निवेश का कौन सा जरिया है म्युचुअल फंड से ज्यादा खराब | मुद्रा-मंत्र | | सुबीर रॉय / September 16, 2010 | | | | |
यूलिप ग्राहकों को बहकाने व उनके धन को हथियाने से रोकने के लिए बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) द्वारा विस्तृत रूप से नए दिशानिर्देश जारी किए जाने के बाद भारतीय जीवन बीमा उद्योग खुद को परिवर्तित कर नयापन लाने में जुटा हुआ है। अपनी छवि की बाबत चिंतित कोई भी उद्योग ऐसी स्थिति में गहरी चिंता में होगा अगर यह कहा जाए कि वह भोलेभाले निवेशकों द्वारा चुकाए जा रहे जुर्माने से फलता-फूलता रहा, इन निवेशकों को ऐसे उत्पाद बेचे गए जिन्हें वे नहीं समझते।
लेकिन गलत तरीके से बिक्री कर फलने-फूलने के इल्जाम से उद्योग अनजान नहीं है। ऐसे में एक ओर जहां खुद अपने बल पर इसके आगे बढऩे की संभावना है, वहीं समान रूप से यह असंभव है कि इसका हृदय परिवर्तन हो जाए और यह नीतिपरक बिक्री के संकीर्ण रास्ते को अपना ले। निवेशकों के लिए यह खतरे का स्थायी स्रोत बना रहेगा, जिनके एक बार फिर उद्योगों द्वारा नए नियमों के मुताबिक पेश नए उत्पाद के झांसे में आ जाने की संभावना है, लेकिन यह अनिवार्य रूप से खराब है। दशकों पहले (जीवन बीमा क्षेत्र के खोले जाने से काफी पहले) जब मैं कामकाजी युवा था, तब मैंने जीवन बीमा (लाइफ कवर) की खोज शुरू की थी, पर मुझे कुछ नहीं मिला। ऐसा कोई भी नहीं था जो मुझे विशुद्ध रूप से ऐसा लाइफ कवर बेचने को इच्छुक हो, जिसमें निवेश शामिल न हो। या तो इसका अस्तित्व नहीं था या फिर जीवन के खतरे पर ध्यान केंद्रित करने वाले एजेंटों के लिए लिए यह कम मूल्यवान था। इसी राह पर चलकर एलआईसी ने अपनी योजनाओं को सूत्रबद्ध किया।
उस समय पूरा ध्यान एनडॉमेंट पॉलिसी पर था, ऐसा कारोबार जिसे एलआईसी आगे बढ़ाना चाहती थी। समय के साथ यह विभिन्न चरणों में दिए जाने वाले मनी बैक के रूप में उपलब्ध हो गया। राज्य के एकाधिकार वाला एलआईसी शायद ही लोगों को शिक्षित करने में दिलचस्पी रखता होगा, विभिन्न तरह के खतरों की संभावना को समझने वाला एक्चुअरी (जोखिम का आकलन करने वाला) संगठन का महज आभूषण भर होता है और लोगों की समझ का मामला इसके लिए तुच्छ है। मैं एक पुराने व्यक्ति को जानता हूं जो सफेद हाफ शर्ट पहनते हैं और उसके ऊपर धोती को कुर्ते की तरह पहनते हैं। यह व्यक्ति अखबारों के दफ्तर के चक्कर लगाकर वहां बिजनेस जर्नलिज्म में आए नए लोगों को बताते थे कि लाइफ कवर के जोखिम की लागत एक फीसदी से ज्यादा नहीं है और ऐसी एनडॉमेंट पॉलिसी पर लोगों को काफी कम रिटर्न मिलता है। अपने विशाल व अक्षम वर्कफोर्स बनाए रखने के लिए और विभिन्न उद्योगपतियों के समर्थन की खातिर सरकार की मदद करने के लिए एलआईसी को इन चीजों को करने की दरकार थी। साथ ही सामाजिक रूप से जरूरी बुनियादी ढांचे में निवेश की फंडिंग भी। उस बूढ़े व्यक्ति की बातें मुझे तब याद आई जब मैंने उस निवेश सलाह पर गौर किया कि लाइफ कवर को रिटर्न के लिए किए जाने वाले निवेश के साथ मिलाना गलत है। लेकिन लोग आखिर एनडॉमेंट नीति की तरफ क्यों जा रहे थे, उसकी वजह यह है कि विगत में कोई