कच्चे माल की बढ़ती कीमतों और डिमांड के बेतहाशा तरीके से बढ़ने से मांग व आपूर्ति के बीच पैदा हुए असंतुलन की वजह से अलग-अलग कारोबारियों को अलग-अलग तरह से कदम उठाने पड़ रहे हैं।
ऑटोमोबाइल और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं जैसे विनिर्मित सामान के धंधे में लगे हुए कारोबारियों ने बढ़ती लागत का बोझ कीमतों पर लादना शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ, एफएमसीजी सेक्टर की कंपनियां पुरानी कीमतों पर ही अपने उत्पाद के वजन को थोड़ा सा कम करके अपने घाटे को पाटने की कोशिश कर रही हैं।
लेकिन इस वक्त सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना कर रही हैं सर्विस सेक्टर से जुड़ी कंपनियां। बढ़ती महंगाई का सबसे ज्यादा असर पड़ा है एयरलाइनों पर, खास तौर पर सस्ती एयरलाइनों पर। बस कुछ ही दिनों की बात है, फिर होटल उद्योग के सामने भी अपनी मुनाफा कमाने की ताकत को बरकरार रखने की चुनौती खड़ी हो जाएगी।
हालांकि, मेरा मानना है कि इस सेक्टर में सबसे ज्यादा घाटा सुपर लग्जरी होटलों को उठाना पड़ेगा। ये दोनों कारोबार पिछले कुछ सालों से मोटा मुनाफा काट रहे थे। वजह है, भारत में दुनिया की बढ़ती दिलचस्पी। इसके कारण कारोबारी दुनिया के बड़े नाम बार-बार भारत की तरफ रुख कर रहे हैं। इस वजह से तो लंबे दौर के बारे में कुछ सोचे बगैर ही मुल्क के सभी प्रीमियम होटलों ने अपने कमरों के किराये के साथ-साथ वहां दी जाने वाली हरेक सुविधा के दामों में भी बेतहाशा इजाफा कर दिया।
इन पांच सितारा होटलों को मोटा मुनाफा कमाते देख रेस्तरां की भी हिम्मत बढ़ गई और उन्होंने भी अपने मेहमानों से मोटी रकम वसूलने की शुरुआत कर दी। इसके अलावा, बढ़ती महंगाई और उपभोक्ताओं के घटते विश्वास की वजह से संगठित रिटेल कंपनियों को भी जबरदस्त घाटा होने की उम्मीद जताई जा रही है। नए, ज्यादा आक्रामक और अमीर रिटेलरों के आने की वजह से रिटेल चेनों की कमाई तो घटनी तय मानी जा रही है।
अगर ऐसा न भी तो हुआ तो कई विशेषज्ञ इस बात की गारंटी लेने के लिए तैयार हैं कि रिटेल स्टोरों की कमाई में कोई खास इजाफा नहीं होगा। वहीं हेल्थकेयर सेक्टर में भी यहां आए लगभग सभी नए खिलाड़ी आज भी मुनाफा कमाने को तरस रहे हैं। ऊपर से इस बात की उम्मीद भी बेहद कम है कि उनकी इस हालत में कोई बदलाव होगा। सर्विस सेक्टर की यह गत देखकर इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि कंपनियों को पैसे बचाने की खातिर चाहे या अनचाहे अपनी सेवाओं को बदतर बनाना ही पड़ेगा।
आप सोच रहे होंगे, ऐसा होगा क्यों? दरअसल, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के उलट सर्विस सेक्टर में मानव संसाधन पर काफी ज्यादा लागत आती है। इसी वजह से इस बात की पूरी आशंका है कि सेवाओं में कमी लाकर इस सेक्टर में काम करने वाली कंपनियां पैसे बचाने की उम्मीद करेंगी। इसके लिए वे स्टॉफ की सहायता को भी कम करने से बाज नहीं आएंगी। इससे इनकी सेवा का छोटा, लेकिन अहम हिस्सा चला जाएगा।
