तेल ईंधन की बढती कीमतों की मार झेलती विमानन कंपनियों को शायद इसकी मार से बचने का विकल्प मिल गया है।
अगर विमानन कंपनियां भारतीय तेल कंपनियों से विमान ईंधन खरीदने के बजाय इसे बाहर से आयात करें तो उन्हें सालाना 2,500 करोड़ रुपये की बचत होगी। इससे कंपनियां इस वित्त वर्ष में अनुमानित 8,000 करोड़ रुपये के नुकसान को एक तिहाई तक कम कर सकती हैं। कंपनियों का ईंधन बिल भी 14 फीसदी कम हो जाएगा।
किंगफिशर ने तो इसकी शुरुआत भी कर दी है। हाल ही में किंगफिशर के प्रमोटर विजय माल्या ने घोषणा की थी कि कंपनी मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज से विमान ईंधन खरीदेगी। रिलायंस इंडस्ट्रीज इस ईंधन को आयात करेगी। उन्होंने बताया कि इससे कंपनी को सालाना 600 करोड़ रुपये की बचत होगी। ऐसा होने से राज्य सरकारों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि विमान ईंधन पर लगने वाला टैक्स राज्यों की आय का अच्छा जरिया था। इससे भारतीय सरकारी तेल विपणन कंपनियों को भी नुकसान होगा। दरअसल भारतीय तेल कंपनियां विमान ईंधन को वैश्विक दामों से ज्यादा कीमत पर बेचती हैं।
सरकारी नियमों के अनुसार अगर अगर कोई घरेलू विमानन कंपनी निजी इस्तेमाल के लिए ईंधन का आयात करती है तो उसे बिक्री कर देने की जरूरत नहीं होती है। कंपनी को सिर्फ आयात पर पांच फीसदी कर देना होता है। विमान ईंधन पर लगने वाला शुल्क दिल्ली में 20 फीसदी और चेन्नई में 29 फीसदी है। आंध्र प्रदेश और केरल जैसे कुछ राज्यों ने ही इस शुल्क को 4 फीसदी तक कम किया है। निजी तेल कंपनियों के मुताबिक ऐसा करने से विमानन कंपनियों को लगभग 10,000 रुपये प्रतिलीटर की बचत होगी। फिलहाल विमानन कंपनियां एटीएफ को 71,000 रुपये प्रतिलीटर की कीमत पर खरीद रही हैं।
उद्योग विशेषज्ञों के मुताबिक, 'रिलायंस के पास एटीएफ की आपूर्ति के लिए देशभर के लगभग 17 शहरों में बुनियादी ढांचा मौजूद है। लेकिन एटीएफ का आयात मेंगलौर ,मुंबई के पास जेएनपीटी और चेन्नई जैसे तटीय शहरों में ही हो सकता है। लेकिन दिल्ली जैसे शहरों के लिए एटीएफ को जमीन के रास्ते से वहां पहुंचाना होगा। लेकिन तब इस ईंधन को लक्षित शहरों तक पहुंचाने की कीमतें इतनी ज्यादा होंगी कि इससे शुल्क दर कम होने का फायदा न के बराबर हो जाएगा।'
माल्या ने कहा, 'हमारा मुख्य लक्ष्य बिक्री कर में मिलने वाली छूट को बचाना है। अगर मेरे पास जेएनपीटी में ईंधन का भंडार है तो मै आसानी से इसे मुंबई में इस्तेमाल कर सकता हूं। दूसरी कंपनी से उस जगह के लिए ईंधन ले सकता हूं जहां हमारा स्टॉक नहीं है। इसके बदले वह कंपनी हमसे उस जगह के लिए ईंधन ले सकती है जहां पर हमारे स्टॉक हैं पर उनके नहीं हैं। इससे दोनों ही कंपनियों को शुल्क नहीं देना पड़ेगा।'
विशेषज्ञों के अनुसार , 'बेंगलुरु और हैदराबाद में बन रहे नए हवाई अड्डों पर इस तरह की सुविधा देना काफी आसान होगा जबकि मुंबई जैसे हवाई अड्डों पर ये मुमकिन नहीं हो पाएगा। सरकारी तेल कंपनियां इस बात पर ऐतराज करेंगी।'