किसी भी उत्पाद के डिजाइन का महत्त्व बहुत ज्यादा होता है। दशकों से इसका महत्त्व बढ़ता जा रहा है और इसे देखते हुए 2000 में इसके लिए अलग से कानून बनाने की जरूरत पड़ गई।
कोई भी उत्पाद बिल्कुल सटीक हो सकता है लेकिन जब दुकानों में उस उत्पाद को प्रतिस्पर्धी कंपनी के उसी तरह के उत्पाद के साथ प्रदर्शित किया जाता है तो यह बात काफी मायने रखती है कि उत्पाद बाहर से कैसे दिखाई दे रहा है।
यह न केवल उत्पाद की ओर ग्राहक को आकर्षित करता है बल्कि इन दिनों उत्पाद की पैकेजिंग और देखने में सुंदरता भी उसकी गुणवत्ता का निर्धारण करती है। चाकू के हैंडल, पेन होल्डर खिलौनों और ब्रैसलेट्स तक को लेकर कानूनी लड़ाई भी लड़ी गई।
हमारे देश में पेटेंट और कापीराइट के कानून तो विकसित हो चुके हैं, लेकिन डिजाइन को लेकर बने कानून बहुत कमजोर हैं। कुछ सप्ताह पहले शायद पहली बार डिजाइन एक्ट 2000 पर सर्वोच्च न्यायालय का विस्तृत फैसला आया है। भारत ग्लास टयूब्स लिमिटेड बनाम गोपाल ग्लास वर्क्स लिमिटेड मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रकार के मामलों में विदेशों में हुए फैसलों का हवाला भी दिया।
उच्च न्यायालयों ने भी डिजाइन से संबंधित कुछ मामलों में फैसला दिया लेकिन वे पुराने डिजाइन एक्ट 1911 के मुताबिक हुए थे। इस मामले में गोपाल ग्लास ने दावा किया कि उसने एक नया और मौलिक औद्योगिक डिजाइन तैयार किया है। उसने कहा कि इसे ग्लास शीट पर मशीनी प्रक्रिया से तैयार किया गया है। ग्लास शीट को आकर्षक आकार, सजावटी पैटर्न और विभिन्न रंगों में तैयार करने के लिए जर्मनी में निर्मित रोलर का इस्तेमाल किया गया।
इस डिजाइन को अधिनियम के तहत पंजीकृत भी कराया गया था और यह 10 साल तक वैध रहना था। कुछ साल बाद ही भारत ग्लास ने कथित तौर पर उस डिजाइन की नकल तैयार कर ली। इस मामले को लेकर पहले गोपाल गैस जिला न्यायालय में चली गई जहां से उसने स्थगनादेश प्राप्त कर लिया। इसके जवाब में भारत गैस ने कंट्रोलर आफ डिजाइन से संपर्क किया और कहा कि यह कोई नया डिजाइन नहीं है।
इसके पहले भी यह डिजाइन अपने देश और दूसरे देशों में आ चुका है। इसके बाद कंट्रोलर ने गोपाल ग्लास का पंजीकरण निरस्त कर दिया। इसके बाद यह झगड़ा कलकत्ता उच्च न्यायालय में पहुंचा, जिसने कंट्रोलर के आदेश को निरस्त कर दिया। प्रतिस्पर्धी इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में पहुंची, जहां उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा गया।
नया डिजाइन अधिनियम, विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था। इसके उद्देश्यों और इसको बनाने के कारणों में लिखा गया है, 'औद्योगिक डिजाइनों के संरक्षण के लिए बनी कानूनी व्यवस्था को और प्रभावी बनाए जाने की जरूरत है, जिससे पंजीकृत डिजाइनों का संरक्षण किया जा सके। इसकी जरूरत इसलिए भी है कि डिजाइनिंग की गतिविधियों को प्रोत्साहन मिले, जो उत्पादन का ही एक हिस्सा है।'
इस अधिनियम में 'डिजाइन' और 'मूल' शब्द को लंबे पैराग्राफ में परिभाषित किया गया है, लेकिन तकनीकी प्रकृति और वैज्ञानिक विकास के मामले में अपरिहार्य रूप से विवाद उठते हैं। ग्लास मैन्युफैक्चरर्स के बीच उठा ताजा विवाद इसका एक उदाहरण है। इस फैसले में डिजाइन नया और मूल होने को लेकर एक महत्त्वपूर्ण सवाल उठा। मामला कुछ ऐसा था कि किसी व्यक्ति ने डिजाइन को लेकर कंट्रोलर के पास शिकायत नहीं दर्ज कराई थी।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुभव किया कि इस आरोप को खारिज नहीं किया जा सकता है। इस बात के कोई प्रमाण नहीं थे कि पंजीकरण के पहले भारत में यह डिजाइन मौजूद था। जर्मन कंपनी ने केवल रोलर्स का विनिर्माण किया था जिसको ग्लास डिजाइन करने, रेक्सीन और चमड़े तथा अन्य उत्पादों को डिजाइन करने में प्रयोग किया जा सकता था। न्यायालय के मुताबिक कंपनी ने वर्तमान डिजाइन का फिर से निर्माण नहीं किया था, लेकिन एक नए डिजाइन का पंजीकरण करा लिया था।
बंबई उच्च न्यायालय ने दो नारियल तेल के बादशाहों, मारिको लिमिटेड बनाम राज ऑयल, जो क्रमश: पैराशूट और कोकोराज का निर्माण करते हैं, मामले में कैप डिजाइन को लेकर उपजे विवाद में फैसला किया था। न्यायालय ने कोकोराज के खिलाफ स्थगनादेश जारी नहीं किया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने दो फैसलों में पुराने कानूनों के तहत फैसला किया था।
पहला मामला डोमेस्टिक अप्लॉयंसेज बनाम ग्लोब सुपर पार्ट्स का था। इसमें सिजलर नाम के एक गैस तंदूर के डिजाइन को लेकर विवाद खड़ा हुआ था। यह मामला भी ग्लास डिजाइन की ही तरह था और जिस कंपनी ने डिजाइन की नकल की थी, वह पंजीकरण निरस्त कराने में सफल नहीं हुई थी। दूसरा मामला विमको लिमिटेड बनाम मीना मैच इंडस्ट्रीज का था। इस मामले में माचिस के डिब्बे के डिजाइन को लेकर विवाद खड़ा हुआ।
इसमें न्यायालय ने कहा कि विमको डिजाइन पर एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती। आखिर क्या है नया और मौलिक? गामेटर बनाम कंट्रोलर मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि कोई डिजाइन नया और मौलिक है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह डिजाइन इसके पहले कभी नहीं देखा गया हो। यह भी हो सकता है कि पुरानी चीज को ही नए प्रयोग के साथ अपनाया गया हो।
यह फैसला उस विवाद में आया था जब कलाई घड़ी में मेटल बैंड इस्तेमाल करने को लेकर टकराव हुआ। इसका आकार तो मौलिक नहीं था, लेकिन इसका घडी में इस्तेमाल किया जाना नई बात थी। यह ऐसे मामले हैं जो वैश्विक स्तर पर उपभोक्ताओं पर प्रभाव डाल रहे हैं और डिजाइनों को लेकर विवाद भविष्य में भी निश्चित रूप से बढ़ेंगे।