बहु-ब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के मसले पर पिछले दिनों संसद में बहुत गहमा-गहमी हुई। इस पर संसद के दोनों सदनों में जोरदार बहस हुई। दिग्गज नेताओं ने इसके पक्ष और विपक्ष में एक से बढ़कर एक तर्क पेश किए। इसी सिलसिले में अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) के नेता और राज्यसभा सांसद वी मैत्रेयन बहुब्रांड खुदरा में एफडीआई की खामियां गिना रहे थे। मैत्रेयन ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार बहुत बड़ी गलती करने जा रही है। हालांकि बहस के दौरान अपने भाषण में सरकार पर कटाक्ष करते हुए बहस के नतीजे के निचोड़ पर यही कहा, 'आनंद शर्मा हार गए लेकिन कमलनाथ जीत गए।' उनका इशारा साफ तौर पर यही था कि वाणिज्य मंत्री जहां हारे वहीं संसदीय कार्यमंत्री को जीत मिली। जाहिर है इस टिप्पणी के बाद दोनों मंत्रियों के चेहरों के हावभाव अलग नजर आने थे और ऐसा हुआ भी। एक ओर जहां वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने उनके बयान पर उदासी भरी मुस्कान से जवाब दिया जबकि संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ अपनी खुशी पर काबू नहीं रख सके। उन्होंने शालीन दिखने की भरसक कोशिश की लेकिन अपनी इस कवायद में वह बुरी तरह नाकाम रहे और फिर वह किसी पॉप स्टार की मानिंद अकड़ में सदन से बाहर निकले, जहां उनके साथी उनकी पीठ थपथपा रहे थे और उनसे हाथ मिलाने को आतुर नजर आ रहे थे। एक संवाददाता ने उनसे सवाल किया कि वह सुबह कितने बजे सोकर उठते हैं? उन्होंने जवाब दिया, 'मुझसे यह पूछिए कि मैं रात को सोता कितने बजे हूं?' पिछले हफ्ते उनका अधिकांश वक्त भाग-दौड़ और जोड़-तोड़ में ही बीता। कमलनाथ उन लोगों से फोन पर बातचीत से लेकर व्यक्तिगत रूप से मेल-जोल में लगे थे, जिनके बारे में उनको यकीन था कि वह उन्हें अपने पाले में ले आएंगे और विपक्ष के प्रस्ताव को गिरा देंगे। इसलिए इसमें बहुत ज्यादा हैरानी की बात नहीं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव और पार्टी के प्रमुख संकटमोचक अहमद पटेल से जब यह पूछा गया कि उनकी पार्टी मायावती का समर्थन हासिल करने में कैसे कामयाब रही तो उन्होंने यही जवाब दिया, 'आप कमलनाथ से पूछिए।' बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती का समर्थन सुनिश्चित करने के लिए कमलनाथ ने उन्हें उनके ही महत्त्वाकांक्षी अभियान से साधा। यह तो सभी जानते हैं कि प्रोन्नति में दलितों के आरक्षण का मसला मायावती के लिए राजनीतिक रूप से बहुत अहम है, ऐसे में उसी की दुहाई देते हुए कमलनाथ ने कहा कि अगर वह इस विधेयक को अंजाम तक पहुंचाना चाहती हैं तो उन्हें यही दिखाने की जरूरत है कि विपक्ष कमजोर, बिखरा हुआ है जो सिर्फ शोर-शराबा मचाने से ज्यादा कुछ और नहीं कर रहा है। अन्यथा 117वां संविधान संशोधन विधेयक कभी मूर्त रूप नहीं ले पाएगा। वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) का समर्थन हासिल करने के लिए उन्होंने सपा सुप्रीमो को समझाया कि इससे उनकी धुर राजनीतिक विरोधी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कमजोर होगी। कमलनाथ ने यादव को समझाया कि एफडीआई प्रस्ताव से भाजपा को छोटे व्यापारियों के बाहुल्य वाली लोकसभा सीटों पर नुकसान उठाना पड़ेगा जो उसकी बड़ी ताकत रहे हैं। सब कुछ सरकार के हक में गया। हर चीज एकदम तय हिसाब से हुई और सदन में सरकार ने साबित कर दिया कि पूरा संगठित विपक्ष भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। एफडीआई पर मतदान के बाद कमलनाथ मुश्किलों को आसान बनाने वाले खास शख्स बन गए। मगर इसकी वजह से उनका ध्यान उनकी दूसरी जिम्मेदार से विमुख नहीं हुआ। उनके पास शहरी विकास मंत्रालय का दायित्व भी है। वह रोजाना निर्माण भवन के अपने दफ्तर जाते हैं और शाम तक जरूरी फाइलों को निपटाते हुए देखे जा सकते हैं। उनसे मुलाकात करने वाले हर एक व्यक्ति को डाटाबेस में अपना पूरा ब्योरा दर्ज कराना होता है। फिर जैसे ही सूरज अस्ताचल की ओर चला जाता है, तो उन्हें अपने लोकसभा क्षेत्र छिंदवाड़ा का ख्याल आता है जिसका वह लोकसभा में नौवीं मर्तबा प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वह अपने लोकसभा क्षेत्र का बहुत खास ख्याल रखते हैं, इतना ज्यादा कि मध्य प्रदेश में उसे 'केंद्र शासित जगह' कहा जाता है। अपने संसदीय क्षेत्र का खास ख्याल रखने की वजह से कई बार उन्हें अपनों की झिड़की भी सुननी पड़ती है। एक बार मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान उन्होंने छिंदवाड़ा से जुड़ा कोई मसला उठाया तो तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को उन्हें यह कहना पड़ा था कि यह छिंदवाड़ा के स्थानीय निकाय की बैठक नहीं बल्कि केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक है। कुछ लोग उन्हें आपातकाल के दौर में संजय गांधी से घनिष्ठïता की वजह से भी याद करते हैं। मगर वक्त के साथ न केवल अनुभव बल्कि कमलनाथ का कद भी बढ़ा है। यहां तक कि राहुल गांधी जैसे नेता उनकी मिसाल देते हैं। हाल के सूरजकुंड चिंतन शिविर में गांधी ने उनका नाम लेते हुए कहा कि अपने संसदीय क्षेत्र पर उनकी जबरदस्त पकड़ है और बताया कि उनकी यह खासियत अनुकरणीय है। पार्टी में उनके दूसरे सहयोगी भी उनकी तारीफ करते नहीं थकते हैं। किसी राजनीतिक दल में ऐसे विरले उदाहरण ही होते हैं। मगर उनके लिए सब कुछ बहुत आसान नहीं होने वाला। कमलनाथ की सबसे बड़ी चुनौती आने वाला बजट सत्र होगी जहां उन्हें सरकार की हर हमले से हिफाजत करनी होगी। कमलनाथ में ऐसा करने का माद्दा है-भौगोलिक विशेषताओं पर उनका नियंत्रण पहले ही साबित हो चुका है।
