भारतीय पाठकों को मनी लॉन्डरिंग यानी काले धन को सफेद बनाने की कवायद के बारे में विस्तार से बताने की जरूरत तो बिल्कुल नहीं है।
काले पैसे और उसे सफेद बनाने की बातों से हम अच्छी तरह वाकिफ हैं, लेकिन इस मामले में हमारे विधि निर्माताओं और आम नागरिकों का नजरिया केवल कर बचाने तक ही सीमित है और इस पर रोक लगाने के लिए भी कई तरह के कानून बनाए गए हैं।
लेकिन इस समस्या की जड़, काले धन के स्रोतों, उन्हें इकट्ठा करने के तरीके और उन्हें देश के वित्तीय तंत्र में चुपचाप शामिल करा देने के तरीके और प्रणाली तक पहुंचने के लिए कोई भी गंभीर प्रयास नहीं किया गया है। भारत को अब भी हवाला सौदों का बड़ा अड्डा माना जाता है और यहां काले धन को सफेद बनाने के इस खेल की वजह से केवल अर्थव्यवस्था ही नहीं, बल्कि समूची राजनीतिक व्यवस्था और संप्रभुता को होने वाले खतरे को भी भांपने की जरूरत है।
मनी लॉन्डरिंग निरोधक अधिनियम (पीएमएलए) 2002 में संशोधनों का मकसद काले धन को सफेद बनाने की प्रक्रिया की खोज करना और उसकी पहचान करना तथा सीमा पार से होने वाले इस तरह के कारोबार का भी पता लगाना होना चाहिए और इसके लिए सभी उपयुक्त तरीकों का इस्तेमाल भी होना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने सीमा पार यानी दो देशों के बीच काले धन की आवाजाही से होने वाले दुष्परिणामों को 1980 के दशक में ही पहचान लिया था और इनसे निपटने के लिए कई अहम कदम भी उठाए, मसलन नशीले पदार्थों और धन की आवाजाही से निपटने के लिए वियना संधि (1988) और अंतरदेशीय अपराधों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पलेरमो संधि (2000)। लेकिन भारत ने अभी तक इनमें से किसी भी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए।
भारत अभी तक काले धन वित्तीय कार्रवाई के लिए गठित कार्यबल (एफएटीएफ) का भी सदस्य नहीं बना है, जिसका मकसद अंतरराष्ट्रीय मानकों को अपनाकर किसी भी देश के कानूनी तंत्र में सुधार करना है। फिलहाल काले धन के इस प्रेत से निपटने के लिए भारत के पास तीन कानून हैं।
नशीले पदार्थों से संबंधित नारकोटिक्स ऐंड साइकोट्रॉपिक सब्सटैंसेज (एनडीपीएस) एक्ट 1985, जिसके तहत कुछ खास परिस्थितियों में नशीले पदार्थों से संबंधित अपराधों के खिलाफ कार्रवाई होती है, गैर कानूनी गतिविधियां अधिनियम (यूएपीए), जो 2004 में हुए संशोधन के बाद आतंकवाद के लिए धन इकट्ठा करने के मामले में कारगर है और पीएमएलए 2005 में नियम तय होने के बाद ही प्रभावी हुआ और काले धन को सफेद बनाने की जुगत के खिलाफ जिसका इस्तेमाल करने की बात कही जाती है।
एनडीपीएस अधिनियम का इस्तेमाल केवल नशीले पदार्थों से संबंधित अपराध करने वालों के खिलाफ होता है और उसमें किसी विशिष्ट अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने की जरूरत नहीं पड़ती। पीएमएलए का इस्तेमाल तभी हो सकता है, जब विशिष्ट अपराध की बात आए और इस अधिनियम की अनुसूची में भ्रष्टाचार, वन्यजीव को हानि पहुंचाना, नशीले पदार्थों की तस्करी और मानवों की अवैध रूप से आवाजाही शामिल है, लेकिन पूंजी और वित्तीय बाजारों को लगभग छोड़ ही दिया गया है।
