उत्पाद, सेवा कर का चुभेगा कांटा! | वित्त मंत्रालय उत्पाद और सेवा शुल्क में 2 फीसदी बढ़ोतरी पर कर रहा है विचार | | वृष्टि बेनीवाल / नई दिल्ली November 28, 2012 | | | | |
वित्त मंत्रालय उत्पाद शुल्क और सेवा शुल्क में 2 फीसदी बढ़ोतरी के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। इसके तहत 2013-14 के बजट में उत्पाद और सेवा शुल्क का दायरा 12 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसदी किया जा सकता है। अगर सरकार ऐसा करने में सफल रहती है तो खजाने में करीब 30,000 करोड़ रुपये की आमदनी बढ़ सकती है।
कुछ क्षेत्रों को मिली रियायतों को भी वापस लिया जा सकता है। हालांकि सीमा शुल्क को मौजूदा 10 फीसदी के स्तर पर बनाए रखा जा सकता है। वित्त मंत्रालय कच्चे तेल के आयात पर 5 फीसदी सीमा शुल्क को फिर से लगाने पर भी विचार कर रहा है। जून 2011 में कच्चे तेल के आयात पर सीमा शुल्क घटाकर शून्य कर दिया गया था।
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया, 'उत्पाद और सेवा शुल्क को बढ़ाकर 14 फीसदी करने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। कुछ क्षेत्रों को दी गई रियायतों को भी वापस लिया जा सकता है और कच्चे तेल के आयात पर फिर से शुल्क लगाया जा सकता है। हालांकि इस पर अंतिम निर्णय बजट के दौरान ही किया जाएगा।Ó कर और सकल घरेलू उत्पाद अनुपात को सुधारने के लिए बजट पूर्व आंतरिक बैठक में इस प्रस्ताव सामने आया। बजट की ज्यादातर घोषणाएं नए वित्त वर्ष से प्रभावी होती हैं लेकिन उत्पाद और सीमा शुल्क में बदलाव तत्काल प्रभाव से लागू हो जाता है। ऐसे में अगर 28 फरवरी को बजट में अतिरिक्त 2 फीसदी शुल्क लगाने की बात कही गई तो यह मार्च से प्रभावी हो जाएगा।
अधिकारी ने बताया कि इस बढ़ोतरी के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि अगर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होता है तो एकीकृत सेवा कर 16 फीसदी हो सकता है जो 14 फीसदी से कहीं अधिक है। उत्पाद शुल्क मंदी के पूर्व स्तर 14 फीसदी तक बढ़ाने की बात कही जा रही है लेकिन बहुत से लोगों का मानना है कि सरकार को उत्पाद और सेवा शुल्क को मौजूदा स्तर पर बनाए रखना चाहिए। जीएसटी के लागू होने के बाद केंद्र और राज्य 8-8 फीसदी की दर से सेवा शुल्क वसूल सकते हैं। अभी सेवा राज्य सरकार के दायरे में नहीं आता है। लेकिन वस्तुओं पर जीएसटी के तहत 20 फीसदी की उच्च दर से कर वसूला जा सकता है। अगर सरकार उत्पाद शुल्क को 14 फीसदी करती है तब वस्तुुओं के दाम में काफी इजाफा हो सकता है क्योंकि राज्य इस पर 12.5 फीसदी की दर से पहले से ही मूल्य वर्धित कर (वैट) वसूल रहे हैं।
क्रूड ऑयल (भारतीय बास्केट) की कीमत जून 2011 के 110 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंचने के बाद वित्त मंत्रालय इस पर सीमा शुल्क लगाना चाह रहा है। दरअसल, पेट्रोलियम उत्पादों पर सीमा शुल्क में कटौती से 2011-12 में सरकार को करीब 58,190 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है। अधिकारी ने बताया कि कोई भी निर्णय लेने से पहले सरकार गुजरात विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखेगी क्योंकि अभी दरों में इजाफा करने से सरकार के खिलाफ लोगों में नाराजगी बढ़ सकती है।
हालांकि मंत्रालय में अधिकारियों का एक वर्ग दरों में कटौती कर विकास को बढ़ावा देने की बात कह रहा है। राजनीतिक तौर पर ऐसा करना उचित होगा लेकिन मंत्रालय बढ़ते राजकोषीय घाटे को लेकर चिंतित है।
शुल्क दरों में बढ़ोतरी से विकास पर असर पड़ सकता है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की आर्थिक विकास दर 5.5 फीसदी रही थी। ऐसे में दरों में इजाफ ा होने से विकास प्रभावित हो सकता है। वित्त वर्ष 2011-12 में भी वित्त मंत्रालय ने उत्पाद शुल्क और सेवा शुल्क को 2 फीसदी बढ़ाकर 10 फीसदी से 12 फीसदी कर दिया था।
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