वर्ष 2008 में भारतीय शेयर बाजार के धराशायी होने के बाद विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने एक बार फिर से भारतीय शेयरों में निवेश करने का सिलसिला तेज कर दिया है। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि अनुमानों के अनुसार ग्लोबल इमर्जिंग मार्केट्स (जीईएम) में भारत की औसत हिस्सेदारी मार्च 2010 तक 7.91 फीसदी के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी थी।यहां तक कि एशिया-प्रशांत फंड में भी भारत के पोर्टफोलियो आवंटन में हाल के दिनों में खासी बढ़ोतरी हुई है। इस साल अब तक एफआईआई ने 57,538 करोड़ रुपये का निवेश भारतीय शेयरों में किया है, जबकि इसके मुकाबले पूरे वर्ष 2009 के लिए यह आंकड़ा 84,278 करोड़ रुपये रहा था।एफआईआई नई कंपनियों में लगातार निवेश करते जा रहे हैं या फिर अपने मौजूदा पोर्टफोलियो में नए शेयरों को तरजीह दे रहे हैं। आइए, जून तिमाही में एफआईआई के भारतीय पोर्टफोलियो में हुए उन बदलावों पर नजर डालते हैं, जिनसे उनकी पंसद और नापसंद का पता चलता है।मुनाफे की पटरी पर लौटने वाले शेयर सत्यम कंप्यूटर्स की खरीदारी और पुनर्संरचना के बाद टेक महिंद्रा ने महिंद्रा सत्यम को काफी निखारा है। इस सूचना-प्रौद्योगिकी कंपनी के यूपेड के साथ समझौते और पुराने ग्राहकों को फिर से अपने साथ जोडऩे का इसके प्रदर्शन पर काफी सकारात्मक असर पड़ा है। कंपनी के शेयरों की कीमतों में इन परिवर्तनों का असर साफ तौर पर देखा जा सक ता है।विदेशी संस्थागत निवेशक जो अब तक कंपनी से कन्नी काट रहे थे, वे आने वाले दिनों में कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाते हैं तो इसमें किसी तरह की आश्चर्य की बात नहीं होगी। हाल के दिनों में एफआईआई के इस रुख में तेजी आई है। मिसाल के तौर पर जीएमआर इन्फ्रा भी विदेशी निवेशकों को अपनी ओर खींचने में कामयाब रही है। अधिक मांग वाले शेयर एफआईआई ने कुछ सरकारी बैंकों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है। दिलचस्प बात है कि कुछ समय पहले तक इन बैंकों के शेयरों का मूल्यांकन काफी कम था। यूको बैंक, विजया बैंक, देना बैंक और आईएफसीआई में एफआईआई की हिस्सेदारी में खासी बढ़ोतरी हुई है। इन बैंकों में एफआईआई की बढ़ती दिचलस्पी की वजह बुनियादी बातों में सुधार, सुधरते कारोबारी माहौल और सरकार द्वारा इन बैंकों को पूंजी मुहैया कराना है।जहां तक आईएफसीआई की बात है, इसमें रणनीतिक निवेशक को लाए जाने की संभावना और नए बैंकिंग लाइसेंस के लिए इसे एक प्रबल दावेदार माने जाने की वजह से एफआईआई इसमें काफी दिलचस्पी ले रहे हैं। बैंकों के अलावा भारत फोर्ज भी एफआईआई को आकर्षित करने में कामयाब रही है। वाहन क्षेत्र में सुधार के साथ ही भारत फोर्ज में निवेश के प्रति एफआईआई इसमें निवेश बढ़ा रहे हैं।नुकसान वाले शेयर मार्च 2010 तक एफआईआई अबान ऑफशोर में अपना निवेश बढ़ा रहे थे। लेकिन जून तिमाही में इन्होंने कंपनी में निवेश में काफी कटौती की है। कंपनी के एक वैसेल के क्षतिग्रस्त होने साथ ही बीपी तेल रिसाव के बाद विदेशी शेयरों में हुई बिकवाली के बाद इसके शेयरों की कीमतें गिरी हैं। दूरसंचार क्षेत्र में जीटीएल, जो दूरसंचार क्षेत्र में बुनियादी सेवा उपलब्ध कराती है, में एफआईआई ने अपनी हिस्सेदारी में काफी कमी की है।मार्च में जहां कंपनी में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 24.10 फीसदी थी वहीं जून तिमाही में यह कम होकर 15 फीसदी के स्तर पर आ गई है। बड़े नामों में टाटा स्टील में भी एफआईआई ने अपना निवेश कम किया है। यूरोपीय बाजार में कंपनी के अधिक कारोबार को देखते हुए भविष्य में इसके प्रदर्शन को लेकर चिंता जताई जा रही है जिस वजह से विदेशी निवेशकों ने हिस्सेदारी कम की है।कमोबेश इसी वजह से सुजलॉन में विदेशी निवेशकों ने निवेश में कमी की है। कंपनी को कुल राजस्व के एक बड़े हिस्से की पूर्ति विदेशी बाजार से होती है। विदेशी बाजार में उत्पादों की मांग में कमी आने से प्राप्तियों पर असर पड़ा है। इसके अलावा कंपनी के ऊपर कर्ज के बोझ से परिचालन मार्जिन पर असर पड़ रहा है। विश्लेषक आगे चलकर कंपनी की संभावनाओं में सुधार को लेकर सशंकित दिख रहे हैं।जिनकी नहीं है पूछ कुछ ऐसी भी कंपनियां हैं, जिनमें पिछली चार तिमाहियों से एफआईआई की हिस्सेदारी में काफी कमी आई है। इनमें पुंज लॉयड, इंडिया इन्फोलाइन, टाटा ग्लोबल (पुराना नाम टाटा टी), ऑयल इंडिया, आईओबी और वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के नाम शामिल हैं। पुंज लॉयड अपने बिगड़ते प्रदर्शन और कारोबार खंड की कमजोर संभावनाओं को लेकर चर्चा के केंद्र में है।कंपनी द्वारा कुछ हिस्सेदारी बेचे जाने की खबरों का भी इस पर नकारात्मक असर पड़ा है। हालांकि, कंपनी ने यह कहते हुए इस बात का खंडन किया है कि एफआईआई की हिस्सेदारी पहले ही 25 फीसदी से अधिक है।
