कई सालों की उठा-पटक के बाद आखिरकार पिछले हफ्ते यह तय हो गया कि अपने मुल्क को 3जी मोबाइल फोन सेवा कैसे मिलेगी।
3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए अभी कोई तारीख तय नहीं की गई है, लेकिन अगले साल की शुरुआत तक इस बारे में फैसला हो जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि तब तक अपने राजस्व घाटे को कम दिखाने के लिए सरकार को पैसे की जरूरत पड़ेगी।
अभी के आंकड़ों के मुताबिक सरकार को इस नीलामी से तरकरीबन 30 से 40 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा होगा। अगर ऐसा हो गया कि अगले साल के अंत तक देसी मोबाइल फोन उपभोक्ताओं को सेलफोन पर ही बेहद तेज रफ्तार वाला इंटरनेट मिलने लगेगा। इसका मतलब दिसंबर, 2009 तक लोग अपने मोबाइल फोन पर ही पूरी की पूरी फिल्में देख सकेंगे। साथ ही, वे कभी भी और कहीं से भी वीडियो टेलीफोनी का लुत्फ भी उठा सकेंगे।
अपने मुल्क में 3जी स्पेक्ट्रम को देने के मामले में कई उठा-पटक हुए। कुछ साल पहले तक दूरसंचार नियामक, ट्राई का यह कहना था कि इस स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं होनी चाहिए। उसके मुताबिक यह तो उन मौजूदा कंपनियों को यूं ही दे देना चाहिए, जो 2जी मोबाइल फोन सेवा दे रहे हैं। नियामक के मुताबिक यह तो उन कंपनियों का अधिकार है। उसका कहना था कि उनके पास 2जी नेटवर्क पर अपनी सेवाएं बढ़ाने के लिए स्पेक्ट्रम नही है। इसलिए उन्हें 3जी स्पेक्ट्रम दे देना चाहिए।
उसका यह भी कहना था कि एक तरफ 2जी मोबाइल फोन नेटवर्क वाले कंपनियों को 3जी स्पेक्ट्रम तो दिया जा सकता था, लेकिन 3जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस वाले कंपनियों के लिए 2जी मोबाइल फोन कैसे दिया जाएगा? इस पर हंगामे वजह से मौजूदा संचार मंत्री ने ट्राई के इस सुझाव को दरकिनार कर दिया था। फिर, ट्राई के प्रमुख और उसका सुझाव भी बदल गया था। संस्था ने कहा कि 3जी लाइसेंस की नीलामी तो होनी चाहिए, लेकिन मौजूदा 2जी मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों के बीच ही।
संचार मंत्री, नियामक के सुझाव से नहीं सहमत हुए। उन्होंने साफ कहा कि नए खिलाड़ियों को भी नीलामी में हिस्सा लेने की इजाजत दी जाएगी। इसके बावजूद दूरसंचार विभाग के नए दिशानिर्देशों में कई ऐसे बिंदु हैं, जिसकी वजह से कई मामलों पर अब भी तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। बतौर नजीर, अब कंपनियों की इस नीलामी में भाग लेने की योग्यता को ही ले लीजिए। नियमों के मुताबिक कंपनियों को इस बारे में पहले से ही 3जी मोबाइल सेवा चलाने का अनुभव होना चाहिए। लेकिन नियमों के मुताबिक बोली लगाने वालों के पास अगर 2जी का लाइसेंस भी होगा तो भी चलेगा।
भ्रम यहीं हैं। चूंकि कई ऐसी कंपनियां हैं, जिनके पास 2जी का लाइसेंस तो है, काम का कोई अनुभव नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि इस बावजूद वह 3जी लाइसेंस के लिए बोली लगा पाएंगे। ऊपर से विलय और अधिग्रहण के बारे में भी काफी अजीब सी स्थिति है। जहां एक तरफ तो इसके लिए साफ नियम हैं, वहीं इस नए दिशानिर्देश का यह भी कहना है कि 3जी के मामले में आगे फेरबदल हो सकता है।
यह भी साफ नहीं है कि सरकार क्यों नए खिलाड़ियों से 2जी लाइसेंस की खातिर 1651 करोड़ रुपये की मोटी रकम लेना चाहती है। इस वजह से नए खिलाड़ियों पर काफी दवाब पड़ेगा। जब तक ये मामले नहीं सुलझते, 3जी पॉलिसी पर नीति का इस कोई फायदा नहीं होने वाला।