राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में दो साल से भी कम समय बचा है, पर दिल्ली में अव्यवस्था का आलम है। दरअसल भारत को पेइचिंग ओलंपिक खेलों के आयोजन से सीख लेने की जरुरत है। बता रहे हैं
अरविंद सिंघल / August 13, 2008
भारत कल अपनी स्वतंत्रता की 61 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। आजादी का जश्न ऐसे समय में मनाया जा रहा है जब देश में राजनीतिक और आंतरिक सुरक्षा के माहौल में बहुत ही अशांति चल रही है।
इसके अलावा पूरी विश्व अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है। पड़ोसी देश चीन का माहौल भी ऐसे समय में हमारे जेहन में अवश्य होगा।
दरअसल हम यहां चीन का जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि चीन ने पेइचिंग ओलंपिक का आयोजन कर आलोचना करने वाले उन लोगों का मुंह बंद कर दिया है जो यह कह रहे थे कि वह इस जबरदस्त और भू राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण खेल का आयोजन करने में शायद नाकाम रह सकता है।
मेरे विचार से अब तक जितनी बार भी ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया है उनमें से मौजूदा पेइचिंग ओलंपिक सबसे अधिक प्रभावशाली है। पेइचिंग ओलंपिक का थीम 'वन वर्ल्ड वन ड्रीम' है जो भले ही कुछ लोगों को क्षणिक खुशी देने वाला लगता हो, पर दुनिया भर में जिस तरह अरबों लोग आतंकवाद और युद्ध की दहशत में जी रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि यह सबसे उपयुक्त थीम है और इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता था।
भारत खुद कई तरह की परेशानियों और आंतरिक द्वंद्व में फंसा हुआ है- हालांकि इनमें से कई समस्याएं तो खुद उसने अपने लिए खड़ी की है और अगर समय रहते इन पर कदम नहीं उठाए गए तो परिणाम गंभीर भी हो सकते हैं। हालांकि पेइचिंग ओलंपिक का चीन पर और बाकी के देशों पर क्या असर पड़ेगा इसका आकलन इतनी जल्दी नहीं किया जा सकता।
पर इतना जरूर है कि ओलंपिक के उद्धाटन समारोह में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के अध्यक्ष जैक्स रॉग ने जो संदेश दिया था उससे भारत सीख ले सकता है। रॉग ने उद्धाटन भाषण में कहा था, 'ओलंपिक केवल खेल में प्रदर्शन से नहीं जुड़ा है। यह दरअसल ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले 204 देशों का मिलन है जिनमें मूल, लिंग, धर्म और राजनीतिक व्यवस्था को लेकर कई विभिन्नताएं हैं।
ओलंपिक के दौरान दोस्ती, आदर और उत्कृष्टता जैसे मूल्यों को विकसित करने की कोशिश की जानी चाहिए।' यह संदेश भले ही साधारण लगता हो पर काफी महत्त्वपूर्ण है और भारत के परिदृश्य में काफी सटीक भी बैठता है। देश के राजनीतिक और नागरिक नेताओं को इससे सीख लेनी चाहिए कि आंतरिक विवादों को आखिर किस तरीके से दूर कर सकते हैं।
देश में आर्थिक विकास और सामाजिक सुधार के लिए राजनीतिक मकड़जाल से बाहर निकलते हुए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। ओलंपिक का सब थीम उत्कृष्टता है जिस पर भारतीयों को जल्द से जल्द और बहुत गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए। जिस किसी को भी पेइचिंग ओलंपिक के उद्धाटन समारोह को प्रत्यक्ष रूप से देखने का अवसर मिला होगा वह निश्चित तौर पर आयोजन के दौरान कल्पनाशीलता और प्रशासनिक कार्यकुशलता को देखकर मंत्रमुग्ध रह गया होगा।
