पिछले हफ्ते काबुल में भारतीय दूतावास पर जानलेवा हमला किया गया था। ऐसे में भारतीयों और भारतीय संपत्ति की सुरक्षा के लिए हमारी फौज को वहां भेजने की मांग की जा रही है। लेकिन क्या ऐसा करना सही होगा? बता रहे हैं
अजय शुक्ला / July 14, 2008
अफगानिस्तान में हम अपने रणनीतिक अहमियत वाले मकसदों को पूरा करने की राह में धीरे-धीरे सही, लेकिन आगे बढ़ रहे हैं।
लेकिन पिछले हफ्ते काबुल के भारतीय दूतावास पर जानलेवा हमले ने हमारे सामने कई सवालों को खड़ा कर दिया है। वह हमला न केवल हमारे लिए, बल्कि अफगानों और अमेरिकियों के लिए भी काफी नुकसान पहुंचाने वाला रहा।
ऐसे में नई दिल्ली के सामने सबसे अहम सवाल यह है कि क्या हमें हिंसा की आग में जल रहे उस मुल्क में अपने हितों की रक्षा करने के लिए ज्यादा फौजियों को भेजने की जरूरत है? अखबारों की कतरनों पर नजर दौड़ाएं तो साफ नजर आता है कि पूरी मीडिया अफगानिस्तान में भारतीय फौज की तादाद में इजाफा देखना चाहती है।
एक प्रमुख अखबार ने अपने संपादकीय में साफ लिखा है कि, 'काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए हमले के बाद अब वक्त आ गया है, जब उस सवाल से हम मुखातिब हों जिससे लंबे समय से मुंह चुराया जा रहा है। हम अफगानिस्तान में अपने सैन्य उपस्थिति में इजाफा किए बगैर वहां अपनी आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों में इजाफा नहीं कर सकते हैं। लंबे समय से हमने अमेरिकियों और पाकिस्तानियों की शक की निगाहों की वजह से अफगानिस्तान में अपनी गतिविधियों पर अंकुश लगाए रखी लेकिन अब पानी सिर के ऊपर से गुजर गया है।'
कुछ ऐसी ही दुविधा रविवार को विदेश सचिव शिवशंकर मेनन के दिल में भी थी, जब वह काबुल दूतावास में लोगों का उत्साह बढ़ाने के लिए गए थे। हालांकि, शुक्र है कि अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए चलाए जा रहे भारतीय मिशन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। मेनन ने राष्ट्रपति हामिद करजई को पक्का आश्वासन दिया है कि भारत अफगानिस्तान को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए कोशिशें जारी रखेगा। लेकिन वहां मौजूद 4000 भारतीय डॉक्टरों, इंजिनियरों, वैज्ञानिकों और श्रमिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी काबुल के हाथों में ही रहेगी।
हमें अपनी फौज पर काफी गर्व है। इसलिए हमें भारतीय कामगारों के लिए भारतीय सुरक्षा की बात सुनने में भी काफी जबरदस्त लगती है, लेकिन ऐसा करने से पहले इस पर गहराई से सोचने की जरूरत है। यह बात जरूर ध्यान में रखिए कि आज अफगानिस्तान में आंतकवाद, गृहयुध्द की शक्ल अख्तियार कर रहा है। दिनोदिन बदतर होती इस हालत में फौज को तभी भेजना चाहिए, जब उनके आने से हालात सुधरने की अच्छी-खासी उम्मीद हो।
लेकिन अफगानिस्तान में हालात उस स्तर से बहुत पहले ही आगे निकल चुके हैं। इसीलिए भारत को उस मुल्क में फौजी ताकत के तौर पर नहीं, बल्कि एक सच्चे दोस्त की हैसियत से सामने आना चाहिए। अफगान दिलों में हिंदुस्तान के लिए मोहब्बत की असल वजह नई दिल्ली नहीं, बल्कि मुंबई है। भारतीय फिल्मों, संगीत, नाच-गाने, खाने और हिंदुस्तानियों की दोस्ती की वजह से अफगानियों के दिलों में हम भारतीय की छवि को इंसान से आगे बढ़कर दर्जा मिला हुआ है। एक ऐसा दर्जा, जो हकीकत से काफी आगे है। इस छवि को बरकरार रखा है, भारत की सहायता कूटनीति यानी एड डिप्लोमेसी ने।
आज अफगानिस्तान में अस्पतालों, स्कूलों, जन परिवहन प्रणाली, सिंचाई प्रणाली और यहां तक कि वहां की संसद को बनाने में भारत 75 करोड़ डॉलर से ज्यादा की रकम खर्च कर चुका है। ऐसे हाल में जब अफगानिस्तान में सत्ता की खूनी लड़ाई चल रही हो, वहां अपनी फौज उतारने से भला होने के बजाए बुरा ही हो जाएगा। हमारी सारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। अगर हमारी फौज वहां केवल हिंदुस्तानी लोगों और मुल्क की संपत्ति की सुरक्षा के लिए भी जाती है, तो भी जैसे-जैसे हालत खराब होने लगेगी वह इस खूनी दलदल में फंसती जाएगी।
