किरीट पारिख कमेटी की रिपोर्ट पर विचार किए जाने के बाद 26 जून, 2010 को अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह ने पेट्रोल को पूरी तरह नियंत्रण-मुक्त करने का फैसला किया
नरेश कोठारी / August 15, 2010
कच्चे तेल ने हाल ही में 80 डॉलर प्रति बैरल का स्तर छुआ। यह खासकर यूरोप में अपेक्षा की तुलना में अधिक अच्छे संकेतों और अमेरिकी डॉलर में गिरावट की वजह से संभव हुआ है। इस स्तर पर घरेलू तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को 2010-11 में लगभग 54000 करोड़ रुपये का अंडर-रिकवरी बोझ उठाना पड़ सकता है।
यह भार 2009-10 में 46,000 करोड़ रुपये की कुल अंडर-रिकवरी की तुलना में अधिक होगा। पेट्रोल/डीजल और एलपीजी/केरोसिन की इसमें क्रमश: 31 फीसदी और 69 फीसदी की भागीदारी है।
किरीट पारिख कमेटी की रिपोर्ट पर विचार किए जाने के बाद 26 जून, 2010 को अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह ने पेट्रोल को पूरी तरह नियंत्रण-मुक्त करने का फैसला किया और डीजल की कीमत में 2 रुपये प्रति लीटर, एलपीजी की कीमत में 35 रुपये प्रति सिलेंडर और केरोसिन की कीमत में 6 रुपये प्रति लीटर तक की वृद्घि की गई।
हालांकि यह निश्चित रूप से एक बड़ी पहल है, लेकिन इस क्षेत्र में अंडर-रिकवरी से संबद्घ समस्याओं के समाधान में यह अपर्याप्त है। पेट्रोल और डीजल मौजूदा समय में क्रमश: 78 डॉलर प्रति बैरल और डब्ल्यूटीआई क्रूड 73 डॉलर प्रति बैरल पर हैं।
हालांकि पेट्रोल की कंज्यूमर कीमतें कच्चे तेल की बाजार दरों पर आधारित होंगी और इसलिए जीरो अंडर-रिकवरी को बढ़ावा मिल सकता है। डीजल को नियंत्रण मुक्त करना मुश्किल हो सकता है। डीजल कीमतों में वृद्घि का असर बिहार (नवंबर 2010) और पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम (मई 2010) जैसे कुछ राज्यों में आगामी चुनावों में दिख सकता है।
वर्ष 2010-11 के लिए अंडर-रिकवरी अनुमानित रूप से 54,000 करोड़ रुपये (80 डॉलर प्रति बैरल की क्रूड कीमत) रहने का अनुमान है। इसके बाद कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर प्रति बैरल की वृद्घि के साथ अंडर-रिकवरी में 3,000 करोड़ रुपये तक का इजाफा हो जाएगा। कई कारणों से इसमें और आक्रामकता आ सकती है।
ये कारण हैं: (1) रुपये में मूल्यह्रास की हरेक यूनिट के लिए 5500 करोड़ रुपये तक की अंडर रिकवरी वृद्घि, (2) डीजल की मांग में भारी इजाफा (पूर्व की 5 फीसदी की तुलना में ताजा वृद्घि दर लगभग 8 फीसदी)। 2010-11 के लिए अंडर-रिकवरी के विभाजन को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। हालांकि यह मानना सही हो सकता है कि अपस्ट्रीम कंपनियां कुल अंडर-रिकवरी के लगभग एक-तिहाई को शेयर करेंगी। बाकी दो-तिहाई के विभाजन पर स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है।
इस क्षेत्र में सब्सिडी विभाजन को लेकर अनिश्चितता ओएमसी शेयरों (आईओसीएल, बीपीसीएल और एचपीसीएल) पर नकारात्मक असर बरकरार रखेगी जबकि ओएनजीसी, ओआईएल और गेल जैसी अपस्ट्रीम कंपनियां पेट्रोल और डीजल की ब्रेक-ईवन यानी समान स्थिति में वृद्घि की वजह से कम प्रभावित होंगी।
निवेशक गैस क्षेत्र की कंपनियों पर दांव लगा सकते हैं। गेल, आईजीएल और पेट्रोनेट एलएनजी इस क्षेत्र की बेहतर कंपनियां हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज का भविष्य भी काफी अच्छा दिख रहा है।
(लेखक एडलवाइस कैपिटल के अध्यक्ष हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)
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