ई-कचरा या इलेक्ट्रॉनिक कचरे में पुराने खराब हो चुके कंप्यूटर, मोबाइल फोन, फ्रिज या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद आते हैं
मनीषा पांडे / August 10, 2010
अगर आप अपने पुराने मोबाइल को फेंकने जा रहे हैं या उसे नए मोबाइल के बदले दुकान पर देने जा रहे हैं तो थोड़ा रुकिए। क्या आप जानते हैं कि देश में हर साल उत्पन्न होने वाले 50,000 टन ई कचरे में 1,700 टन पुराने मोबाइल फोन की बदौलत पैदा होता है। संयुक्त राष्टï्र द्वारा इस वर्ष जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल फोन की बदौलत होने वाले ई कचरे में 2020 तक 18 गुना का इजाफा होगा।
ई-कचरा या कहें इलेक्ट्रॉनिक कचरे में पुराने खराब हो चुके कंप्यूटर, मोबाइल फोन, फ्रिज या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद आते हैं। उपभोक्तावाद बढऩे के साथ-साथ ई कचरे का निपटान देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
इस समस्या ने संगठित रिसाइकिलिंग नामक एक नए सेक्टर को जन्म दिया है। अब तक 26 कंपनियां मोबाइल रिसाइकिलिंग के क्षेत्र में उतर चुकी हैं। बाजार में ऐसे मोबाइल फोन भी हैं जिनके निर्माण में सोना, चांदी और प्लेटिनम के साथ-साथ तांबे जैसी धातुओं का भी इस्तेमाल होता है। दुनिया में हर साल होने वाली सोने और चांदी की कुल आपूर्ति का 3 फीसदी हिस्सा सोने और चांदी में ही खप जाता है।
इसके अलावा पैलेडियम उत्पादन का 13 फीसदी, कोबाल्ट का 15 फीसदी तथा भारी मात्रा में तांबा, इस्पात, निकल और एल्यूमीनियम भी मोबाइल तथा पीसी के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता है। ई-कचरे की रिसाइकिलिंग करने वाली कंपनी ग्रीनस्केप के मार्केटिंग मैनेजर फैजल फराज कहते हैं, '90 फीसदी ई-कचरे की रिसाइकिलिंग असंगठित क्षेत्र द्वारा की जा रही है।
इसमें छोटे पैमाने पर कचरा बटोरने वाले भी शामिल हैं। वे लोग कीमती धातुएं निकालने के लिए जो तरीका अपनाते हैं वह न केवल नुकसानदेह है बल्कि उससे उन कीमती धातुओं का 75 फीसदी हिस्सा तो नष्टï हो जाता है।' वे कहते हैं कि ई-कचरे में से सही तरीके से धातुओं को निकालने का काम एक प्रशिक्षित लाइसेंस धारक व्यक्ति ही कर सकता है।
किसी उपकरण के अधिकांश हिस्सों को स्थानीय स्तर पर ही रिसाइकिल किया जाता है जबकि मोबाइल फोन के प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (पीसीबी) को धातु निकालने के लिए विदेश स्थित स्मेल्टिंग कंपनियों के पास भेजा जाता है। पिछले वर्ष, ग्रीनस्केप ने 100 टन पीसीबी (1.3 टन मोबाइल फोन से) को बेल्जियम स्थित स्मेल्टिंग कंपनी यूमीकोर के पास भेजा।
कीमती धातुओं के अलावा एक औसत मोबाइल फोन में लेड और मर्करी जैसे जहरीले रसायन भी होते हैं जिन्हें अगर सही तरीके से निपटाया न जाए तो पर्यावरण तथा स्वास्थ्य को गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। देश में मोबाइल उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था इंडियन सेल्युलर एसोसिएशन (आईसीए) ई-कचरे के संबंध में दिशानिर्देशों पर काम कर रही है।
आईसीए के अध्यक्ष पंकज महेंद्रू कहते हैं, 'कुछ वेंडरों को छोड़ दिया जाए तो अभी रिसाइकिलिंग को लेकर कोई बड़ी पहल नहीं हुई है।' यह स्थिति एक ऐसे देश में है जहां गार्टनर के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2010 तक मोबाइलों की सालाना बिक्री बढ़कर 13.86 करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान जताया गया है। यह आंकड़ा पिछले साल की 1.17 करोड़ की संख्या से 18.5 फीसदी ज्यादा है।
वर्ष 2009 में जहां मोबाइल रिप्लेसमेंट 45 फीसदी था वहीं 2010 में यह कुल बिक्री का 50 फीसदी हो गया।' बड़ी मोबाइल हैंडसेट निर्माता कंपनियों ने भले ही पुराने मोबाइल वापस लेकर उन्हें रिसाइकिल करने वाली अधिकृत कंपनियों को देने की नीति घोषित कर दी हो लेकिन अधिकांश उपभोक्ताओं को अभी भी इन योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं है और इसलिए ये योजनाएं गति नहीं पकड़ पा रही हैं।
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