विकल्प नहीं था और टैक्स सेविंग के प्रलोभन की वजह से वे इसका रुख कर रहे थे, यह एक तरह से बाध्यकारी निवेश होता था। भारत में बीमा उद्योग की यही वंशावली है। उद्योगों को खोले जाने और वैश्विक कंपनियों के आगमन ने उपभोक्ताओं को केंद्र में ला दिया, इसके साथ ही उपभोक्ता को मिलने वाली सेवाओं में भारी बदलाव नजर आने लगा। लेकिन इसने वित्तीय नवोत्पाद भी पेश किया और पेचीदा उत्पाद तैयार किया, मुख्य रूप से यूलिप के रूप में। वैसे समय में जब वैश्विक वित्तीय व्यवस्था वित्तीय नवोत्पाद केरूप में तैयार जटिल उत्पाद पर पाश्चाताप कर रहा था तब भारतीय विनियामक द्वारा ऐसे नवोत्पाद के खिलाफ उठाए गए कदम से भारतीय जीवन बीमा उद्योग में उदासी छा गई।
विकसित अर्थव्यवस्था में जीवन बीमा खुद के सुधार से आगे बढ़ा है और बढ़ती पारदर्शिता के मानकों को पूरा किया है। इंटरनेट के आगमन से यह काफी हद तक बढ़ा है और इसने ऐसी स्थिति पैदा की है जहां ज्यादातर टर्म लाइफ पॉलिसी (लाइफ कवर के लिए एक अवधि तक छोटा प्रीमियम का भुगतान कीजिए और अंत में कुछ मत पाइये, अगर आप सौभाग्यशाली हैं और पॉलिसी की अवधि के अंत तक जीवित रहते हैं) एक समान है क्योंंकि वहां कुछ नया करने का दायरा सीमित रहता है और इसे आसानी से ऑनलाइन खरीदा जाता है। भारत के लिए अच्छी खबर यह है कि टर्म लाइफ इंश्योरेंस में बढ़ोतरी हो रही है। दो बीमा कंपनियों ने हाल में नई टर्म पॉलिसी पेश की है और उनमें से एक (सस्ती योजना) इसकी पेशकश सिर्फ इंटरनेट पर कर रही है ताकि लागत कम से कम हो।
बाजारों में सुधार करने वाला और उपभोक्ता की रक्षा करने वाले नियमों का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन जिस तरह से इरडा इस बाबत आगे बढ़ा वह सही नहीं था। जब पूंजी बाजार नियामक सेबी ने यूलिप को विनियमित करने की बात की कि यह निवेश की योजना है तो हर तरह की मुसीबतें सामने आ गई। केंद्रीय वित्त मंत्रालय इरडा के पक्ष में खड़ी हो गई, लेकिन दो मुद्दे बचे रह गए। जितनी अवधि के लिए यूलिप होता है उसे देखते हुए क्या सेबी के कदम से इरडा कार्रवाई करने के लिए प्रेरित हुआ? लेकिन यूलिप बीमा के बजाय निवेश ज्यादा है, इरडा शायद ही इससे निपटने के लिए बेहतर तरीके से लैस हो सकता है।
इसने मुझे उन सवालों के पास पहुंचा दिया जो कि मैंने पिछले कॉलम में उठाया था, जिसमें तर्क दिया गया था कि अगर आपके पास कम से कम क्षमता है और जोखिम उठाने की कम क्षमता है, तो फिर आप खुद ही अग्रणी कंपनियों के शेयर का चयन करें, न कि म्युचुअल फंड का रास्ता अपनाएं। उनकी योजनाएं मिली जुली होती हैं और उनमें से अच्छी स्कीम का चुनाव अच्छे शेयरों के मुकाबले मुश्किल होता है। लेकिन म्युचुअल फंड से अगर कोई चीज ज्यादा खराब है तो वह है यूलिप, जिसमें निवेशक अभी भी बेहतर रिटर्न की अनंत खोज कर रहे हैं। सामान्य निवेशक के लिए बेहतर होगा बैंक व डाकघर की सावधि जमा, कुछ रकम पब्लिक प्रॉविडेंट फंड में, एक टर्म लाइफ पॉलिसी और कुछ चुनिंदा शेयरोंं में निवेश, जिसे आप पांच साल से ज्यादा बनाए रखें।
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