कृषि से जुड़ी जिंसों की कीमतें बाजार में आसमान छू रही हैं। कीमतों में बढ़ोतरी का आगाज जनवरी में ही हो चुका था। इन जिंसों में खाद्य तेलों की कीमतें सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रही हैं।
इन उद्योगों से जुड़े खिलाड़ियों की मानें तो अभी कीमतों की आग और तेज होनी तय है, क्योंकि देश में इन चीजों की मांग भी काफी तेजी से बढ़ रही है।
साथ ही इनके निर्यात में भी वृध्दि हो रही है। जनवरी से अब तक दाल, कपास, मसालों और अन्य अनाजों के दामों में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है। बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक, इन चीजों के दामों में बढ़ोतरी की अभी और गुंजाइश है।
खाद्य तेलों की घरेलू कीमतों में जनवरी से अब तक 10 से 28 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की जा चुकी है। मूंगफली तेल की कीमतों में 13.08 फीसदी का इजाफा हुआ है, जबकि सूरजमुखी के तेल 19.69 फीसदी तेज हुए हैं।
इस दौरान सोयाबीन तेल की कीमतें 27.78 फीसदी बढ़ीं। जिंस पर नजर रखने वाले एक विशेषज्ञ के मुताबिक, डयूटी और अन्य शुल्कों में कटौती के बावजूद खाद्य तेल की कीमतों में बढ़ोतरी जारी है।
उनके मुताबिक, पिछले 15 दिनों में अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में भारी उठापटक देखने को मिली है। इसे कीमतों में बढ़ोतरी की एक वजह माना जा सकता है।
कोटक कमॉडिटीज के विशेषज्ञ आलोक तिलक का मानना है कि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और भारत और चीन के बाजारों में खाद्य तेलों की मांग इसकी कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह हैं। खाद्य तेलों के बाद दाल की कीमतें सबसे ज्यादा तेज हैं।
जनवरी से अब तक चना और मसूर दाल की कीमतों में तकरीबन 23 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। यही नहीं, मसालों और कपास के दाम भी काफी तेजी से भाग रहे हैं।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी. के. शास्त्री का मानना है कि कृषि जिंस में तेजी की वजह से मुद्रास्फीति पर दबाव बढ़ेगा। उनके मुताबिक, कीमतों में तेजी बने रहने की संभावना के मद्देनजर हालात और खराब हो सकते हैं।
हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी कंपनियां अपने लागत खर्चों में हुई बढ़ोतरी के दबाव का सामना कर रही हैं। इसके मद्देनजर हिंदुस्तान यूनिलीवर कुछ हद तक इसका बोझ उपभोक्ताओं पर भी डाल रही है।
बिस्कुट बनाने वाली ब्रिटानिया और आईटीसी जैसी कंपनियां गेहूं की बढ़ती कीमतों से जूझ रही हैं।