कर्ज ने बढ़ाया 'सलाहकारों' का सिरदर्द | आदिति फडणीस और मनोजित साहा / नई दिल्ली/मुंबई January 16, 2012 | | | | |
सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कर्ज में रियल एस्टेट, ऊर्जा, सड़क और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की हिस्सेदारी बढऩे से सरकार के माथे पर बल पडऩे लगे हैं। इस महीने के अंत में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) द्वारा प्रधानमंत्री को सौंपी जाने वाली रिपोर्ट में यह मुद्दा उठाए जाने की उम्मीद है।सरकार बैंकों के पर्याप्त पूंजीकरण पर जोर देने, उन्हें बेस-3 मानकों का पालन करने के लायक बनाने के वास्ते सालाना 30,000 से 40,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त पूंजी उपलब्ध कराने के अलावा बैंकों को रियल एस्टेट क्षेत्र से आने वाली मांग से बचाना चाहती है क्योंकि यूरोपीय बैंकों से निराश होने के बाद तमाम कंपनियां भारतीय बैंकों का दरवाजा खटखटा सकती हैं।
सरकार एक दूसरी बड़ी समस्या पर विचार कर रही है। वर्ष 2007 में रियल एस्टेट बॉन्डों में भारी निवेश करने वाले म्युचुअल फंडों के लिए मुश्किल हो रही है क्योंकि बैंक तरलता के संकट के कारण बॉन्डों के नवीकरण से इनकार कर रहे हैं।
अब यूरोपीय बैंकों के उधारी देने से इनकार करने पर रियल एस्टेट क्षेत्र को तरलता संकट जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। यदि क्षेत्र विदेशी बैंकों के विकल्प के तौर पर भारतीय बैंकों से कर्ज मांगता है तो क्या वे उसकी मांग पूरी कर सकते हैं? और तब क्या होगा जब इस क्षेत्र का खराब प्रदर्शन आगे भी जारी रहेगा?
आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2010-11 में व्यावसायिक रियल एस्टेट (सीआरई) को दिया जाने वाला बैंक कर्ज 21.4 फीसदी बढ़ा था, जबकि उससे पिछले साल महज 0.3 फईसदी की वृद्धि हुई थी। वर्ष 2010-11 के लिए गैर खाद्य कंपनियों की उधारी वृद्धि दर 20.6 फीसदी रही थी। वर्ष 2011-12 में कर्ज वितरण में कमी के क्रम में सीआरई को कर्ज के प्रवाह में गिरावट दर्ज की गई है। नवंबर तक सीआरई को दिए जाने वाले कर्ज में साल दर साल आधार पर 10.6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। 18 नवंबर तक गैर खाद्य क्षेत्र की उधारी वृद्धि दर 16.8 फीसदी रही, जबकि बीते साल वृद्धि दर 5.6 फीसदी रही थी। सरकार को यह भी लगता है कि सेबी द्वारा एनबीएफसी के संबंध में जुटाए गए आंकड़े बढ़ते संकट की तस्वीर साफ करेंगे। वित्त वर्ष 2010-11 में एनबीएफसी क्षेत्र की ऋण वृद्धि दर 54.8 फीसदी रही, जबकि बीते साल यह आंकड़ा 14.8 फीसदी रहा था।
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