अनुबंध कारोबार से पीरामल पकड़ेगी रफ्तार | अधिग्रहण के रास्ते क्रिटिकल केयर कारोबार में रखेगी कदम, अनुसंधान संयंत्रों को हासिल करने के लिए बातचीत जारी | | रघु बालकृष्णन / मुंबई June 16, 2011 | | | | |
पीरामल हेल्थकेयर ने अनुबंध आधारित अनुसंधान व विनिर्माण सेवा (सीआरएएमएस- क्रेम्स) क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति बढ़ाने की योजना बनाई है। साथ ही, कंपनी क्रिटिकल केयर कारोबार में अधिग्रहण के रास्ते कदम रखेगी। कंपनी ने अपने मुख्य कारोबार को कुछ समय पहले एबॉट को बेच दिया था। इससे कंपनी के पास पर्याप्त नकदी मौजूद है।
पीरामल हेल्थकेयर लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक व सीओओ एन. संथानम ने कहा कि अनुबंध आधारित अनुसंधान संयंत्रों को हासिल करने के लिए कंपनी कई वैश्विक कंपनियों के साथ बातचीत कर रही है। साथ ही, क्रिटिकल केयर विभाग के लिए दर्द निवारक और बेहोशी की दवाओं के कारोबार पर भी कंपनी ध्यान देगी। पीरामल हेल्थकेयर ने अपने घरेलू दवा कारोबार को पिछले साल एक सौदे के तहत अमेरिकी कंपनी एबॉट लैब्स को बेच दिया था। इस सौदे के तहत पीरामल को 17,000 करोड़ रुपये की आमदनी हुई थी।
भारत में क्रेम्स का बाजार 2010 में लगभग 3.8 अरब डॉलर था। उम्मीद है कि 2012 तक देश में क्रेम्स का बाजार 7.6 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। संथानम ने कहा, 'अहमदाबाद, हैदराबाद और चेन्नई स्थित क्रेम्स संयंत्र पूरी क्षमता के साथ परिचालन में हैं। बहुराष्टï्रीय कंपनियों की ओर से आउटसोर्सिंग अनुबंधों की संख्या बढऩे के मद्ïदेनजर हम विदेश में खरीद के जरिये इस कारोबार को और बढ़ाने जा रहे हैं। हालांकि, उन्होंने विस्तृत जानकारी देने से इनकार किया।
रेटिंग एजेंसी आईसीआरए की ताजा अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, क्रेम्स के वैश्विक बाजार में तेजी से वृद्घि दर्ज की जारी है। रिपोर्ट के अनुसार, 2012 तक यह बाजार लगभग 85 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है, 'विकसित और विकासशील देशों में आउटसोर्सिंग कारोबार में वृद्घि जारी रहेगी, क्योंकि अनुसंधान करने वाली कंपनी को कुछ ही वर्षों में दवाओं के पेटेंट से हाथ धोना पड़ता है। इसलिए, उन पर लागत में कटौती और जेनरिक दवाओं के उत्पादन जैसे विकल्पों को अपनाने का दबाव बना रहता है।
जहां तक पीरामल हेल्थ का सवाल है, तो वह विदेशी कंपनियों से या तो ग्राहकों को या फिर उत्पादों के पंजीकरण को खरीदेगी। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अनुबंध आधारित उत्पादन बढऩे के साथ ही क्रेम्स कारोबार में तेजी आ सकती है। ऐसे में बड़े पैमाने पर यूएसएफडीए प्रामाणित संयंत्र स्थापित होंगे और इसके लिए कुशल श्रम और दक्ष तकनीक की जरूरत होगी।
संथानम ने कहा, 'आर्थिक संकट से पहले वैश्विक स्तर पर क्रेम्स कारोबार काफी फल-फूल रहा था। लेकिन, 2008 में अनुसंधान में कमी आने के साथ ही इस कारोबार पर असर पडऩे लगा। बाद में धीरे-धीरे इसमें तेजी आने लगी है। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर फार्मास्युटिल्स कारोबार के सुदृढ़ होने से भी भारत में क्रेम्स कारोबार पर असर पड़ेगा।
पिछले दो वर्षों के दौरान हुए महत्वपूर्ण सौदों में 68 अरब डॉलर का फाइजर-वायथ सौदा, रोके व जेनेटेक के बीच 48 अरब डॉलर का सौदा और 42 अरब डॉलर का मर्क व शेरिंग सौदा शामिल हैं। 2006 में निकोलस पीरामल इंडिया ने ब्रिटेन के मॉरपेथ में फाइजर इंक के संयंत्र का अधिग्रहण किया था। 350 अरब डॉलर के इस सौदे के तहत पीरामल को 5 वर्षों तक फाइजर के 12 उत्पादों का उत्पादन करना था।
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