भारतीय न्यायिक विवाद निपटारा तंत्र वाणिज्य और निवेश क्षेत्रों में कालभ्रम की स्थिति में परिणत होता जा रहा है।
इस तंत्र के प्रशासन में भाग लेने वाले वकील और न्यायिक कर्मी भी अपने करीबी मित्रों को इस बात की सलाह देते हैं कि वे मुकदमा लड़ने से पहले सौ बार सोचें। इस संबंध में एक आम कहावत काफी प्रचलित है कि अगर किसी आदमी ने मुकदमा दायर किया है, तो उसका लाभ उसके पोते को मिलेगा।
यह एक पृष्ठपट की ही बात होगी जब यह कहा जाएगा कि भारत वाणिज्यिक विवादों के निपटारे के लिए प्रभावकारी और समयानुकूल न्यायिक तंत्र स्थापित कर रहा है। इस बात से थोड़ा आश्चर्य होता है कि वाणिज्यिक विवादों के निपटारे के लिए पंचायत और समाधान कानून 1996 में लाया गया था। हालांकि पंचायत में जिन वकीलों को शामिल किया गया था, वे उसी न्यायालय मुकदमे की पारिस्थितिकी तंत्र का एक हिस्सा थे।
और तो और पंचायत ट्रिब्यूनल में शामिल होने वाले अधिकतर सदस्य न्यायिक महकमे के सेवानिवृत्त अधिकारी थे। परिणाम: एक बेहद अप्रभावकारी और जरूरत से ज्यादा धीमा वैकल्पिक विवाद निपटारा तंत्र , जो कि कभी एक विकल्प नहीं बनने लायक है। मामलों को दाखिल करने में ही महीने लग जाते हैं और न्यायालय की मूलभूत प्रक्रियाएं भी काफी धीमी चलती है। अगर वाणिज्यिक अनुबंधों के मामले, जिसका समयांतराल काफी कम दिनों का होता है, उसकी सुनवाई में अगर साल भर का समय लग जाए, तो भारत की इस कहानी के बारे में आप क्या कहेंगे।
क्या आप यहीं कहेंगे कि भारत निवेश को आकर्षित करने के लिए नित नई कोशिश कर रहा है। अगर इससे जुड़ी न्यायिक गतिविधियां का यही हाल रहा, तो भारत के विकास की कहानी कौन सा मोड़ लेगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। ये बातें इस संदर्भ में कही जा रही है कि सरकार विभिन्न उच्च न्यायालयों में वाणिज्यिक खंडों के लिए अलग से कानून लिखने की बात कह रही है। इस प्रस्ताव में वाणिज्यिक विवादों को परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि वाणिज्यिक विवाद वह है, जिसमें व्यापार और वाणिज्य से संबंधित हस्तांतरण पर विवाद उठे।
मर्केंटाइल की व्याख्या और दस्तावेजों और अनुबंधों से संबधित विवाद को भी इसी श्रेणी में लाने की कोशिश की गई है। इसमें यह भी प्रस्तावित है कि बौद्धिक संपदा से जुड़े विवादों को भी वाणिज्यिक विवादों की श्रेणी में लाया जाए। इस तरह के विवादों के निपटारे के लिए यह प्रस्ताव किया गया है कि प्रत्येक उच्च न्यायालय एक अलग वाणिज्यिक खंड का गठन करें और इसमें दो या इससे अधिक पीठ की व्यवस्था की जाए। हर पीठ में एक से ज्यादा जजों का रहना जरूरी किया जाना चाहिए। इसे यह निर्देश दिया जाए कि यह खंड केवल वाणिज्यिक विवादों का ही निपटारा करे।
इस अलग खंड में ही सारे नए वाणिज्यिक विवादों का निपटारा होना चाहिए। इसमें वे सारे विवाद आएंगे, जो वर्तमान में उठे हैं और जिसे उच्च न्यायालय ने लंबित कर दिया है। ऐसे लंबित विवाद को निचली अदालतों से हस्तांतरित कर उच्च न्यायालय में हस्तांतरित कर देना चाहिए। इस संबंध में एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि उस विवाद की महत्ता अधिक हो, तब ही इस तरह का हस्तांतरण करना चाहिए। 1 करोड़ रुपये वाले किसी भी वाणिज्यिक मामले को सीधे वाणिज्यिक खंड में हस्तांतरित किया जाएगा, लेकिन इस संदर्भ में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को इतनी छूट मिलनी चाहिए कि वे इस शर्तों के निर्धारण की न्यूनतम सीमा 5 करोड़ रुपये से ज्यादा न करे। इस तरह का कोई मामला वाणिज्यिक खंड के जिम्मे ही दी जानी चाहिए और उसकी सुनवाई भी वहीं होनी चाहिए।
वाणिज्यिक विवादों की सुनवाई के लिए बिल्कुल अलग न्याय प्रणाली की व्यवस्था की जानी चाहिए और इसमें प्रस्तावित कानून को जगह नहीं मिलनी चाहिए। इसमें जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है वह है कि विवादों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की प्रणाली पर आधारित होना चाहिए। वैसे जहां अति आवश्यक हो वहीं पर सिविल कानूनी प्रक्रिया का सहारा लिया जाए अन्यथा इस विवाद के निपटारे के लिए विशिष्ट उपबंधों का इस्तेमाल करना चाहिए। वाणिज्यिक विवादों से जुड़े हर मामले को दाखिल करते वक्त व्यक्ति जो सबूत मुहैया करा रहा है, उसको एक शपथ पत्र दायर करना अनिवार्य करना होगा।
विवाद में उठने वाले मुद्दे का एक ड्राफ्ट, उत्पादन और खोज के लिए एक आवेदन पत्र आदि को अनिवार्य कर देना चाहिए। प्रतिवादी को यह आवश्यक किया जाना चाहिए कि वे इसे लिखित रूप में दाखिल करें और किसी तरह के दावे की बात हो तो एक काउंटर क्लेम वक्तव्य भी जमा करे। इस वक्तव्य की लिखित प्रति के जमा होने के 15 दिनों के अंदर अनुमति प्राप्त करने के लिए एक रिज्वाइंडर भेजा जाए। अगर जरूरत पड़े, तो इस रिज्वाइंडर को एक महीने में भेजें। वाणिज्यिक खंड न्यायालय के लिए कोर्ट कमिश्नरी की तरह रिकॉर्ड दर्ज करने के लिए लोगों की नियुक्ति करनी चाहिए।
जजों की अवधि मुक्त अंतराल के लिए होनी चाहिए। कानून में इस बात का भी प्रावधान किया जाना चाहिए कि पार्टियों के बीच में वार्तालाप संभव कराया जा सके और मौखिक तर्क के लिए समय भी दिया जाना चाहिए। सबसे महत्त्वपूर्ण वाणिज्यिक खंड में दायर की गई सारी याचिकाओं को सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में रखा जाना चाहिए। अगर इस तरह का कानून आता है, तो स्थितियां जरूर बदलेगी।
यह बदलाव ने सिर्फ न्यायिक महकमे में होगा बल्कि वकीलों में भी आमूल चूल परिवर्तन आएगा। इसके लागू होते हीं स्थिति यह होगी कि खुले तौर पर सारे वाणिज्यिक विवादों को सुलझाने का रास्ता साफ हो जाएगा। वैसे इस तरह की व्यवस्था भी वर्तमान पंचायत और समाधान तंत्र को कालभ्रम की स्थिति में ही ला देगी।