सेवाओं में कटौती करके कमाई करने के मामले में सबसे बुरी मिसाल अमेरिकी सर्विस सेक्टर की हो सकती है। पहले ही बढ़ती महंगाई और प्रतिस्पध्र्दा की वजह से अमेरिका की सेवा क्षेत्र का हाल बुरा था। ऊपर से घटिया प्रबंधन और विचारों ने कोढ़ में खाज का काम किया। अगर आपको भरोसा नहीं होता, अमेरिका जाकर इस बात की पुष्टि कर लीजिए।
आज की तारीख में किसी भी अमेरिकी एयलाइन में सफर करना, आपको विकासशील देशों की एयरलाइनों में सफर करने से ज्यादा बुरा लगेगा। अच्छा वक्त हो या बुरा, अमेरिकी एयरलाइन कंपनियों ने अपनी सेवाओं को बदतर बनाना जारी रखा। इनके दशकों पुराने, गंदे और घटिया हवाई जहाजों को हवाई अड्डे पर ही देखकर मन खट्टा हो जाता है। ऊपर से रूखे और बदमिजाज क्रूमेंबरों यानी विमान कर्मचारियों को देखकर मन भिन्ना जाता है।
एयरलाइन हर वक्त मासूम लोगों से ज्यादा से ज्यादा पैसे वसूलने के तरीके ढूंढती रहती है। एक के बाद एक एयरलाइन के दिवालिया होने के बावजूद उन्हें इस बात का जरा भी संकेत नहीं मिलता है कि लागत में कटौती के उनके तरीकों की वजह से ही उनका धंधा चौपट हो रहा है। सेवाओं में कटौती करके पैसे बचाने के तरीके के वजह से उपभोक्ता उनसे रूठ रहे हैं। आलम यह हो गया है कि कई लोगों ने तो अमेरिकी एयरलाइनों की सेवा का इस्तेमाल करना भी छोड़ दिया है।
अमेरिका की लग्जरी होटल चेन भी अपने मुल्क के एयरलाइंस उद्योग से प्रेरणा ले रहे हैं। हयात, हिल्टन, स्टारवुड और तो और शेरेटन जैसे नामी-गिरामी होटल भी उपभोक्ताओं को मुफ्त में दी जाने वाली सेवाओं में भारी कटौती कर रहे हैं। उन्होंने तो बैगेज अस्सिटेंस, इन रूम टी ऐंड कॉफी मेकर और इवनिंग टर्नडॉउंस जैसी मुफ्त में मिलने वाली सेवाओं को मुहैया कराना बंद कर दिया।
कंजूसी की यह अमेरिकी महामारी तो वहां की रिटेल चेनों में भी पहुंच चुकी है। यहां तक की ब्रुक्स ब्रदर्स, जियोक्स और एप्पल जैसी लग्जरी मार्केट में काम करने वाली रिटेल कंपनियां भी पैसे बचाने के एड़ी चोटी का जोड़ लगाने में जुटी हुई हैं। नॉर्डस्ट्रॉम और कुछ रिटेल चेनों को छोड़ दें तो प्रशिक्षित, दोस्ताने रवैये वाले और सहयोगी सेल्स स्टॉफ अमेरिका में आज की तारीख में मिलना मुश्किल हो गया है।
भारतीय कारोबारियों को इस मुश्किल वक्त में लागत और प्रतिस्पध्र्दा के दवाब को झेलने की रणनीति के लिए अमेरिकी कंपनियों की तरफ नहीं देखना चाहिए। सर्विस सेक्टर के कारोबार में सेवा ही सबसे अहम चीज है। सेवाएं देने या सेवाओं की क्वालिटी में गिरावट करने से इस सेक्टर का मुनाफा नहीं बढ़ सकता। अगर मुनाफा बढ़ भी गया तो भी वह कायम नहीं रह सकता। उल्टे होगा यह है कि नए ग्राहक पास नहीं आएंगे और पुराने वाले दूर भाग जाएंगे।
सेवा सेक्टर के लगभग सभी कारोबारी लागत में हुए इजाफे में एक हिस्से को अपने ग्राहकों की बढ़ने का जोखिम उठा सकते हैं। वे अपनी सेवा के स्तर में थोड़ा इजाफा कर इसके असर को कम कर सकते हैं।
अगर ज्यादा पैसों के बदले उन्हें अच्छा सौदा मिलता है, तो क्या सभी ग्राहक एयरलाइन, होटम रूम, रेस्तरां में खाने और रिटेल चेनों में शॉपिंग के वास्ते ज्यादा पैसे चुकाने के लिए तैयार हो जाएंगे? हर कोई तो नहीं, लेकिन मुझे लगता है कि ज्यादातर लोगों को थोड़े ज्यादा पैसे चुकाने में कोई ऐतराज नहीं होगा। यही एक तरीका है, जिसकी वजह से इस भंवर से उनकी नैया पार लग सकती है।