समान बाजार पूंजीकरण के दो शेयरों पर विचार करें। मान लीजिए कि समान अवधि में शेयर ए 250 रुपये के स्तर से छलांग लगाकर 275 रुपये के स्तर पर पहुंचता है और फिर फिसलकर 250 रुपये के स्तर पर आ जाता है। दूसरी तरफ शेयर बी 250 रुपये से उछलकर 255 रुपये के स्तर पर पहुंचता है और फिर वापस पूर्व के स्तर यानी 250 रुपये पर चला आता है।लंबी अवधि के लिए निवेश करने वाला निवेशक इस अंतर को नजरअंदाज कर देता है और इन दोनों शेयरों से उसे शून्य प्रतिफल ही मिलता है। कारोबारी शेयर बी की अपेक्षा शेयर ए को तरजीह देते हैं। अगर सही समय पर फैसला किया जाए तो किसी सौदे से खरीदारी और बिक्री से 20 फीसदी का प्रतिफल हासिल किया जा सकता है। अगर कोई कारोबार वायदा या विकल्प का इस्तेमाल करता है तो वह और अधिक मुनाफा कमा सकता है, हां नुकसान की आशंका से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है।शायद यही वजह है कि कारोबारी अनिश्चितता की स्थिति को अधिक पसंद करते हैं। अब बाजार में कारोबारी अधिक से अधिक सक्रियता दिखा रहे हैं। इनके द्वारा किए जाने वाले सौदे बाय-आस्क स्पे्रड्स को कम करते हैं, साथ ही तरलता का प्रवाह करते हैं और बाजार में शिरकत करने वालों सभी लोगों के लिए माहौल बेहतर बनाते हैं।आखिरकार, भारतीय कारोबारियों की बाजार में कारोबारी अनिश्चितता को लेकर क्या अपेक्षाएं हैं? जनवरी 1997 से लेकर निफ्टी के कारोबार का दैनिक औसत 2.2 फीसदी रहा है। जनवरी 2009 से यह लगभग उसी स्तर (2.19 फीसदी)पर है। अनिश्चितता का फ्रीक्वेंसी डिस्ट्रीब्यूशन क्लासिक बेल कर्व नहीं होता है। इसमें एक लंबा टेल और मजबूत केंद्रीय क्लस्टर होता है। कुल औसत का करीब 95 फीसदी मूव दो स्टैंडर्ड डिविएशन में आते है जो 95.2 फीसदी के बेल कर्व के अनुमान के खाके में सही बैठते हैं।टेल काफी बड़ा होता है। एक सामान्य वितरण कुल मूल्यांकन के 99.6 फीसदी के 3 एसडी के दायरे में आने की संभावना व्यक्त करता है। 5 स्टैंडर्ड डिविएशन (9.6 फीसदी) के ऊपर निफ्टी में कई मूव रहे हैं। करीब 57 फीसदी अवलोकन औसत से नीचे रहते हैं। माध्य 1.84 फीसदी होता है। लिहाजा, कई मौकों पर आए उतार-चढ़ाव से औसत आंकड़ों में काफी परिवर्तन आते हैं। चूंकि, 95 फीसदी अवलोकन सही साबित होते हैं, एक मोटे आकलन के लिए हम बेल कर्व का इस्तेमाल कर सकते हैं।हालांकि विशुद्ध रूप से अपनी कारोबारी रणनीति को बेल कर्व पर आधारित करना नुकसान का कारण भी हो सकता है। पिछले दो महीनों में हमने देखा है कि कारोबार की दैनिक अनिश्चितता कम होकर 1.2 फीसदी के स्तर पर आ गई है। पिछले 15 सत्रों के दौरान यह 1 फीसदी से कम होकर 0.98 फीसदी के स्तर पर आ गई है। जनवरी 2010 से अनश्चितता का औसत मात्र 1.4 फीसदी ही रहा है। अनिश्चितता में इस कदर कमी आने के क्या निहितार्थ हो सकते हैं?अनिश्चितता में कमी आने की पुरानी परिभाषा की यह है कि लोग बाजार में कारोबार मंद रहने को लेकर अब ज्यादा भयभीत नहीं होते हैं। इस व्यावहारिक अपेक्षाओं की पुष्टिï वीआईएक्स भी करता है, ऐसा प्रतीत होता है। वीआईएक्स अनिश्चितता के साथ जुड़े निहितार्थ का पता लगाता है। वीआईएक्स में भी गिरावट आ रही है। जनवरी 2010 के बाद से बाजार 2.5 फीसदी बढ़त हासिल करने में कामयाब रहा है जो मौजूदा आसमान छूती महंगाई से काफी कम है। क्या आठ महीनों ने भविष्य में कारोबार प्रभावित होने की किसी भी आशंका से जुड़े डर को समाप्त कर दिया है?मुझे नहीं लगता कि पिछले आठ महीनों में बाजार में कारोबारी अनिश्चितता में कमी आने का कोई विश्वसनीय स्पष्टïीकरण दिया जा सकता है। ऐसे कोई संरचनात्मक बदलाव भी नहीं आए हैं जिससे अनिश्चितता में कमी आने में मदद मिली है। इसमें कोई शक नहीं कि अनश्चितता कम होने से कारोबारियों के लिए बड़े प्रतिफल की संभावनाएं भी कम हुई हैं।अगर मौजूदा अनिश्चितता अगले 6-12 महीनों के दौरान कायम रहती है तो कारोबारियों और निवेशकों दोनों के लिए यह स्थिति काफी आश्चर्यजनक हो सकती है या फिर बाजार लंबे समय तक रहने वाली अनिश्चितता की ओर दोबारा लौट सकता है। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार अनिश्चितता का मीन-रिवर्टिंग होता है। जब कभी भी बाजार में कारोबार को लेकर अनिश्चिता बढ़ती है, कारोबार से जुड़ी अपेक्षाओं में भी बदलाव आते हैं।बाजार में अनिश्चितता का माहौल कारोबार साथ ही निवेशकों की सोच को काफी प्रभावित करता है, लिहाजा अनिश्चितता का पता लगाना काफी अहम है। कारोबार को लेकर अनिश्चितता का बढऩा, आने वाले समय में, रुझान में (चाहे बाजार ऊपर रहे या नीचे) बड़े पैमाने पर बदलाव का संकेत दे सकते हैं।
