अगर प्राइसवाटरहाउसकूपर्स और सीआईआई द्वारा संयुक्त रुप से जारी रिपोर्ट का हवाला लिया जाए तो म्युचुअल फंड कंपनियों पर परिचालन लागत का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।
म्युचुअल फंड सम्मिट 2008 के दौरान जारी की गई इस रिपोर्ट में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि बढ़ती परिचालन लागत को नियंत्रण में रखना आज वर्तमान म्युचुअल फंड कंपनियों और नई म्युचुअल फंड कंपनियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।
म्युचुअल फंड कंपनियों की लागत सबसे ज्यादा लीज के किराये और स्टॉफ पर होने वाले खर्चों पर आती है। इसके अतिरिक्त एक ओर जहां रियल एस्टेट की बढ़ती कीमतों से इन कंपनियों की ऑपरेटिंग मार्जिन में कमी आई है वहीं दूसरी ओर उद्योग को प्रतिभा की कमी से जूझना पड़ रहा है।
इन कंपनियों को फंड का बेहतर प्रबंधन करने के लिए ट्रेजरी, कंप्लाएंस से लेकर एकाउंटिंग सभी क्षेत्रों में योग्य प्रतिभाओं की कमी खल रही है वहीं दूसरी ओर प्रतिभाओं को अपने यहां टिकाए रखना लगातार मुश्किल होता जा रहा है।
इसके अलावा इस रिपोर्ट में उन विनियामक प्रावधानों पर भी गौर किया गया है जिनसें म्युचुअल फंड कंपनियों की परिचालन लागत बढ़ती है। अगर कंपनियां इन प्रावधानों का पालन नहीं करती हैं तो निवेशक के मन में कंपनी केबारे में आशंका पैदा हो जाती है। इसलिए करीब सारी म्युचुअल फंड कंपनियां इन प्रावधानों का पालन करती हैं ताकि लोकप्रियता पर कोई असर न पड़े।
प्राइसवाटरहाऊसकूपर्स और सीआईआई की इस रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि म्युचुअल फंड उद्योग की परिचालन पर लगने वाले करों को खत्म कर देना चाहिए ताकि उद्योग का स्वतंत्र रुप से परिचालन संभव हो जाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि सेबी ने म्युचुअल फंड कंपनियों के लिए लागत की एक सीमा निर्धारित कर रखी है जो वह एक स्कीम पर करों के रुप में लेती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब हमारा म्युचुअल फंड उद्योग विकसित हो चुका है तो हमें ऐसे लागत की सीमा निर्धारित करने के प्रावधानों पर पुनर्विचार करना चाहिए। म्युचुअल फंड उद्योग को इस प्रकार की लागत सीमा के दायरे से मुक्त करने के समर्थन में कहा गया है कि इससे म्युचुअल फंड की ऑफर प्राइस सस्ती हो जाएगी और जहां हम मुक्त अर्थव्यवस्था का पालन करते हैं तो यहां म्युचुअल फंड कंपनियों के लिए ज्यादा लागत अपने ग्राहक से लेना संभव नही होगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ जीवन बीमा कंपनियां जब ऐसे ही उत्पादों का प्रबंधन करती है तो उनके लिए लागत की कोई सीमा निर्धारित नहीं है। इस तरह की कोई सीमा विकसित देशों में नहीं है।