भ्रष्टाचार और विकास | संपादकीय / December 07, 2012 | | | | |
दुनिया के कौन से देश सबसे कम भ्रष्ट हैं? ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल (टीआई) के ताजातरीन पर्शेप्सन इंडेक्स के मुताबिक तो ये देश हैं डेनमार्क, फिनलैंड, न्यूजीलैंड, स्वीडन, सिंगापुर और स्विट्जरलैंड। उनकी प्रतिव्यक्ति औसत आय है 55,000 डॉलर। वही सबसे अधिक भ्रष्ट (इसमें केवल सरकारी क्षेत्र शामिल हैं तो यह सरकारी भ्रष्टाचार हुआ) देश हैं- उत्तर कोरिया, अफगानिस्तान, सूडान और म्यांमार। इन देशों में प्रतिव्यक्ति आय 1,000 डॉलर से भी कम है। इसके मुताबिक अमीर देश कम भ्रष्ट हैं जबकि गरीब देशों में अधिक भ्रष्टाचार है। एक सवाल खड़ा होता है? ठीक संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक की तर्ज पर क्या प्रति व्यक्ति आय में भष्टाचार का भी स्तर झलकता है? अगर ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल के ताजातरीन सूचकांक में शामिल 174 देशों की रैंकिंग सूची पर ध्यान दिया जाए तो ऐसी ही प्रतीत होगा। इन आंकड़ों को 13 अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से जुटाया गया है। भारत की बात करते हैं। इस संस्था ने 174 देशों में भारत को 94वां स्थान दिया है लेकिन जिन 93 देशों को भ्रष्टाचार की सूची में भारत से ऊपर स्थान दिया गया है, उनमें से 86 प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत से बेहतर हैं। भारत से गरीब केवल सात देश ही भ्रष्टाचार के मामले में उससे बेहतर नजर आए हैं। रोचक बात यह है कि इनमें से छह देश अफ्रीका से हैं (रवांडा, लेसोथो, लाइबेरिया, जांबिया, मलावी और बुरकीना फासो)। जाहिर है अफ्रीकी महाद्वीप के कुछ हिस्से हमसे बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। आइए अब नजर डालते हैं दक्षिण एशिया के भ्रष्टाचार संबंधी आंकड़ों पर। यहां भी निरंतरता नजर आएगी। आय बढऩे के साथ-साथ भ्रष्टाचार की स्थिति में भी सुधार होता नजर आता है। भूटान की प्रति व्यक्ति आय (2,053 डॉलर) क्षेत्र में दूसरी सबसे कम है और भ्रष्टाचार सूचकांक में वह 33वें यानी सबसे बेहतर स्थान पर है। अन्य देश हैं: श्रीलंका (2,880 डॉलर और 79वां स्थान), भारत (1,511 डॉलर और 94वां स्थान)। गरीब पड़ोसी देश यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल भी भ्रष्टाचार सूचकांक में 139वें से लेकर 144वें स्थान के बीच हैं। संदेश एकदम साफ है, अमीर होते जाइए और भ्रष्टाचार के मानक पर आपका प्रदर्शन सुधरता जाएगा। यह निर्धारण एक खतरनाक प्रवृत्ति की ओर संकेत दे रहा है। क्योंकि यह निष्कर्ष आसानी से निकाल लिया जाएगा कि अगर कोई देश गरीब है तो वहां भ्रष्टाचार के मामलों में कुछ खास नहीं किया जा सकता है। इससे सरकार को यह कहने का मौका मिलेगा कि भ्रष्टाचार की अनदेखी की जा सकती है। इंदिरा गांधी ने भी बढ़ते भ्रष्टाचार को यह कहते हुए खारिज किया था कि यह वैश्विक चलन बन चुका है। उन्होंने यह कहा होता तो ज्यादा बेहतर होता कि यह 'तीसरी दुनिया का चलन' बन चुका है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अभी हाल में कहा था कि तेज विकास भ्रष्टाचार के लिए अवसर मुहैया कराता है। भारत और चीन को देखा जाए तो यह बात सही नजर आती है। क्योंकि पिछले एक दशक के तेज विकास के दौर में दोनों में भ्रष्टाचार के मामले बड़े पैमाने पर नजर आए। जबकि सन 1997 तक अपनी तेजी के दौर में इंडोनेशिया भी भ्रष्टाचार का पर्याय बना हुआ था। जहां तक तेज विकास और भ्रष्टाचार के बीच आपसी संबंध की बात है तो कुछ सिद्घांत यह भी कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार की प्रकृति पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए कुछ तरह का भ्रष्टाचार विकास को गति देता है, जैसे दक्षिण कोरिया जबकि अन्य विकास को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। रूस इसका उदाहरण है जो ब्रिक्स देशों में सबसे कमजोर आर्थिक स्थिति में है। भ्रष्टाचार गैर-बराबरी की तरह है। कुछ समय तक तो यह आय में वृद्घि के साथ बढ़ता है लेकिन बाद में आय तो बढ़ती रहती है जबकि भ्रष्टाचार में गिरावट आने लगती है। एक सीमा के बाद असंतुलन इतना अधिक बढ़ जाता है कि संबंधित देश लालच और भ्रष्टाचार के भंवर में बुरी तरह उलझ जाता है और उससे उबर नहीं पाता है। इंडोनेशिया के साथ यही हुआ। तकरीबन एक दशक तक 8-9 फीसदी की दर से विकास करने के बाद आखिरकार 1997 में वहां हालत काफी खराब हो गई। इसका असर पूरे एक दशक तक देश की प्रति व्यक्ति आय पर बना रहा। उसके बाद उसे दोबारा 1997 के स्तर पर वापस आने में एक दशक से ज्यादा लग गए। अब कोई यह न कहे कि किसी ने पहले से चेताया नहीं।
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