सरकार ने बुधवार को सभी श्रेणियों के रेल यात्री किराए में बढ़ोतरी की जो घोषणा की है वह लंबे समय से लंबित थी। उच्च श्रेणी और वातानुकूलित श्रेणी के छोटे से हिस्से को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी श्रेणियों के किराए में तकरीबन 10 वर्ष से कोई इजाफा नहीं किया गया था। एक अनुमान के मुताबिक इसके परिणामस्वरूप भारतीय रेल का यात्री सेवाओं से होने वाला घाटा वर्ष 2012-13 तक बढ़कर 25,000 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा है। यह वर्ष 2004-05 के मुकाबले चार गुना इजाफा है। माल भाड़े में इजाफा करके इसकी भरपाई करने की कोशिश एक हद तक ही कामयाब हो सकी। अब उसमें और इजाफा संभव नहीं है क्योंकि परिवहन के अन्य साधनों ने रेलवे की माल ढुलाई सेवा को लगभग अव्यावहारिक बना दिया है। भारतीय रेल की आंतरिक संसाधन जुटाने की क्षमता में गंभीर कमियां हैं, इसके अलावा नई क्षमताओं में निवेश और सुरक्षा उपायों समेत मौजूदा इकाइयों को बनाए रखना भी पिछले कुछ वर्षों में धीमा पड़ा है। ऐसा इसलिए कि इन वर्षों में उसके सालाना योजना खर्च में कटौती की गई। ऐसे में यात्री किराए में इजाफा करके तकरीबन 20 फीसदी अतिरिक्त राजस्व जुटाने का फैसला सुखद और स्वागतयोग्य है। वर्ष 2012-13 के रेल बजट में भी यात्री किराए में बढ़ोतरी करके ऐसी वित्तीय दिक्कतों को दूर करने की दिशा में पहलकदमी हुई थी लेकिन वह प्रयास दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से राजनीति का शिकार हो गया। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने अपने दल के रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी के यात्री किराया बढ़ाने के साहसिक प्रयास को मंजूरी नहीं दी। न केवल उन्होंने त्रिवेदी को रेल मंत्रालय से इस्तीफा देने को कहा बल्कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेता मुकुल रॉय को नया रेल मंत्री भी बनवाया। रॉय ने अपने पूर्ववर्ती मंत्री यानी त्रिवेदी के सभी सुधारवादी कदमों को वापस ले लिया और उच्च श्रेणी के यात्री किराए में मामूली बढ़ोतरी को ही मंजूरी दी। गत वर्ष सितंबर में जब तृणमूल कांग्रेस ने सत्तारूढ़ गठबंधन से अलग होने का फैसला किया तो यह मंत्रालय दोबारा कांग्रेस के पास आ गया लेकिन तत्काल इस बात के कोई संकेत नहीं दिए गए कि किराए और माल भाड़े के बारे में कोई नई नीति अपनाई जाएगी अथवा नहीं। रेल मंत्री पवन कुमार बंसल देश की सबसे बड़ी माल और यात्री वाहक सेवा के लिए कठोर और लंबे समय से स्थगित फैसला लेने में हिचकिचाए नहीं हैं। वह भी तब जबकि एक झटके में किराए में अधिक बढ़ोतरी को राजनीतिक रूप से सही कदम नहीं माना जाता। आमतौर पर छोटे-छोटे इजाफे किए जाते हैं जिनका राजनीतिक विरोध बहुत कम होता है। ऐसे में यह बात महत्त्वपूर्ण है कि बंसल ने बजट से इतर यात्री किराया बढ़ाने की घोषणा की है। आमतौर पर किराए में इजाफे की घोषणा लोक सभा में सालाना रेल बजट पेश करते वक्त की जाती रही है। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि यात्री और माल भाड़े में बढ़ोतरी के फैसले को राजनीति से अलग करके देखा जाए। इन किरायों को व्यावसायिक सिद्घांतों के आधार पर तय नहीं किए जाने की कोई वजह नहीं है जबकि अन्य परिवहन सेवाओं के साथ ऐसा ही होता है। सरकार पहले ही रेल के यात्री किराए और माल भाड़े की दर तय करने के लिए एक स्वतंत्र शुल्क प्राधिकरण को लेकर चर्चा कर रही है। बंसल ने सदन के बाहर और रेल बजट से इतर किराया बढ़ाने की घोषणा करके इस दिशा में पहला कदम बढ़ा दिया है। अगला सही कदम होगा सक्षम शुल्क प्राधिकरण की स्थापना करना।
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