भारतीय फौज वहां उतरने के साथ ही निशाने पर आ जाएगी। इसके बजाए हमारे नीति-निर्धारकों को भविष्य के बारे में सोच कर ही कदम उठाने चाहिए। आज से तीन साल के बाद शायद अमेरिकी और नाटो फौज अफगानिस्तान छोड़ चुकी हो, हामिद करजई बीते कल की बात बन चुके हों और वह मुल्क टुकड़ों में बंट चुका हो। ऐसे अफगानिस्तान में कहने की बात नहीं हमारी मौजूदगी न के बराबर हो जाएगी। हमें वहां से आईटीबीपी के जवानों को वापस बुलाना पडेग़ा और विकास परियोजनाओं को बंद करना पड़ेगा।
तीन साल के बाद बहुत मुमकिन है कि काबुल में ऐसी सरकार बैठी हो, जिसकी हमारे साथ पटरी न खाती हो और हमारे दूतावास और वाणिज्य दूतावासों पर ताला लटकाना पड़े। कुछ ऐसा ही हुआ था 1996 में। आज भी केवल अमेरिकी और यूरोपीय मदद की वजह से वह वक्त वापस नहीं आ रहा है। हालांकि, नाटो मुल्कों का भी धैर्य अब जवाब दे रहा है। अमेरिकी और नाटो फौज को भी जंग में अब मात मिलनी शुरू हो गई है। इसकी वजह उन्हें काफी देर से समझ में आई कि यह जंग केवल अफगानिस्तान की सरजमीं तक ही सीमित नहीं है।
अभी रविवार को ही तालिबान लड़ाकों ने पाकिस्तानी सीमा के पास नौ अमेरिकी सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया था। इसके बाद वरिष्ठ नाटो कमांडर जनरल डेविड मैकिरेन को यह कहने पड़ा कि,'जिस दिन से मैं यहां हूं, मैं लगभग हर रोज आतंकवादियों को अपने पाकिस्तानी ठिकानों से हम पर हमला करते हुए देखा है।' रूसी फौज को भी 1980 के दशक में ऐसी ही हालात का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार अमेरिकी और नाटो फौजों का मुकाबला उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत और बलूचिस्तान से काम कर रहे आतंकवादियों से है।
अमेरिकी और नाटो फौज बड़ी कोशिश कर रही है कि तालिबान को डूरंड रेखा के पार से मिल रहा सहयोग बंद हो। अभी शनिवार को ही अमेरिकी सेनाध्याक्षों की कमिटी के अध्यक्ष एडमिरल माइल मुल्लेन बिना किसी पूर्व जानकारी के पाकिस्तान पहुंचे थे। वहां उन्होंने पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल परवेज कियानी से मुलाकात में साफ-साफ तरीके से बता दिया कि सीमांत प्रांत के कबीलाई इलाकों पर अगर पाकिस्तानी सेना नकेल नहीं कसती तो अफगानिस्तान में मौजूद नाटो और अमेरिकी फौज इस काम को बखूबी अंजाम दे सकती है।
इन चेतावनियों और इक्का-दुक्का मामलों को छोड़कर काबुल में तैनात अंतरराष्ट्रीय फौज का पाकिस्तान के कबीलाई इलाकों पर शायद ही कोई दबदबा है। यह काम तो केवल पाकिस्तान फौज ही कर सकती है, लेकिन वह करना नहीं चाहती। जनरल कियानी ने भी एडमिरल मुल्लेन को साफ-साफ बता दिया कि पाकिस्तानी फौज इस कवायद में अपने 800 जवानों को खो चुकी है। उनका इशारा साफ था कि पाकिस्तान से इससे ज्यादा की उम्मीद न की जाए।
पाकिस्तानी फौज के बड़े अफसरों को अब भी इस बात का अंदाजा नहीं है कि उनके पास कबीलाई इलाकों की लगाम कसने के अलावा शायद ही विकल्प है। शायद उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि अगर अमेरिकी और नाटो फौज में ताबूतों की तादाद इस तरह बढ़ती रही तो एक दिन दोनों उस मुल्क से बोरिया-बिस्तर समेट लेंगे। अगर आज हमने खूनी पचड़े में पडे बगैर अफगानों की मदद करनी जारी रखी तो कल हमारे जाने के बाद भी काबुलीवाला हमें नम आंखों के साथ याद किया करेगा।
Business Standard Private Ltd. Copyright & Disclaimer feedback@business-standard.com
This site is best viewed with Internet Explorer 6.0 or higher; Firefox 2.0 or higher at a minimum screen resolution of 1024x768
* Stock quotes delayed by 10 minutes or more. All information provided is on
"as is" basis and for information purposes only. Kindly consult your
financial advisor or stock broker to verify the accuracy and recency of all
the information prior to taking any investment decision.
While due diligence is done and care taken prior to uploading the stock
price data, neither Business Standard Private Limited, www.business-standard.com nor any
independent service provider is/are liable for any information errors,
incompleteness, or delays, or for any actions taken in reliance on
information contained herein.