आधुनिक चीन में कुछ ऐसे लैंडमार्क हैं जिन्हें विशेष पहचान प्राप्त है और इसमें अब वह स्टेडियम भी जुड़ गया है जहां ओलंपिक खेलों का उद्धाटन समारोह आयोजित किया गया था। माना कि ओलंपिक खेलों के भव्य आयोजन के लिए चीन ने दिल खोलकर पैसा खर्च किया होगा और लौह क्षेत्र में उसका जो दबदबा है उसका भी भरपूर इस्तेमाल किया होगा, पर इसका यह मतलब नहीं है कि हम चीन से इन खेलों के भव्य और विशाल आयोजन का श्रेय ले लेंगे।
अब चीन पर यह आरोप तो नहीं लगाया जा सकता है कि वह दुनिया को सिर्फ और सिर्फ सस्ते उत्पाद और सेवाएं दे सकता है। अब चीन भी उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया है जिन्होंने कल्पनाशीलता और उत्कृष्टता की मिसाल कायम की है। पर ठीक इसके उलट अगर भारत की चर्चा करें तो देश ने जिन जिन क्षेत्रों में विकास किया है, उनमें से अधिकांश क्षेत्रों में विकास मध्यम दर्जे का ही रहा है।
खासतौर पर अगर देश में सार्वजनिक बुनियादी ढांचों के विकास और निजी संरचनाओं में विकास की बात करें तो यहां पर अब भी काफी खामियां मौजूद हैं। इन क्षेत्रों में विकास तो हुआ है पर कुछ न कुछ अब भी अधूरा ही रह गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आधुनिक गुड़गांव के निर्माण की गुणगान तो सभी कर रहे हैं, पर साथ ही इनसे भारतीय आधारभूत संरचना विकास की कमियां भी उजागर होती हैं।
ऐसा लगता है कि शहर को बसाते वक्त किसी मास्टर प्लानिंग के हिसाब से काम नहीं किया गया। जब इस क्षेत्र को इतने उन्नत तरीके से बसाने की योजना थी तो उसके बावजूद क्या सोचकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कोई समुचित व्यवस्था नहीं की गई और न ही इसके लिए कोई योजना बनाई गई। कहने को तो इस क्षेत्र में दिन पर दिन नई इमारतें और शॉपिंग मॉल बनते जा रहे हैं, पर हर नई इमारत पहले से भी खराब ही बन रही है।
निर्माण कार्य के नाम पर सड़कें और भी जाम मिल रही हैं और उनकी स्थिति पहले से भी बदतर हो गई है। एक्सप्रेसवे को लेकर भी बहुत शोर शराबा किया गया था पर आखिरकार हाथ क्या लगा है? इस योजना में हो रहा लगातार विलंब। आप चाहें तो किसी भी नागरिक सुविधा केंद्र का नाम ले लें वहां सुविधाएं कम और परेशानियां ही ज्यादा होंगी।
चाहे बिजली, पानी या फिर साफ सफाई का जिक्र हो, या फिर नालियों की व्यवस्था की चर्चा करें सब में कमियां ही कमियां नजर आती हैं। इन सबके ऊपर कानून व्यवस्था का होना और न होना तो जैसे एक बराबर है। दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में अब दो साल से भी कम का समय बाकी है और फिर भी राष्ट्रीय राजधानी में जो अव्यवस्था का आलम है, शायद ही कभी पहले देखने को मिला होगा।
जहां एक ओर सभी देश अपनी आधारभूत संरचनाओं के विकास में जुटे हुए हैं, वहीं हमारे देश में एक अलग तरह की ही होड़ मची हुई है। इन दिनों हमारे देश में कोई विकास कार्य हो या न हो कुछ टेलीविजन चैनल स्टिंग ऑपरेशनों को शूट करने में जुटे हुए हैं।
ऐसा नहीं है कि ये स्टिंग ऑपरेशन बस खबरों को जुटाते वक्त चैनलों के हाथ लग जा रहे है, बल्कि इन्हें पहले से सोच समझकर, बकायदा इनके लिए मंच तैयार कर इन्हें शूट किया जा रहा है। जहां एक ओर चीन में करीब करीब हर हफ्ते अत्याधुनिक हवाईअड्डे खोले जा रहे हैं वहीं मुंबई हवाईअड्डे की हालत ऐसी है कि रनवे पर गङ्ढा होने भर की वजह से अक्सर अस्थायी तौर पर हवाईअड्डे पर परिचालन रोकना पड़ रहा है।
वहीं दूसरी ओर नवनिर्मित बेंगलुरु हवाईअड्डे के लिए सरकार को अधिकारियों से कहना पड़ रहा है कि वे जल्द से जल्द नए टर्मिनल का काम शुरू करें क्योंकि नवनिर्मित टर्मिनल की क्षमता इतनी नहीं है कि वह यात्रियों के भार को अकेले सह सके।
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