ठेका मजदूरी पर चुप्पी | बीएस संवाददाता / नई दिल्ली February 25, 2011 | | | | |
हड़ताल और तालाबंदी की कम घटनाओं का हवाला देते हुए देश में औद्योगिक शांति बहाल रखने के लिए केंद्र सरकार ने खुद की पीठ थपथपाई है, लेकिन श्रमिक हिंसा पर चुप्पी साध ली है। मजदूरों को ठेके पर रखे जाने की बढ़ती हुई प्रवृत्ति पर भी सरकार ने कुछ नहीं कहा है। ये श्रमिक किसी यूनियन का हिस्सा नहीं होते और इसीलिए उनकी आवाज सामान्यत: दबा दी जाती है।
आर्थिक समीक्षा कहती है कि केंद्र और राज्य सरकारों के औद्योगिक संबंध लगतार प्रयास की वजह से उद्योग जगत के साथ सामान्यत: शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण रहे हैं।
सरकार का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान हड़ताल और तालाबंदी की वारदातें कम होती गईं और अब ऐसी घटनाएं न के बराबर होती हैं। वर्ष 2009 में हड़ताल और तालाबंदी की कुल 349 घटनाएं हुईं थी, जो वर्ष 2010 में केवल 99 रह गईं। इसी तरह वर्ष 2009 में जहां कुल 91,69,037 कार्य दिवसों का नुकसान हुआ था वहीं वर्ष 2010 के दौरान यह संख्या 16,99,826 रह गई।
हड़ताल और तालाबंदी की घटनाओं की स्थानिकता के लिहाज से अलग-अलग राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की स्थिति अलग-अलग है। इस सूचकांक में सबसे ऊपर गुजरात है। वेतन भत्ते, बोनस, कर्मचारियों के बीच अनुशासनहीनता और हिंसा एवं वित्तीय तंगी हड़ताल और तालाबंदी की अहम वजहें रहीं।
समीक्षा दस्तावेज में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2010 के दौरान ट्रेड यूनियनों ने सामान्य तौर पर विनिवेश और महंगाई के मसले पर हड़ताल करवाई। हड़ताल की कुछ घटनाएं बंदरगाह और विमानन क्षेत्र में भी हुईं। देश भर की बंदरगाह यूनियनों ने पोर्ट ट्रस्टों को कंपनियों की शक्ल देने (निगमित करना) का तगड़ा विरोध किया। इस मसले को लेकर मुंबई के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट में विरोध-प्रदर्शनों का लंबा दौर चला। विशाखापत्तनम की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही रही।
विमानन क्षेत्र में, 'एयर इंडिया' की ओर से की गई 2 दिनों की हड़ताल के चलते लगभग 100 उड़ानें रद्द करनी पड़ी। औद्योगिक हलकों में अशांति की कई घटनाएं यूनियन बनाने के प्रति प्रबंधन के विरोध की वजह से भी हुईं।
वर्ष 2010 की शुरुआत तमिलनाडु में नोकिया और हुंडई के संयंत्रों में हड़ताल से हुई। इन दोनों हड़तालों का नेतृत्व सीटू ने किया।
हुंडई के हड़तालियों की मांग थी कि उनकी यूनियन को वैधता दी जाए और नौकरी से हटाए गए 60 कर्मचारियों की बहाली की जाए। इसी तरह की हड़ताल प्रदेश स्थित एमआरएफ और फॉक्सकॉन संयंत्रों में भी हुईं।
'ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस' (एटक) के राष्ट्रीय सचिव डीएल सचदेवा के मुताबिक न्यूनतम मजदूरी जैसे बुनियादी अधिकारों पर नजर रखने और इन्हें लागू करने के लिए कोई मशीनरी नहीं है। यही वजह है कि श्रम कानूनों का उल्लंघन सामान्य बात हो गई है। श्रमिक यूनियन बनाने की स्थिति में नहीं होते क्योंकि उनमें से ज्यादातर अनुबंधित कामगार होते हैं और इसीलिए हड़ताल भी नहीं होती। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि माहौल सौहार्दपूर्ण है।
पिछले साल नवंबर में गाजियाबाद में औद्योगिक अशांति की एक विचित्र घटना हुई। वाहन के कलपुर्जे बनाने वाली 'एलाइड निप्पॉन' के एक कारखाने के कर्मचारी कथित रूप से अत्यधिक गुस्से में आ गए और उन्होंने एक प्रबंधन अधिकारी की पत्थर मारकर हत्या कर दी। करीब 2 वर्ष पहले इसी तरह की एक घटना गे्रटर नोएडा स्थित इटली की एक बहुराष्टï्रीय कंपनी में भी हुई थी।
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