खेतीबाड़ी की योजनाओं में किसानों की सीधी भागीदारी चाहते थे बोरलॉग | बीएस संवाददाता / नई दिल्ली March 24, 2011 | | | | |
अनेक देशों में हरित क्रांति के सूत्रधार नार्मन अर्नेस्ट बोरलॉग का मानना था कि खेतीबाड़ी से जुड़ी योजनाओं की सफलता के लिए जरूरी है कि किसान उनसे सीधे जुड़े हों। बोरलॉग ने गेहूं की अनेक नई किस्में विकसित की जिससे दुनिया में लाखों लोगों को भुखमरी से बचाया जा सका।
बोरलॉग के साथ काम कर चुके कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन ने कहा कि बोरलॉग कहा करते थे कि खेती-बाड़ी से संबद्ध योजनाओं को सीधे किसानों से जोड़ा जाना जरूरी है, जब तक कृषि कार्यक्रमों से उन्हें नहीं जोड़ा जाता, ये कार्यक्रम सफल नहीं हो पाएंगे।
पुरानी यादों को ताजा करते हुए उन्होंने कहा, 'भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में 25 मार्च 1963 को बौना गेहूं उत्पादन रणनीति को अंतिम रूप दिया गया और उनके जन्मदिन के उपहार के तौर पर यह योजना उन्हें सौंपी गई।' राजनीतिक विरोध, लालफीताशाही तथा पर्यावरणविदें की तीखी नजर के कारण भारत में बोरलॉग द्वारा विकसित गेहंू बीजों का आना इतना आसान नहीं था। ऐसे में बोरलाग को तीन लोगों- कृषि मंत्री चिदंबरम सुब्रम्ण्यम, कृषि सचिव शिवरमन और कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का विशेष सहयोग मिला जिन्हें वे 'थ्री एस' कहते थे।
अमेरिका के क्रेसको में 25 मार्च 1914 को जन्मे बोरलॉग ने हमेशा खेती में नवीनतम प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उनका तर्क था कि जिस तेजी से आबादी बढ़ रही है, उसका पेट भरने के लिए हमें खाद्यान का उत्पादन भी उसी तेजी से बढ़ाना होगा जो खेतीबाड़ी में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के बिना संभव नहीं है।
वर्ष 2006 में पद्मविभूषण पाने के बाद एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, 'मैं भारतीय किसानों से कहूंगा कि वे नई प्रौद्योगिकी से डरें नहीं, बल्कि उसे आत्मसात करें।' नई तकनीक और प्रौद्योगिकी के प्रति लगाव के कारण बोरलॉग को कई बार आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। लेकिन वह अपने रूख पर कायम रहे। खासकर आनुवांशिक रूप से संवद्र्धित (जीएम) फसलों के बारे में उनकी खूब आलोचना हुई। इसके जवाब में उनका कहा था, ''भूखे मरने से अच्छा है कि जीएम अन्न खाकर ही मरें।'
बोरलॉग कई बार यहां आए और रहे। यहां की खेतीबाड़ी और किसानों को जितना उन्होंने समझा उसके अनुसार वह कहते रहे कि किसानों को समय-समय पर उर्वरक, फसलों को उचित मूल्य तथा उचित ब्याज दर पर रिण मिले। वे इसे भारतीय खेती और किसानों दोनों के लिए जरूरी मानते थे।
एक बार उन्होंने कहा था, ''अगर मैं लोकसभा में होता तो बार-बार चिल्लाता, ''उर्वरक-उर्वरक, सही मूल्य-सही मूल्य, कर्ज-कर्ज।ÓÓ नोबेल पुरस्कार से सम्मानित बोरलॉग का कहना था, 'भारत को खेती में नई प्रौद्योगिकी, संकर बीजों, उर्वरक, संकर बीजों और उपकरणों में निवेश करना चाहिए जिससे उत्पादकता और किसानों की आय बढ़े और वे अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा बन सके।'
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