत्यु के 272 मामले पंजीकृत हुए, जबकि 2011 और 2010 में क्रमश: 438 और 667 मामले दर्ज किए गए थे। डीसीजीआई कार्यालय के सूत्रों ने यह भी कहा कि कंपनियों को बार-बार पत्र भेजे जाने के बावजूद 2012 में केवल एक मामले में ही मुआवजे के भुगतान की प्रक्रिया शुरू हो पाई है। हालांकि क्लीनिकल परीक्षण में शामिल दवा कंपनियों ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि वे अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और सभी जरूरी प्रक्रियाओं का पालन करती हैं। पीरामल एंटरप्राइजेज के वाइस चेयरमैन स्वाति पीरामल कहती हैं, 'क्लीनिकल परीक्षण के दौरान मृत्यु होने पर निरीक्षक यह तय करते हैं कि मृत्यु किन कारणों से हुई। जिन मामलों में मृत्यु के लिए परीक्षण वाली दवा को जिम्मेदार ठहराया जाता है, उनमें आचरण समिति मुआवजा निर्धारित करती है। यह एक स्वतंत्र समिति है जिसमें चोटी के डॉक्टर और नागरिक शामिल होते हैं। इसलिए यह एक प्रक्रिया है जिसके तहतआचरण समिति द्वारा निर्धारित मुआवजे का भुगतान संबंधित परिवार को किया जाता है।'
डीसीजीआई के आंकड़ों के अनुसार, पीरामल हेल्थकेयर के क्लीनिकल परीक्षण के दौरान मई 2012 में एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। लेकिन पीरामल के अनुसार कंपनी को मुआवजे का भुगतान लंबित होने से संबंधित डीसीजीआई का कोई पत्र नहीं मिला है। सन फार्मा ने भी क्लीनिकल परीक्षण के दौरान मृत्यु के कम से कम एक मामले का सामना किया है। कंपनी के अधिकारियों के अनुसार, सन फार्मा का एकमात्र ऐसा मामला है जिसमें 50,000 रुपये का मुआवजा प्रक्रिया में है। कंपनी ने दावा किया कि उसने मौजूदा दिशानिर्देश के तहत उचित मुआवजे की भरपाई की है।
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