हालांकि भारत ने वित्तीय और पूंजी बाजारों में नियामक की जवाबदेही और निगहबान यानी बाजार पर नजर रखने वाली संस्था के तौर पर भूमिका तय करने के लिए कदम उठाए हैं। इन बाजारों को भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) और बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) ही नियंत्रित करती हैं। तीनों की भूमिका अच्छी तरह से परिभाषित है।
रिजर्व बैंक पहली संस्था थी, जिसने ग्राहक के प्रति विनम्र और सही व्यवहार करने के लिए निर्देश जारी किए। पूंजी बाजार की हिफाजत करने में सेबी की क्या भूमिका और अहमियत है, यह बताने की जरूरत नहीं है। सेबी ने काले धन की आवाजाही को रोकने के लिए रिजर्व बैंक से भी पहले दिशानिर्देश जारी कर दिए थे। पीएमएलए की धारा 12 के मुताबिक सभी बैंकों और मध्यस्थ संस्थाओं के लिए सभी लेनदेन के रिकॉर्ड रखना जरूरी है।
ये रिकॉर्ड लेनदेन की प्रकृति और कीमत के आधार पर रखे जाते हैं और इन्हें निदेशक के सामने पेश करना होता है। फिलहाल कानून के तहत इस तरह के लेनदेन में 10 लाख रुपये से अधिक या उससे कुछ कम की नकदी निकालना या जमा करना, धोखाधड़ी करना या जाली नोट या उपकरण या संदेहास्पद धन निकासी, जमा, भुगतान अथवा ऋण वगैरह शामिल हैं। सभी क्षेत्रों के लिए रिकॉर्डों की देखभाल और उनकी पड़ताल के संबंध में पीएमएलए में दिए गए सभी निर्देश 2005 से ही लागू कर दिए गए हैं।
लेकिन पीएमएलए, यूएपीए और एनडीपीएस की तिकड़ी भी अभी प्रभावी नहीं है क्योंकि आम तौर पर किसी भी मामले की ठीक तरीके से पड़ताल ही नहीं की जाती है, मुकदमे तो और भी कम होते हैं और इन मुकदमों में दोषी ठहराए जाने के मामले तो आज तक गिने चुने ही हुए हैं। कुर्की करने, सील करने और जब्त करने के अधिकार भी काफी हद तक विशिष्ट अपराधों के लिए बनाए गए कानूनों पर निर्भर करते हैं।
असल में पीएमएलए में अपराध की प्रक्रिया के बारे में तो बात की गई है, लेकिन अपराध करने में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों को जब्त करने का जिक्र ही नहीं है। इसके अलए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की बात आती है, जो द्विपक्षीय संधियों पर निर्भर करता है (बशर्ते दो देशों के बीच ऐसी संधि हो) और बाकी मामलों में दूसरे देश से निवेदन करना पड़ता है। एफएटीएफ की सदस्यता यहीं पर महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह सभी मर्जों की एक दवा के तौर पर काम करती है।
प्रस्तावित संशोधनों में पीएमएलए कानून के मुख्य प्रावधानों को सूचना दर्ज करने और उसे संभालकर रखने के नियमों में शामिल करने की बात कही जा रही है। इसके अलावा खास तौर पर विदेशी मुद्रा के लेनदेन में सभी मध्यस्थ पक्षों के लिए लेनदेन की सूचना देने को अनिवार्य बनाने की भी बात इसमें शामिल है।
कैसिनो, विदेशी मुद्रा का परिवर्तन करने वाले यानी मनी चेंजर, एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने की सेवा प्रदान करने वाले और अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड गेटवे को भी नियामक और रिपोर्ट पेश करने संबंधी नियमों के दायरे में लाने की बात है। कैसिनो वगैरह को अभी रिजर्व बैंक के नियमों के मुताबिक चलना होता है और वे नियम मोटे तौर पर ग्राहकों से संबंधित कारोबार पर ही नजर रखते हैं।